ओलों में बर्बाद हुए किसान ने की आत्महत्या

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महेश मिश्रा। भिंड जिले में ऊमरी थाना क्षेत्र के कानावर गाँव में रहने वाले सुन्दर सिंह नाम के एक किसान ने आत्महत्या करके अपनी जीवन लीला समाप्त कर ली. आत्महत्या का कारण ओलावृष्टि और अतिवृष्टि के कारण फसलों को हुआ नुकसान बताया जा रहा है. दरअसल सुन्दर सिंह ने अपनी खेती के अलावा भी ठेके पर और खेती ले रखी थी लेकिन नुकसान के चलते खेती में लगी लागत भी नहीं निकल पा रही थी जिससे उसके ऊपर कर्ज का बोझ बढ़ रहा था.

आदेश के बावजूद भी कोई प्रशासनिक अधिकारी या कर्मचारी अभी तक सर्वे करने भी नहीं गया. जिसके चलते सुन्दर को आत्महत्या जैसा प्राणघातक कदम उठाना पड़ा. पंद्रह दिन पहले भी सुन्दर आत्महत्या का प्रयास कर चुका था लेकिन उस समय घरवालों ने देख लिया और उसे रोक दिया।

कनावर के रहने वाले एक किसान सुन्दर ने भी लगभग चालीस बीघा जमीन सात हजार रुपये प्रति बीघा के हिसाब से ठेके पर ली. जिसमें जुताई, बीज, खाद और पानी पर हजारों रुपये कर्ज लेकर खर्च कर दिए, ऊपर से तीन लाख के लगभग रुपये जमीन मालिकों को बतौर ठेका राशि लौटानी थी. लेकिन असमय हुयी बारिश ने उसकी फसल को जमींदोज कर दिया. जिससे वह इतना दुखी हो गया कि कई बार घर में आत्महत्या करने की बात कहता रहा. पंद्रह दिन पहले वह रस्सी लेकर आत्महत्या के इरादे से निकला भी लेकिन तब घरवालों और गाँव वालों ने देख लिया और उसे ऐसा करने से रोक दिया लेकिन भारी कर्जे में डूबे सुन्दर को तो मानो आत्महत्या का सिवाय कोई और रास्ता सूझ ही नहीं रहा था. उसने गुरुवार को अपने घर से दूर खेतों पर जाकर आत्महत्या कर ली.

किसानों को हुए इस नुकसान के बाद इस पर जमकर राजनीति होने लगी. क्या सत्ताधारी क्या विपक्ष सभी नेता किसानों के बीच पहुंचकर उनके आंसू पोंछने का ढोंग कर रहे हैं. प्रदेश के मुखिया शिवराज सिंह चौहान भी कई गाँवों का दौरा कर चुके हैं. किसानों को उचित मुआवजा दिलाये जाने के आश्वासन दिए जा रहे हैं. लेकिन जमीनी हकीकत यह है कि अधिकारी और कर्मचारी खेतों तक सर्वे करने नहीं जा रहे हैं. जिन पटवारियों के जिम्मे गाँव रहता है वह भी अपने गाँव के किसानों के बीच नहीं पहुंचे हैं. ऊपर से कलेक्टर का कहना है कि जिले में मात्र पंद्रह से बीस प्रतिशत ही नुकसान हुआ है. ऐसे में आपदा झेल रहे किसानों को सरकारी सहायता मिलने की आस भी नहीं दिख रही. हमने भी कई खेतों का जायजा लिया तो वास्तव में कई कई जगह तो हालत बहुत ख़राब दिखे. किसान बेचारा रो रहा है लेकिन उसे इस विपदा में किसी प्रकार की कोई आस कहीं से नहीं दिख रही. मुख्यमंत्री हेल्पलाइन पर कॉल करने भी कोई नतीजा नहीं निकला.

पिछले साल भी जिले में सरसों की फसल पाला पड़ने के कारण बहुत कम हुयी थी. उस समय भी एक किसान द्वारा सरसों की लकड़ी पर बैठकर खुद को आग के हवाले कर आत्महत्या कर ली गयी थी. सर्वे हुए लेकिन किसानों तक मुआवजा राशि नहीं पहुंची. ऐसे में इस बार भी किसानों को शासन प्रशासन से कोई राहत मिलती दिखाई नहीं दे रहे. मुख्यमंत्री के आश्वासनों से उनका भरोसा उठता जा रहा है. बेबस किसान के पास आत्महत्या के अलावा कोई दूसरा रास्ता उसे दिखाई नहीं

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