भोपाल। भारत में नदियों का अपना चरित्र होता है। वो मदमस्त बहतीं हैं और अपने रास्ते खुद तय करतीं हैं, किसी ट्रेफिक पुलिस के इशारे का इंतजार नहीं करतीं। नियम यह है कि सरकारें नदियों की स्वतंत्रता कायम रखें और उन्हें वैसे ही बहने दें जैसा कि वो बहना चाहतीं हैं परंतु यहां पढ़िए कैसे किसी अंडरटेबल सेटिंग का पॉलिटिकल प्रेशर के बाद नदियों से छेड़छाड़ की जाती है:-
मामला भोपाल की बहुचर्चित कलियासोत नदी का है। इसके किनारों पर कब्जा कर बिल्डरों ने कंक्रीट के बगीचे लगा डाले। सैंकड़ों करोड़ की कमाई कर ली गई। अवैध थे इसलिए मुद्दा बन गया। मुद्दा बना तो जांच शुरू हो गई। मामला नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल तक जा पहुंचा। अब यहां नदियों के रखवाले कलेक्टर को नदी की सुरक्षा के बारे में जवाब देना है परंतु बड़ी ही चतुराई के साथ प्रशासन नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल को मिसगाइड करने का प्रयास कर रहा है। जो नदी पिछले 200 साल में नहीं बदली उसे परिवर्तनशील बताया जा रहा है।
खबर आ रही है कि कलियासोत नदी किनारे सीमांकन के मामले में अब तक नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) से मोहलत मांगता रहा जिला प्रशासन अब अपनी बात से पलट गया है। बुधवार को एनजीटी में हुई सुनवाई में जिला प्रशासन ने शपथ पत्र देकर यह कहा कि नदी परिवर्तनशील है, पहले पेश की गई रिपोर्ट विधिसम्मत नहीं है।
वह इसका नए सिरे से सीमांकन करना चाहता है। जिला प्रशासन के इस जवाब पर एनजीटी के जस्टिस दलीप सिंह ने नाराजगी जताई। उन्होंने पूछा कि पहले की रिपोर्ट सही थी या जिला प्रशासन अब सही कह रहा है। एनजीटी ने इस मामले में अगली सुनवाई पर 27 मार्च को मुख्य सचिव को भी तलब किया है।
सुनवाई के दौरान जिला प्रशासन की ओर से एक शपथ पत्र पेश किया गया। उसमें जिक्र किया गया कि कलियासोत नदी परिवर्तनशील है, इसलिए सीमांकन करने में तकनीकी और व्यवहारिक अड़चनें आ रही हैं। पहले की सीमांकन रिपोर्ट भी ठीक नहीं है।
गत नवंबर में इस मामले में हुई सुनवाई के दौरान जिला प्रशासन ने सीमांकन के लिए तीन महीने की मोहलत मांगी थी। इसके पहले 20 अगस्त को एनजीटी ने अंतरिम आदेश जारी किया था, जिसमें 35 किमी तक कलियासोत नदी का सीमांकन करने, मुनारें लगाने, ग्रीन बेल्ट में 33 मीटर तक अतिक्रमण हटाने का जिक्र था। प्रशासन, एनजीटी को यह भी बता चुका था कि जिन लोगों के प्लॉट कलियासोत के दायरे में आ रहे हैं, उन्हें नोटिस जारी किए जाएंगे।
बिल्डर्स को बचाने का खेल
पूरा खेल बिल्डर्स को बचाने के लिए किया जा रहा है। यदि मकान तोड़ दिए गए तो कई सारे बिल्डर्स जेल जाएंगे और यदि बिल्डर्स जेल गए तो भाजपा के उन नेताओं के चेहरों से भी नकाब उतर जाएगा जो इन बिल्डर्स के चंदे पर चुनाव लड़कर जीत चुके हैं। इसलिए इन अवैध निमार्णों के समर्थन में स्पांसर्ड आंदोलन प्लान किया गया। जनता को भी भड़काया गया। चुनावी सभा में वोट चाहिए थे, वो अतिक्रमणकर्ताओं के पास थे, बेचारी नदी तो वोट डालती नहीं, इसलिए सीएम शिवराज सिंह चौहान ने वादा कर दिया कि नदी का चाहे जो भी हो, मकान नहीं तोड़े जाएंगे। अब जब सीएम ने वादा कर दिया तो प्रशासन को बहाना मिल गया। नदी के हिस्से की जमीन छीन लेने की तैयारी की जा रही है, बिल्डर्स को बचाने के लिए।
न्यायसंगत क्या होगा
न्याय संगत तो यह होगा कि बिल्डर्स की धरपकड़ कर उन्हे जेल में डाल दिया जाए, फिर पाबंद किया जाए कि जितने लोगों को अवैध निर्माण में फ्लेट और मकान बेचे हैं या तो उन्हेें आज के बाजार मूल्य से पैसे वापस करें या वहीं नजदीक किसी दूसरी वैध जमीन पर उतनी ही प्रॉपर्टी दें।
तो फिर समस्या क्या है
समस्या यह है कि इस अतिक्रमण के मामले को छिपाए रखने के लिए प्रोजेक्ट शुरू होने से लेकर आज तक बिल्डर्स ने बड़ी मोटी रकम सरकारी मशीनरी को अंडरटेबल पहुंचाई है। अब यदि कानून की बात की तो सारी परतें खुल जाएंगी। बिल्डर्स मरे तो वो उन नेताओं और अधिकारियों को भी नंगा कर देंगे जो इस घोटाले में उनके साथ थे।