व्यापमं: कांग्रेस ने सीबीआई को 12 बिन्दु सुझाए

भोपाल। प्रदेश कांग्रेस के मुख्य प्रवक्ता केके मिश्रा ने सर्वोच्च न्यायालय के निर्देश पर व्यापम महाघोटाले की जांच कर रही सीबीआई से आग्रह किया है कि पूर्व में उच्च न्यायालय के निर्देश और एसआईटी की निगरानी में जांच कर रही एजेंसी एसटीएफ दरअसल पूरी तरह राज्य सरकार के निर्देश और निगरानी में जांच कर रही थी और यही कारण रहा कि समूची जांच प्रक्रिया महाघोटाले के संरक्षकों, बड़े मगरमच्छों और अपराधियों को बचाने के लिए ही की जा रही थी।

यही कारण रहे कि जांच प्रक्रिया से महत्वपूर्ण बिंदुओं को पूरी तरह या तो गायब कर दिया गया, या उन्हें अनछुआ ही रहने दिया गया। लिहाजा, सीबीआई अपनी जांच प्रक्रिया में निम्न 12 बिंदुओं को भी शामिल करें, ताकि वास्तविक सफेदपोश अपराधी कानून की गिरफ्त से बच न सकें:-

पीएमटी परीक्षाओं में 600 परीक्षार्थियों की परीक्षाएं निरस्त की गई हैं, एसटीएफ ने उससे संबंधित परीक्षार्थियों के विरूद्व एफआईआर दर्ज क्यों नहीं की?

व्यापम महाघोटाले का षड्यंत्र 7 जुलाई, 2013 को उजागर हुआ, 18 जुलाई को क्राइम ब्रांच, इंदौर में व्यापम के सिस्टम एनाॅलिस्ट नितिन महिन्द्रा को अपने कब्जे में लिया, किंतु कंट्रोलर पंकज त्रिवेदी की गिरफ्तारी लगभग 50 दिनांे तक क्यों नहीं की गई, उसे गिरफ्तार न करने के लिए किसका दबाव था, इस दौरान पंकज त्रिवेदी ने व्यापम मुख्यालय के ही एक कक्ष में महत्वपूर्ण दस्तावेजों में आग लगा दी, जिसके साक्ष्य आज भी फाॅरेन्सिक परीक्षण के बाद सामने आ सकते हैं, किंतु एसटीएफ ने उस कक्ष का फाॅरेन्सिक परीक्षण क्यों नहीं कराया? संभवतः त्रिवेदी की लंबे समय तक गिरफ्तारी नहीं होने के पीछे एक मात्र कारण रिकाॅर्ड नष्ट करना ही रहा था?

हालाकि, सीबीआई की ओर से बुधवार को परिवहन आरक्षक भर्ती परीक्षा-2012 को लेकर 52 लोगों के विरूद्व एफआईआर दर्ज हो चुकी है, जबकि राजनैतिक दबाववश रसूखदारों को छोड़ एसटीएफ ने 35 परीक्षार्थी व 4 अधिकारियों के विरूद्व ही एफआईआर दर्ज की थी। जिन 17 परिवहन आरक्षकों ने विभाग को अपनी ज्वाइनिंग ही नहीं दी थी, एसटीएफ ने इन 17 आरक्षकों को आरोपी क्यों नहीं माना? व्यापम ने सीबीआई जांच के बाद 8 परिवहन आरक्षकों की परीक्षाओं के नतीजे रद्द कर दिये हैं, किंतु एसटीएफ ने तमाम साक्ष्यों के बावजूद उनके विरूद्व एफआईआर दर्ज क्यों नहीं की थी?

परिवहन आरक्षकों की भर्ती हेतु राज्य सरकार द्वारा दिये गये विज्ञापन में 198 परिवहन आरक्षकों की भर्ती हेतु अधिसूचना मई-2012 में प्रकाशित करायी गई थी, किंतु इन स्वीकृत पदों के विरूद्व 332 परिवहन आरक्षकों की भर्ती किसके आदेश पर हुई? जबकि यह अवैध आदेश राजनैतिक दबाववश तत्कालीन अतिरिक्त मुख्य सचिव और वर्तमान मुख्य सचिव एंटोनी डिसा के हस्ताक्षर से जारी हुआ था। एसटीएफ यह पता क्यों नहीं लगा सकी, कि यह आदेश किसके दबाव में जारी हुआ था और उससे संबंधित फाईल एवं अन्य दस्तावेज कहां गायब हो गये हैं?

कांगे्रस द्वारा 21 जून, 2014 को इस विषयक लगाये गये प्रामाणिक आरोपों के बाद  23 जून, 2014 को परिवहन मंत्री भूपेन्द्रसिंह ने एक पत्रकार वार्ता के दौरान सरकार की ओर से मीडिया को यह बताया था कि सारी नियुक्तियां वैध हैं और इन नियुक्त्यिों में म.प्र. के बाहर का कोई भी चयनित शामिल नहीं है, जबकि म.प्र. के बाहर महाराष्ट्र, उत्तरप्रदेश और बिहार के लोगों का भी इसमें चयन हुआ है और यदि मंत्री के तथ्य ईमानदार और पारदर्शी हैं तो सीबीआई ने एफआईआर दर्ज क्यों की है?

परिवहन आरक्षकों की भर्ती परीक्षा में तत्कालीन परिवहन मंत्री जगदीश देवड़ा ने चयनित परिवहन आरक्षकों को राहत प्रदान करने हेतु उनके फिजीकल टेस्ट न करवाये जाने के लिए एक सरकारी पत्र जारी किया था, जो दस्तावेजों में उपलब्ध है। इसी तरह देवड़ा सहित दो वरिष्ठ आईपीएस तत्कालीन परिवहन आयुक्त एस.एस. लाल, अतिरिक्त परिवहन आयुक्त और मुख्यमंत्री के रिश्तेदार आर.के. चैधरी तथा तत्कालीन परिवहन मंत्री देवड़ा के पीए दिलीपराज द्विवेदी जिनका मोबा. नं. 9425600741 था, की भी काॅल डिटेल्स और उनके लोकेशन की जांच कराये जाने हेतु कांगे्रस ने एसआईटी व एसटीएफ से आग्रह किया था। एसटीएफ किसके दबाव में उन्हें जांच प्रक्रिया में शामिल नहीं कर सकी?

परिवहन विभाग में मुख्यमंत्री के रिश्तेदार आर.के. चैधरी ने एसपी, डीआईजी और आईजी की पदोन्नति इसी विभाग में हासिल कर अतिरिक्त परिवहन आयुक्त के पद से न केवल सेवानिवृत्ति ली, बल्कि व्यापम महाघोटाला उजागर हो जाने के बाद यह भी कहा जा रहा है कि उन्होंने ही अतिरिक्त परिवहन आयुक्त पद पर रहते हुए दस्तावेजों को नष्ट किया है, एसटीएफ ने यह जानकारी होने के बावजूद भी उनसे पूछताछ क्यों नहीं की?

व्यापम द्वारा आयोजित इन परीक्षाओं में म.प्र. के बाहर के जिन परीक्षार्थियों ने हिस्सा लिया और वे चयनित भी हुए हैं, उनके फार्मों की छटनी किन अधिकारियों और कर्मचारियों ने की थी, क्या उन्हें इसका अधिकार था? जबकि वर्ष 2013 में उच्च न्यायालय की इंदौर खंडपीठ द्वारा इन परीक्षाओं में प्रदेश के ही परीक्षार्थियों का चयन करने हेतु स्पष्टतः निर्देश दिये गये थे।

व्यापम महाघोटाले में नियम बदलकर शातिर तरीके से खेले गये भ्रष्टाचार के खेल में व्यापम के तत्कालीन अध्यक्षों की भूमिकाएं क्या थीं, एसटीएफ ने उन्हें क्यों बचाया?

अरबों रूपयों के पीएमटी घोटाले में तत्कालीन डीएमई सहित चिकित्सा-शिक्षा विभाग के अन्य अधिकारियों की भूमिकाएं क्या थी? उन्हें लेकर एसटीएफ ने खामोशी क्यों अख्तियार की?

केंद्रीय पर्यवेक्षकों की इस घोटाले में भूमिकाएं भी शक के दायरे में रही हैं, इन केंद्रीय पर्यवेक्षकों की सूची में रिटायर्ड चीफ सेकेट्री, डीजीपी और ईएनसी जैसे पर्यवेक्षकों के नाम शामिल हैं, जिन्हें पेपर सेटिंग, सुरक्षा और रिजल्ट प्रोसेसिंग तक के कार्यों की जिम्मेदारी थी और इसके एवज में उन्हें मोटी तन्ख्वाहें भी दी गईं। जांच एजेंसी ने उनसे पूछताछ करना भी मुनासिब नहीं समझा, ऐसा क्यों?

लगभग 90 अरब रूपयों के इस घोटाले में (डीमेट शामिल नहीं) पहले तो एसटीएफ ने भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम की धारा-7, 13 (1) डी (3) 13 (2) 15 के तहत एफआईआर ही दर्ज नहीं की और बाद में मामला सार्वजनिक होने पर इन धाराओं का कहीं-कहीं उल्लेख किया, किंतु आरोपियों से धनराशि की बरामदगी आंशिक ही क्यों बतायी गई, शेष धनराशि एसटीएफ के किन अधिकारियों के जेबों में गईं और आईटी एक्ट का इन प्रकरणों में समावेश क्यों नहीं किया गया?

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