भोपाल। व्यापमं घोटाले में शामिल पीएमटी फर्जीवाड़े में आरोपियों के बयानों के आधार पर पुलिस ने दर्जनों स्टूडेंट्स और साल्वर्स को पुलिस ने अरेस्ट तो कर लिया परंतु अब बड़ा सवाल यह है कि न्यायालय में उन्हे सजा कैसे दिलाएंगे, क्योंकि उनके खिलाफ पुलिस के पास कोई सबूत तो है ही नहीं।
वर्ष 2006 व 2007 के प्री मेडिकल टेस्ट में शामिल हुए इन छात्रों के परीक्षा संबंधित मूल दस्तावेज व्यापमं से नहीं मिले हैं। यह दस्तावेज रद्दी घोषित कर नष्ट कर दिए गए हैं। इस कारण अब पुलिस परिस्थितिजन्य सबूत तलाश कर रही है। वहीं पुलिस अफसर दबी जुबान में स्वीकार कर रहे हैं मूल दस्तावेज न होने से आरोप साबित करने में मुश्किल हो सकती है लेकिन वे अपनी कोशिश जारी रखेंगे।
पुलिस 2004 से 2010 तक फर्जी तरीके से मेडिकल कॉलेज में प्रवेश लेने वाले छात्रों के बारे में पड़ताल कर रही है। पुलिस को 2008 से 2010 तक के फर्जी तरीके से प्रवेश लेने वाले छात्रों के बारे पुख्ता सबूत मिले हैं। एसआईटी को छात्रों के पीएमटी के प्रवेश पत्र, अटेंडेंस शीट, प्रश्न पत्र का कवर पेज मिले हैं। लेकिन 2006 और 2007 के फर्जी छात्रों के मूल दस्तावेज एसआईटी को व्यापमं से नहीं मिल पाए हैं।
इसके लिए पुलिस अफसरों ने कई बार व्यापमं को पत्र लिखे, अंतत: व्यापमं की ओर से जवाब दिया गया कि पीएमटी से जुड़े इन छात्रों के मूल दस्तावेज नहीं मिल पाएंगे। इसके बाद एसआईटी की परेशानी बढ़ गई। मूल दस्तावेज के बिना इनके आरोप न्यायालय में साबित करना मुश्किल हो रहा है। इसलिए पुलिस परिस्थितिजन्य सबूत तलाश रही है।
अब इनका सहारा
2006-2007 के फर्जी छात्रों का अकादमिक रिकॉर्ड एकत्र किया गया है, इसमें एमबीबीएस अध्ययन के दौरान और हाईस्कूल तथा इंटर का रिकॉर्ड भी एकत्र किया गया है। इस रिकॉर्ड के जरिए ही आरोप साबित किए जाएंगे।
जिस वर्ष में इन छात्रों ने फर्जी तरीके से प्रवेश लिया है उन वर्षों में इन्होंने या इनके परिवार ने रुपयों का कोई बड़ा ट्रांजेक्शन किया हो, इस ट्रांजेक्शन से पुलिस फर्जी तरीके से प्रवेश के लिए रुपयों का लेनदेन साबित करेगी।
एकत्र कर रहे अन्य साक्ष्य
2006-07 में पीएमटी देने वाले छात्रों के मूल दस्तावेज व्यापमं से नहीं मिले हैं। ऐसी स्थिति में आरोपी छात्रों को सजा दिलाने के लिए अन्य साक्ष्य एकत्र किए जा रहे हैं।''
वीरेंद्र जैन, एएसपी, एसआईटी प्रभारी