स्कूल शिक्षा विभाग में फर्नीचर खरीदी घोटाला

भोपाल। स्कूल शिक्षा विभाग में चार साल बाद एक और फर्नीचर घोटाला सामने आया है। लोक शिक्षण के तत्कालीन वित्त अधिकारी, प्राचार्य और ट्रेजरी के अधिकारी मिलकर इस घोटाले को अंजाम दे रहे थे। उत्कृष्ट विद्यालय राहतगढ़ से मामला उजागर होने के बाद विभाग ने जब सागर समेत प्रदेश के अन्य जिलों में जांच शुरू की तो तीन और जिलों में बड़े स्तर पर घोटाला सामने आया। इसके बाद विभाग ने तत्काल इस मद की राशि के खर्च पर रोक लगा दी है। विभाग अब संचालक लोक शिक्षण राजेश जैन से प्रदेश के सभी जिलों की जांच करा रहा है। इसमें करोड़ों के घोटाले की आशंका जताई जा रही है।

विभागीय सूत्र बताते हैं कि यह अकेले एक स्कूल या एक जिले का मामला नहीं है। प्रदेश के सागर, विदिशा, शहडोल, उज्जैन सहित सभी जिलों में इसी तरह से करोड़ों रुपए के फर्नीचर की खरीदी हुई है। मामला खुलने के बाद वित्त अधिकारी मनोज श्रीवास्तव ने 20 मार्च को इस मद की राशि पर रोक लगा दी है। साथ ही जिन स्कूलों ने राशि निकाल ली है उन्हें तत्काल संबंधित बीसीओ को राशि लौटाने के निर्देश दिए गए हैं।

स्कूल से लेकर डायरेक्ट्रेट तक चैन
मप्र राज्य उपभोक्ता संघ में पंजीकृत सप्लायर, स्कूल प्राचार्य, लोक शिक्षण के तत्कालीन वित्त अधिकारी और जिलों में ट्रेजरी के अधिकारी का गठजोड़ इस घोटाले का अंजाम दे रहा था। सप्लायर ग्रामीण क्षेत्र के स्कूलों के प्राचार्यों से संपर्क करते थे। उनसे विभाग के 6968 और 5704 मद में फर्नीचर, स्टेशनरी, लैब उपकरण, खेल सामग्री सहित अन्य सामग्री की खरीदी का डिमांड लेटर वित्त अधिकारी के नाम से लेते थे। साथ ही सप्लाई ऑर्डर भी ले लिया जाता था। 10 से 15 दिन में स्कूल को सामग्री सप्लाई कर दी जाती थी। इसके 10 से 12 दिन बाद स्कूल के डीडीओ कोड में सर्वर से सीधे राशि पहुंच जाती थी। जिसे ट्रेजरी से चंद घंटों में ही निकाल लिया जाता था।

कमिश्नर की स्वीकृति है जरूरी
विभाग के 6968 और 5704 मद में उन्नयन हाईस्कूल और हायर सेकंडरी स्कूलों को फर्नीचर समेत अन्य स्कूल सामग्री खरीदने की अनुमति दी जाती है। इसके लिए संबंधित स्कूल प्राचार्य प्रस्ताव बनाकर डीईओ को भेजता है। डीईओ से प्रस्ताव ज्वाइंट डायरेक्टर और वहां से कमिश्नर लोक शिक्षण तक प्रस्ताव आता है। कमिश्नर की स्वीकृति के बाद ही खरीदी की जाती है।

ऐसे पकड़ाया मामला
सागर जिले के उत्कृष्ट विद्यालय राहतगढ़ के प्राचार्य पीसी कोष्ठी ने 6 जनवरी 2015 को सप्लायर को 35 लाख का वर्क ऑर्डर दिया। उससे 900 डेस्क, बेड और ड्रेसिंग टेबल मंगाए गए थे। 8 जनवरी को क्रय आदेश भी दे दिया। सप्लायर ने 25 जनवरी को 100 नग डेस्क स्कूल को पहुंचा दीं। इसके बाद लोक शिक्षण में बिल लगाए गए। यहां लेन-देन को लेकर सप्लायर और अधिकारी के बीच विवाद हो गया और सप्लायर ने बिल का भुगतान न करने की शिकायत कर दी। शिकायत की जांच के दौरान पूरा मामला खुल गया। संभाग स्तर से जांच कराई गई। जांच शुरू होते ही प्राचार्य ने डिमांड ऑर्डर निरस्त कर दिया और 25 फरवरी को स्कूल खुलने से पहले ही परिसर में रखा फर्नीचर ट्रक में भरवाकर रवाना कर दिया।

पहले भी हुई गड़बड़ी
विभाग में फर्नीचर खरीदी में ऐसा पहली बार नहीं हो रहा है। इससे पहले शैक्षणिक सत्र 2009-10 में लोक शिक्षण संचालनालय स्तर से गड़बड़ी हुई थी और करीब 60 लाख का फर्नीचर घोटाला सामने आया था। बाद में अधिकारियों के खिलाफ विभागीय जांच भी की गई।

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प्राचार्य ने अधिकार क्षेत्र से बाहर जाकर सप्लाई आर्डर दिए थे। उन्हें निलंबित कर दिया है। यह ऑर्डर कैंसिल हो गए हैं, इसलिए सरकार को कोई नुकसान नहीं हुआ है। मामले में संचालक से सभी जिलों की जांच कराई जा रही है।
डीडी अग्रवाल
आयुक्त, लोक शिक्षण

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