उपदेश अवस्थी@लावारिस शहर। 10 साल पहले विनम्रता और हर परिस्थिति का शांत भाव से सामना करने वाले शिवराज सिंह चौहान अब उग्र होते जा रहे हैं। इन्दौर में दिया गया उनका बयान 'लातों के भूत...' को गंभीरता से लेने की जरूरत है।
हम यहां यह समीक्षा करने एकत्रित नहीं हुए कि इंदौर में क्या हो रहा है। वहां पुलिस सही है या नहीं। गुंडों के मानवाधिकारों का सम्मान किया जाना चाहिए या नहीं। हम तो यहां निहित एक ही स्वार्थ के लिए एकत्रित हुए हैं, अपने शिवराज को उग्रवादी होने से रोकने के लिए।
विदिशा के सांसद शिवराज सिंह चौहान की सिर्फ एक ही पहचान हुआ करती थी, मिलनसारिता। विनम्रता के साथ उन्होंने हर चुनौती को स्वीकार किया और शांत भाव से सामना करते हुए उस पर विजय प्राप्त की। जिन विषयों पर हर कोई उग्र प्रतिक्रियाएं देता था उन विषयों पर भी शिवराज हमेशा शांत ही रहा करते थे। गुस्सा तो जैसे उनके सार्वजनिक जीवन का अंग कभी था ही नहीं।
मुख्यमंत्री बने तो भी यही हाल थे। जनहित की बात करते थे, दृढ़ता के साथ करते थे, लेकिन शब्दों में उग्रवाद या अहंकार नहीं होता था। सब जानते हैं कि पहली सरकार दिग्विजय सिंह के विरोध की सरकार थी, दूसरी बार भाजपा और शिवराज की सरकार बनी, लेकिन तीसरी बार 100% शिवराज सिंह की सरकार है।
अब जब जनता ने पूरा भरोसा शिवराज सिंह पर कर लिया है तो समझ नहीं आ रहा कि शिवराज सिंह को क्या होता जा रहा है। जो व्यक्ति कभी अशांत नहीं हुआ वो अक्सर अशांत दिखता है। जो कभी अहंकारी नहीं था, उसके शब्दों में अहंकार मिलता है। अब तो एक कदम और आगे बढ़ गए, 'लातों के भूत...' की बात करने लगे हैं। यह हवस लगातार बढ़ती जाती है। ऐसे हालात में व्यक्ति उचित अनुचित की समझ भी खोने लगता है। चाटुकार वाहजी, वाहजी करते रहते हैं और उसे लगता है कि वो जो कर रहा है, वही सही है।
आज पुलिस के समर्थन में 'लातों के भूत...' बयान दिया है। कल किसी गुडे को पकड़ने के लिए खुद निकल पड़ेंगे, पुलिस को बुलाएंगे और चौराहे पर पिटवाएंगे। अगले चुनावों में अभी बहुत वक्त है। चाटुकार तालियां बजाते रहेंगे, ये हवस बढ़ती जाएगी और फिर जिसे चाहेंगे उसे गुंडा घोषित करके जेलों में ठूंस दिया करेंगे।
फिर क्या होगा, बताने की जरूरत नहीं। या तो संघ शिवराज को बदल देगा या फिर चुनावों में जनता ही सरकार बदल डालेगी। जो भी होगा, लेकिन शुभ नहीं होगा। एक भला इंसान मप्र के खाते से रीत जाएगा। बड़ी मुश्किल से राजनीति में कुछ ठीक ठाक लोग आते हैं। शिवराज उनमें से एक है। कुर्सी पर बैठते ही हाशहुश शुरू नहीं हुए थे। सत्ता की आलोचना मेरा कर्तव्य है अत: अक्सर किया करता हूं, परंतु लोकतंत्र की रक्षा के लिए ऐसे नेताओं को बर्बाद होने से बचाना भी अपना ही धर्म है। उन्हें सही रास्ते पर लाना अपना काम है। इसीलिए मैं मप्र के उन तमाम प्रबुद्धजनों से आग्रह करता हूं, जिनको शिवराज सम्मान दिया करते हैं। कृपया शिवराज को भस्म होने से बचा लो, अभी वक्त है, रोक लो। कहीं आगे निकल गए तो फिर लौट नहीं पाएंगे।
