रामजी मिश्र 'मित्र'। द्वतीय विश्व युध्द के दौरान ब्रम्हावली में एक बेहद संवेदी घटना घटी थी। उस दौरान यहाँ का एक सिपाही भारतीय सेना में भारत की तरफ से युद्ध कर रहा था। उसके घर एक दिन डाकिया एक फटे कोने की चिट्ठी लेकर पहुँच गया। उस समय लोग बहुत अधिक संख्या में पढ़े लिखे न थे। और तो और यह चिठ्ठी मुश्किल से पढ़ने में नहीं आ रही थी। कुछ ही समय में गाँव में इस युद्ध में गाँव के लाल के शहीद होने की खबर आग की तरह फ़ैल गयी।
यह गाँव उत्तर प्रदेश के सीतापुर जिले में पड़ता है। सैनिक का नाम मुकुट बिहारी था। सैनिक की पत्नी चंपा ने उनके शहीद होने की बात ख़ारिज कर दी और लोगों के विरोध के बाद भी कोई श्रृंगार न उतारा। एक साल छह माह माह बाद जब सैनिक छुट्टी पर घर आया तो गाँव में खुसी की लहर दौड़ गयी। लोग चंपा के विश्वास की दात दे रहे थे। वैसे अब युद्ध समाप्त था एक सती के लिए भी और एक महायोद्धा के लिए भी।
सैनिक को जब घटना पता चली तो वह बहुत देर तक कुछ न बोल पाया और सिर्फ चंपा को देख आंसू बहाता रह गया। यह युध्द भारत ही नहीं वरन पूरे विश्व के लिए एक भयावह त्रासदी थी। न जाने कितने लोग युद्ध में मारे गए थे। उस समय की भयानकता का उल्लेख जब यह सैनिक करता तो रोंगटे खड़े हो जाते थे। उस समय की विभिन्न घटनाएं बेहद दर्दनाक होती थीं।
मुकुट बिहारी ने महायुद्ध की समाप्ति के बाद रिटायरमेंट ले लिया था। वह पूरा युद्ध अंत तक लड़ते रहे। वह बताते हैं जापान के सैनिक देश में जहाँ तहाँ छापा मर युद्ध की तरह लड़कर आतंक फैला रहे थे लेकिन अमरीका के एटम बम डाल ने के बाद युद्ध समाप्त हो गया। इस युद्ध के दौरान उन्होंने अपने कई साथी खो दिए थे जिनका उल्लेख करते ही उनके आंसू आ जाते थे। वर्ष दो हजार छः में इनकी पत्नी चंपा का पंचानबे वर्ष की आयु में निधन हो गया जब्कि बीते वर्ष दो हजार चौदह में इस महान योद्धा का एक सौ चार साल की अवस्था में निधन हो गया।