भोपाल। निजी मेडिकल कॉलेजों में स्टेट कोटे की एमबीबीएस सीटों को मनमाने तरीके से भरने की मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया (एमसीआई) ने भी जांच शुरू कर दी है। काउंसिल ने मामले से संबंधित विस्तृत जानकारी राज्य शासन से तलब की है।
एमसीआई की सचिव रीना नायर ने प्रमुख सचिव चिकित्सा शिक्षा को पत्र लिखकर जल्द जानकारी के भेजने को कहा है। जांच चिकित्सा शिक्षा संचालनालय की शिकायत पर शुरू की गई है। चिकित्सा शिक्षा संचालनालय (डीएमई) ने इसी साल मई में स्टेट कोटे की सीटों पर डीमेट से दाखिला देने का अंदेशा जताते हुए एमसीआई को शिकायत की थी।
डीमएई ने इसमें 2009 से 2012 तक स्टेट कोटे की सीटों पर पढ़ाई कर रहे स्टूडेंट्स की जांच की मांग की थी। सबूत के तौर पर डीएमई ने काउंसलिंग में एडमिशन लेने वाले छात्रों की की सूची भी एमसीआई को दी है। एमसीआई अब कॉलेजों में पढ़ रहे छात्र-छात्राओं की सूची से इसका मिलान करेगी।
सभी मेडिकल कॉलेज अपने यहां पढ़ाई कर रहे स्टूडेंट्स की सूची एमसीआई को भेजते हैं। इसके बाद ही पुख्ता हो पाएगा कि स्टेट कोटे की सीटों पर कितने विद्यार्थी पढ़ाई कर रहे हैं। गड़बड़ी मिलने पर एमसीआई इन कॉलेजों के खिलाफ कार्रवाई कर सकती है। इसमें गलत तरीके से दाखिल विद्यार्थियों को प्रवेश निरस्त करने और कॉलेज प्रबंधन के खिलाफ कानूनी कार्रवाई भी हो सकती है।
इनका कहना है
राज्य शासन ने स्टेट कोटे से दाखिला लेने वाले उम्मीदवारों की सूची एमसीआई को भेजी है। एमसीआई ने कुछ और जानकारी मांगी है। निजी मेडिकल कॉलेजों द्वारा एमसीआई को दी गई सूची से मिलान होने पर साफ हो जाएगा कि स्टेट कोटे की सीटों पर कौन स्टूडेंट पढ़ रहा है।
डॉ. एनएम श्रीवास्तव
संयुक्त संचालक, चिकित्सा शिक्षा
यह मांगी जानकारी
वर्षवार काउंसलिंग की तारीख और निजी मेडिकल कॉलेजों में स्टेट कोटे सीट उठाने वाले उम्मीदवारों के नाम - निजी मेडिकल कॉलेजों के लिए सरकार द्वारा बनाए गए प्रवेश नियम - संबंधित यूनिवर्सिटी या कॉलेज से स्टूडेंट्स की कोई सूची अगर डीएमई को मिली हो।
इनका कहना है
वर्ष 2010 से 2013 तक स्टेट कोटे की 721 सीटों पर डीमेट से दाखिला हुआ है। एडिमिशन एंड फीस रेगुलेटरी कमेटी (एएफआरसी) की जांच में भी यह साबित हो गया है। 2009 में दाखिला लेने वालों की जांच अभी होनी है।
डॉ. आनंद राय,
हेल्थ एक्टिविस्ट एवं शिकायतकर्ता
क्या है नियम
निजी मेडिकल कॉलेजों में दाखिले लिए 'डीमेट' परीक्षा वर्ष 2009 से हो रही है। 2009 में राज्य सरकार ने 15 फीसदी एनआरआई सीटों को छोड़ सभी सीटें पीएमटी से भरने की मांग थी। इसके बाद 27 मई 2009 को सुप्रीम कोर्ट ने अंतरिम आदेश जारी कर एनआरआई सीटों को छोड़ आधी सीटें डीमेट से व आधी पीएमटी से भरने के लिए कहा था। अभी भी इसी व्यवस्था से दाखिले हो रहे हैं।
पीएमटी की जगह एआईपीएमटी से निजी मेडिकल कॉलेजों की 42 फीसदी सीटें भरी जाती हैं। ऐसे होती थी गड़बड़ी, 20-25 लाख में बिकती थी सीटें निजी मेडिकल कॉलेजों स्टेट कोटे की सीटों में दाखिले के लिए मप्र का मूल निवासी होना जरूरी नहीं है।
इसका फायदा उठाकर दूसरे राज्यों में पहले से मेडिकल कॉलेजों में पढ़ रहे छात्र एमपी पीएमटी में बैठते थे। मेरिट में आने के बाद वे निजी मेडिकल कॉलेजों में दाखिला लेते थे। कॉलेज से 2 से 5 लाख रुपए लेकर ये सीट छोड़ देते थे। कॉलेज प्रबंधन खाली सीटों जानकारी डीएमई को न देकर सीटें डीमेट से भर लेते थे। एक सीट 20 से 25 लाख में भरी जाती थी। 2009 से 2013 के बीच निजी मेडिकल कॉलेजों ने स्टेट कोटे की सीटें बेचकर करीब 144 करोड़ रुपए कमाए।