अमेरिका की एक छोटी सी कंपनी है ग्रेविटी पेमेंट्स। बस 120 लोगों का स्टाफ। संस्थापक डैन प्राइस ही इसके सीईओ हैं। सोमवार को उन्होंने ऐलान किया कि हर कर्मचारी की सैलरी कम से कम 70 हजार डॉलर (43 लाख रुपए) सालाना होगी। प्राइस की बात सुनकर कर्मचारियों की आंखें खुली रह गईं। विश्वास होता भी कैसे। कम से कम 30 स्टाफ ऐसे हैं जिनकी सैलरी दोगुनी हो जाएगी। बाकी को भी अच्छा खासा इन्क्रीमेंट मिलेगा। अभी कंपनी का औसत वेतन 30 लाख रुपए है।
स्टाफ को देने के लिए प्राइस ने अपनी सैलरी घटा दी। अभी तक वह 10 लाख डॉलर (62.5 लाख रुपए) का पैकेज ले रहे थे। अब वह भी 43 लाख ही लेंगे। दरअसल, प्राइस ने एक लेख में पढ़ा कि जो लोग 43 लाख से कम कमाते हैं उनके लिए अतिरिक्त आमदनी बहुत मायने रखती है। तभी उन्होंने सबसे कम, 18 लाख रुपए पाने वाले क्लर्क का वेतन भी बढ़ाने का फैसला कर लिया। प्राइस ने 2004 में महज 19 साल की उम्र में बड़े भाई से पैसे लेकर यह कंपनी बनाई थी। पिता रॉन प्राइस कंसल्टेंट के साथ-साथ प्रेरक वक्ता भी है।
बिजनेस लीडरशिप पर उन्होंने किताब भी लिखी है। 2008 की मंदी में प्राइस के दो बड़े क्लायंट दिवालिया हो गए थे। दो हफ्ते में ग्रेविटी पेमेंट्स के करोड़ों रुपए डूब गए। लेकिन प्राइस ने एक भी स्टाफ को नहीं निकाला। यही कारण है कि उनके सभी कर्मचारी आज भी कंपनी में हैं। 24 साल की कर्मचारी हेली वॉट ने कहा भी, ऐसी जगह काम करने में अच्छा लगता है जहां कोई सिर्फ कहता नहीं, बल्कि करता भी है।
मकसद सुर्खियों में आना नहीं
प्राइस का मकसद सुर्खियों में आना नहीं है। उन्होंने कहा, मैं असमानता मिटाने के लिए एक कदम उठाना चाहता था। अपने दोस्तों से जाना कि सरकार द्वारा तय न्यूनतम वेतन पाने वालों के लिए खर्चे जुटाना कितना मुश्किल होता है। यह बातें मुझे बहुत तकलीफ देती हैं।
फिर छिड़ी बहस
कंपनी के साइज को देखते हुए इस फैसले से अमेरिकी उद्योग जगत पर कोई फर्क नहीं पड़ेगा। लेकिन सीईओ और कर्मचारियों के बीच वेतन के बढ़ते अंतर पर एक बार फिर बहस छिड़ गई है। अमेरिका में यह अंतर सबसे ज्यादा है। कुछ कंपनियों में तो सीईओ का वेतन कर्मचारियों के औसत वेतन का 300 गुना है। मैनेजमेंट गुरु 20:1 अनुपात को ही अच्छा मानते हैं।