खतरे की घंटी तो भारत में भी बजी है

राकेश दुबे@प्रतिदिन। नेपाल के हालात से इतने ज्यादा इसलिए बिगड़े हैं, क्योंकि अन्य विकासशील देशों की तरह वहां भी आपदा-पूर्व प्रबंधन पर कुछ खास काम नहीं हुआ है। इस तबाही से भारत को भी सबक लेने की जरूरत है। हमारे देश में भी इसकी कोइए तैयारी नहीं है| जबकि देश के 38 शहर हाई रिस्क जोन में आते हैं। अहमदाबाद स्थित इंस्टिट्यूट ऑफ सीस्मोलॉजिकल रिसर्च के विशेषज्ञों का मानना है कि कश्मीर, हिमाचल प्रदेश, पंजाब और उत्तराखंड के नीचे भूकंपीय खाइयां मौजूद हैं, जिनके चलते यहां अगले 50 वर्षों के अंदर कभी-भी नेपाल से बड़ा भूकंप आ सकता है।

हमें बड़े स्तर पर एहतियाती उपाय करने होंगे। हालांकि वर्ष 2001 में गुजरात में आए भूकंप के बाद देश में इस मामले को लेकर जागरूकता कुछ हद तक बढ़ी है। बड़े शहरों में अब ज्यादातर भूकंप-रोधी इमारतें ही बन रही हैं। हाल में जो नई मल्टीस्टोरी रिहायशी कॉलोनियां बसी हैं, उनमें से ज्यादातर में कम से कम ढांचे के मामले में सारे एहतियाती उपाय किए गए हैं। फिर भी कई जगहों पर बिल्डिंग कोड का पालन नहीं होता। खासकर कम ऊंची इमारतों के मामले में, और वह भी निजी निर्माण में। ऐसा उन जगहों पर भी हो रहा है, जो भूकंप के हिसाब से संवेदनशील मानी जाती हैं।

कहने को देश में 2005 में डिजास्टर मैनेजमेंट ऐक्ट बना। आज हमारे पास एनडीआरएफ (राष्ट्रीय आपदा प्रतिक्रिया बल) की एक मजबूत टीम है, जो पड़ोसी देशों तक को मदद पहुंचाने में सक्षम है। पर भूकंप को लेकर कोई राष्ट्रीय योजना हमारे पास नहीं है। 2013 में नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (सीएजी) की रिपोर्ट में इसके लिए सरकार की आलोचना भी की गई थी।

अब जरूरत है कि भूकंप को लेकर एक राष्ट्रीय योजना पर काम किया जाए। जन-जागरूकता इसका एक अहम हिस्सा होना चाहिए। लोगों में अब भी भूकंप को लेकर कई तरह की गलतफहमियां हैं। बचाव के उनके तरीके गलत हैं। जैसे पिछले ही दिनों भूचाल आने पर लोग अपनी बिल्डिंगों से निकलकर उनके आसपास खड़े हो गए, जबकि ऐसा करना बेहद खतरनाक है। जापान की तरह हमारे यहां भी शिविर लगाकर या स्कूलों में कुछ बेसिक ट्रेनिंग दी जा सकती है।

श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।
संपर्क  9425022703
rakeshdubeyrsa@gmail.com

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