राकेश दुबे@प्रतिदिन। यह चौमासा किसानों पर आफत बनकर आया है। भरी गर्मी में अचानक आंधी-बारिश व ओला वृष्टि से फसल खेतों में लेट गई थी। किसानों के दिल रो उठे थे पकी पकाई फसलों को इस तरह बर्बाद होते देखकर उनकी नजरे ऊपर आसमान की ओर उठकर भगवान से गुहार लगाने लगी है। सरकार समय-समय पर किसानों को खेती के लिए सुविधाएं देती है, खाद व बीज की भी व्यवस्था करती है, किसान इनका सदुपयोग भी करते हैं।
खेतों में लहलहाती फसलें देखकर किसान खुश भी बहुत होते हैं, सरकार भी फसलों के उत्पादन के अनुमान से चैन की सांस लेती है, परंतु अचानक बेमौसम बारिश-ओलावृष्टि-आंधी के बाद तबाह हुए किसानों को उनके हाल पर छोड़ दिया जाता है। कुछ राज्यों में दागी फसलों को लेने सरकार वादा करती है, परंतु इसमें भी कई पेंच रहते हैं और किसान परेशान हो उठता है। उसके हाथ में बीज का खर्च ही आता है और अन्य खर्चों के बोझ से वह कर्जदार हो जाता है। बदलते मौसम चक्र को देखते हुए सरकार को चाहिए कि एक ऐसी नीति बनाई जाए, जिससे इस तरह की बर्बादी को रोका जा सके अन्यथा किसान किसानी से विमुख होते जाएंगे।
मौसम विभाग ने इस साल वैसे भी मानसून में कम वर्षा व देरी से आने की चेतावनी दी है। मानसून को ध्यान में रखकर खरीफ फसलों के लिए सरकार ने खाद व बीज आदि पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध कराने की व्यवस्था शुरू कर दी है। कृषि विभाग प्रमाणित बीजों के अंकुरण की जांच कर गुणवत्ता सुनिश्चित करने में लग गया है। सरकार किसानों द्वारा उठाए गए बीज व खाद पर ब्याज की गणना एक जून से करने की घोषणा कर चुकी है। सरकार ने उपरोक्त सारी व्यवस्था तो कर ली है, परंतु मानसून की भविष्यवाणी की उपेक्षा कर दी है। प्रदेश में किसानों ने यदि खरीफ फसल हेतु परंपरागत समय अनुसार बीज बो दिए और मौसम ने फिर धोखा दे दिया, तो किसान व किसानी का क्या होगा? इस ओर सरकार ने सोचा भी नहीं है। मौसम के बदलाव व परंपरागत किसानी को देखते हुए सरकार को चाहिए कि एक ऐसा विभाग बनाया जाए, जो किसानों को सही सलाह दे सके। उन्हें मौसम चक्र में हो रहे परिवर्तनों की जानकारी दे सके, जिससे किसानी में फायदा जरूर होगा। किसान खुशहाल तो प्रदेश खुशहाल।
श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।
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