बाबा भीलट देव की चमत्कारी कथा : जहां किन्नर को भी संतान मिली थी

वीरेन्द्र तिवारी/सिवनी मालवा। होशंगाबाद जिले की सिवनी मालवा तहसील में प्रति वर्ष चैत्र सुदी चौदस के दिन भीलट देव दरबार में मेला भरता है। इस दिन बाबा के भक्त पडिहार के शरीर में भीलट बाबा की पवन आती है। परिहार मंदिर के बाहर नीम के पेड से लिपटकर दोनो एक दूसरे से गले मिलते है। जिसे हजारों भक्त देखते है यह पेड उस समय अपने आप बिना ऑंधी तूफान के तेजी से हिलता है और परिहाड उस समय हजारों की संख्या में उपस्थित जनसैलाव भक्तों के समक्ष वर्ष भर की भविष्यवाणी करते है जो सच साबित होती है।

इसे सुनकर भक्त उपस्थित होते है वर्षभर का हाल मौसम हवा पानी, वर्षा, व्यापार, तेजी मंदी, रोग, वीमारी अच्छी वुरी फसल आदि के वारे में वतलाते है उसी अनुसार क्षैत्र के किसान व्यापारी अपने काम करते है।

प्रसिद्ध भीलट देव बाबा के चमत्कारों का ही परिणाम है कि बाबा के स्थान पर दूर-दूर से भक्त आकर मत्था टेकते है। भीलट देव के चरित्र का गुणगान काठी वाले लोग जिन्हें डाकिया भी कहते हैं वह श्रृद्धा भक्ति के साथ ढपली की थाप पर नाचते गाते हुए गली-गली द्वार-द्वार फेरी लगा बाबा का गुणगान करते है। भक्तों का मानना है कि इस स्थान पर दूर-दूर से आने वाले श्रृद्धालु भक्तों की मन की मुरादे दर्शन मात्र से पूरी हो जाती है।

यूॅं तो मेले बहुत भरते है परन्तु सभी का महत्त्व अलग अलग होता है भीलट देब बाबा मेले का विशेष महत्व है यह मेला होशंगावाद जिले की सिवनी मालवा तहसील के भीलटदेव बाबा मंदिर प्रांगण में लगता है। प्रति वर्ष चैत्र माह की चौदस से लगता है। जिसमें दूर-दूर से श्रृद्वालु भक्त अपनी मनोतियां मानने तथा मनोति पूर्ण होने पर भीलट बाबा के दरबार में श्रृद्धा से शीश झुकाने आते है. मेले में पशु प्रर्दशनी कृषि एवं अन्य विभागों की योजनाओं की प्रदर्शनी सिनेमा छोटे बड़े आकर्षक झूले अनेकों नए नए प्रदर्शन के साथ ही व्यापारी दूर-दूर से आकर अपनी दुकाने लगाते हैं। मेले में भजन कीर्तन के साथ ही भीलटदेव गीत सहित अनेक प्रतियोगिताएं एवं अनेकों कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है। मंदिर में वर्ष भर भक्तों का आना जाना लगा रहता है परन्तु मेले के समय भक्तों की लम्बी कतार लगी रहती है। भक्तों की मनोकामनाएं पूर्ण करने वाले इस प्राचीन भीलट देब मंदिर को चमत्कारिक मंदिर कहा जाता है।

इस स्थान पर वर्षो पूर्व घना जंगल था मंदिर के पास मुख्य मार्ग होने से दूर-दूर के यात्री आते जाते समय भीलटदेब बाबा के दर्शन प्राप्त कर आराम करते यहां यात्रियों को अनेक चमत्कार देखने को मिलते इन चमत्कारों की दूर-दूर तक चर्चा होने से भक्तों की भारी भीड बढती गई. आज भी भक्तों की मुरादे दर्शनमात्र से पूरी हो जाती है. भक्तों का मनना है कि मत्था टेकने से ही मन की मुरादे शीध्र पूर्ण होती है।

श्रीभीलट देव के विषय में अनेकों कवदन्तियां है बाबा के भक्त वतलाते है कि बाबा की माता जी जिनका नाम मेंदाबाई था वह मध्य प्रदेश के हरसूद तहसील के आदिवासी ग्राम में गौली परिवार से सम्वन्धित थी. मेंदावाई अपने विवाह के चालीस वर्ष वाद भी संतान नहीं होने के कारण काफी चिन्तित एवं दु:खी थी संतान प्राप्ति के लिए मेंदावाई ने भगवान शंकर एवं माता पार्वती की नियमित रूप से श्रृद्धाभक्ति के साथ पूजा अर्चना करती थी। एक दिन मेंदावाई घर पर शाम को आंगन में गौधुली बैला में संतान की चिंता में अपनी गायों के आने का इंतजार कर रही थी। उसी समय एक बाबा महात्मा आकर पूछने लगे मेंदावाई दु:खी क्यों होती हो तुम्हें कौनसी चिंता सता रही है। मेंदावाई की आंखों में आंसू भर आए और कहने लगी बाबा में नि:संतान हूॅं यही चिंता सता रही है। इतना कहते हुए साधु महात्मा को आदर सत्कार पूर्वक घर में बैठाकर श्रृद्वापूर्वक भोजन कराया। आदर पूर्वक भोजन पाकर महात्मा प्रसन्न हुए और कुछ पल के लिए चिंतन करने के पश्चात मेंदावाई को आर्शीवाद देते हुए कहने लगे तुम्हें शीध्र ही पुत्र रत्न की प्राप्ति होगी और वह बालक छोटी उम्र से ही असाधारण प्रतिभा का स्वामी होगा वह शंकर पार्वती का अनन्य भक्त होगा लेकिन बालक दस वर्ष की उम्र में घर का मोह त्याग कर अपने लक्ष्य को प्राप्त करता हुआ प्रसिद्धी प्राप्त करेगा।


इस वचन को सुनकर मेंदावाई ने मन में विचार किया कि में नि:संतान होने के कलंक से तो बच जाऊॅंगी। वहॉं से साघु महात्मा तो इतना कहकर चले गए परन्तु कुछ दिनों वाद मेंदावाई को पुत्र रत्न की प्राप्ति हो गई। जिससे मेंदावाई की खुशी का ठिकाना न रहा। बालक हष्ट-पुष्ट सूर्य की भांति तेजस्वी था उस बालक का नाम भीलट रखा गया। महात्माजी के वताए अनुसार बालक बचपन से ही काफी कुशाग्र वुद्धि का भगवान शंकर पार्वती की पूजा अर्चना में दिन रात लगा रहता। दस वर्ष की उम्र होने के पश्चात घर त्याग कर यहां वहां रूकते ठहरते हुए बंगाल पहुॅंचा-जहॉं भगवान शंकर पार्वती की धोर तपस्या की।

बंगाल में एक तांत्रिक ने बालक के चेहरे पर कम उम्र में भी इतना तेज एवं उसकी प्रसिद्धि से चिढकर उसे मारना चाहा और उस पर अनेक प्रकार के जादू टोने किए परन्तु बालक का भगवान शंकर की कृपा से कुछ भी नहीं विगड़ा। आखिरकार तांत्रिक परेशान हो गया और बालक को सिद्धि प्राप्त हो गई। भगवान की पूजा अर्चना में बंगाली तांत्रिक द्वारा बार बार रूकावट की गई और इन विफल प्रयासों के कारण बालक का मन बंगाल में नहीं लगा और वहां से वह वापस चल दिए और पचमढ़ी स्थित बडे महादेव भगवान शंकर की शरण में जा पहुंचे। बालक को स्वयं भगवान शंकर एवं माता पार्वती नित्य शिक्षा और मार्गदर्शन दिया करते थे ऐसा भक्त वतलाते है कि भीलट बाबा ने जिस जिस स्थान पर रात्रि विश्राम भगवान शंकर के गंण के रूप में किया बह है रोलगांब, रूदनखेडी, छिदगांब, संगम, भदभदा, होशंगावाद, पचमढी एवं भीलट देब आदि इन स्थानों पर भीलट देब के मंठ देखने को मिलते है इन स्थानों पर दूर-सुदूर रहने वाले बाबा के भक्त हरिजन आदिवासी गौंड भील कौरकू सहित अन्य जाति धर्म के लोग मठ मंदिरों में आकर अपनी मनौतियां पूरी करते है।

भक्तों को बाबा के अनेकों चमत्कार देखने एवं सुनने को मिलते है भीलट बाबा की प्रसिद्धि दूर-दूर तक सुनाई देने लगी जिसे सुनकर एक किन्नर हीजड़े ने स्वयं को संतान पैदा होने का बरदान बाबा से मांगा किन्नर को बाबा का वरदान सच साबित हुआ और किन्नर को बाबा के चमत्कार से संतान पैदा हुई परन्तु कुछ समय पश्चात दोनों की मृत्यु हो गई. सिवनी मालवा के भीलट देव बाबा के मंदिर प्रांगण में उस किन्नर की समाधी आज भी वनी हुई है मंदिर के पास कुछ दूरी पर भानबाबा का स्थान है. भीलट देव मंदिर के ठीक सामने नीम एवं इमली का वृक्ष है वहां हनुमानजी की प्रतिमा स्थापित है।

#buttons=(Ok, Go it!) #days=(20)

Our website uses cookies to enhance your experience. Check Now
Ok, Go it!