अमित कसाना/नई दिल्ली। जिस बैंक में व्यक्ति काम करता है उस बैंक से उसके रिश्तेदारों को दिए लोन में उसका गारंटर (जमानती) होना अपराध नहीं है। अगर बैंक कर्मचारी का कोई रिश्तेदार लोन के लिए आवेदन करता है और बैंक उसे गारंटर बनने के लिए कहता है तो वह कैसे मना कर सकता है।
यह टिप्पणी करते हुए दिल्ली हाई कोर्ट ने सिंडिकेट बैंक को कर्मचारी को सभी भत्ते छह फीसद ब्याज के साथ देने के आदेश दिए हैं। बैंक ने उस कर्मचारी को नौकरी से निकाल दिया था क्योंकि वह बैंक प्रशासन से पूछे बिना बैंक की अलग-अलग शाखाओं से अपने पांच रिश्तेदारों द्वारा लिए गए लोन में गारंटर बना था।
न्यायमूर्ति वाल्मीकि जे. मेहता की खंडपीठ ने कहा कि बैंक यह कैसे कह सकता है कि उसे कर्मचारी ने इसकी सूचना नहीं दी। जबकि हर बार लोन में गारंटर बनते समय उसने यह बताया था कि वह बैंककर्मी है। इसके अलावा लोन बैंक के अधिकारी द्वारा पास किया जाता है, गारंटर द्वारा नहीं। ऐसे में बैंक का यह कहना कि बैंक कर्मचारी ने उससे लोन में गारंटर बनने से पहले पूछा नहीं या सूचना नहीं दी, गलत है।
साबित नहीं हुए आरोप
अदालत ने कहा कि लोन की रकम लाख व करोड़ों में नहीं है। सभी रकम 35 सौ से 25 हजार तक है। बैंक प्रशासन यह साबित नहीं कर पाया कि वह अन्य किसी आमदनी के साधन में लिप्त है या फिर लाभ के पद पर है। ऐसे में बैंककर्मी ने कोई गैरकानूनी काम नहीं किया है।
यह था मामला
पेश मामले में सिंडिकेट बैंक के कर्मचारी एसपी मेहरा को 19 जुलाई, 1999 को नौकरी से निकाल दिया गया था। बैंक प्रशासन का आरोप था कि वह बिना बैंक की अनुमति लिए केजी मार्ग, निर्माण विहार समेत बैंक की विभिन्न शाखाओं से पांच रिश्तेदारों व परिचितों को दिए गए लोन में गारंटर बने। चूंकि, अब लोन की रकम जमा नहीं की जा रही है। ऐसे में बैंक लोन लेने वालों के खिलाफ अदालत जाने पर विचार कर रहा है। बैंक प्रशासन का यह भी आरोप था कि उसके पास आमदनी के अन्य स्रोत भी हैं। यूको बैंक की चांदनी चौक स्थित शाखा में भी उनकी देनदारी है। वह क्रेडिट सोसायटी ऑफ बैंक एंप्लॉयी यूनियन का भी हिस्सा है। हालांकि मेहरा ने इन सभी आरोपों से इन्कार किया था और निकाले जाने को हाई कोर्ट में चुनौती दी थी।