परमाणु समझौता: मोदी सरकार ने ये क्या कर डाला

नईदिल्ली। मोदी सरकार ने अमेरिका के साथ वही परमाणु समझौता कर लिया जिसका विरोध वो विपक्ष में रहते हुए करती आ रही थी। इतना ही नहीं मोदी सरकार ने यह भी स्वीकार कर लिया कि यदि परमाणु दुर्घटना होती है तो क्षतिपूर्ति की वसूली भारत के आम नागरिकों से टैक्स के रूप में की जाएगी, अमेरिका को क्षतिपूर्ति नहीं चुकानी होगी। समझाने वाले शब्दों में कहें तो भोपाल गैस कांड अमेरिकी कंपनी या एंडरसन जिम्मेदार नहीं होगा। उसे कोई कुछ नहीं कहेगा।

बीते छह साल से अटके भारत-अमेरिका असैन्य परमाणु करार को अमली जामा पहनाने के लिए दोनों देशों को अपनी-अपनी जिद की बलि देनी पड़ी है। भारत ने जहां अमेरिकी कंपनियों को दुर्घटना की स्थिति में पीड़ितों को क्षतिपूर्ति देने के बोझ से मुक्त कर दिया है। वहीं अमेरिका को परमाणु सामग्री की निगरानी की जिद छोड़ने के साथ ही भारत को 4 परमाणु इलीट क्लबों में शामिल करने का वादा करना पड़ा है।

समझौते के मुताबिक अब मुआवजे का बोझ परोक्ष रूप से भारत के करदाताओं को भुगतना होगा। विवाद का हल निकालने केलिए सरकार ने अमेरिकी कंपनी को क्षतिपूर्ति देने से बचाने केलिए एक इंश्योरेंस पूल बनाने का फैसला किया है।

बहरहाल इस समझौते के बाद मोदी सरकार की राजनीतिक चुनौतियां बढ़ जाएंगी। यूपीए सरकार के कार्यकाल में परमाणु उत्तरदायित्व कानून में विपक्ष में रहते भाजपा और वाम दलों ने ही कड़े प्रावधान डलवाए थे। कांग्रेस और वामदल पहले से ही क्षतिपूर्ति का बोझ भारतीय कंपनियों के हवाले करने के विरोध में हैं।

कांग्रेस ने तो इसे मोदी सरकार का एक और बड़ा यू टर्न तक करार दिया है। इसलिए यह देखना दिलचस्प होगा कि इस करार पर सहमति के बाद मोदी सरकार विपक्ष के हमले का क्या जवाब देगी।

ओबामा की यात्रा के पहले ही दिन शिखर वार्ता के बाद भारत ने भले ही धूमधड़ाके के साथ परमाणु करार को अंतिम रूप देने की घोषणा कर दी हो, मगर इसके लिए दोनों देशों खासकर भारत को भी बड़ी रियायत देनी पड़ी है।

भारत ने न केवल समझौते के तहत अमेरिकी कंपनियों यानि सप्लायरों को दुर्घटना के बाद पीड़ितों को मुआवजा देने की जवाबदेही से मुक्त कर दिया है बल्कि मुआवजा देने के लिए इंश्योरेंस पूल बनाने पर भी हामी भर दी है।

सरकारी कंपनी जनरल इंश्योरेंस कॉरपोरेशन की अगुवाई में 4 सार्वजनिक क्षेत्र की इंश्योरेंस कंपनियां यह पूल बनाएंगी। इस पूल में भारत सरकार और इश्योरेंस कंपनियों 750-750 करोड़ रुपये की रकम जमा करेंगी, जिससे दुर्घटना की स्थिति में मुआवजे का भुगतान किया जा सकेगा।

हालांकि करार संपन्न होने के बाद भी कई ऐसे मुद्दें हैं जिस पर वास्तव में स्थिति साफ नहीं हो पाई है। उल्लेखनीय है कि परमाणु उत्तरदायित्व कानून के क्लॉज 46 में जिसमें दुर्घटना के बाद पीड़ितों के समक्ष अदालत का दरवाजा खटखटाने का अधिकार था, उस पर स्थिति स्पष्ट नहीं है। वहीं अमेरिका की आपत्ति वाले दूसरे बिंदु क्लॉज 17 का असर खत्म करने के लिए मुआवजे की जवाबदेही इंश्योरेंस पूल पर डाल दी है।

अब जबकि करार संपन्न करने की घोषणा कर दी गई है तब सरकार को जल्द ही बड़ी राजनीतिक चुनौतियों से जूझना होगा। सरकार को विपक्ष ही नहीं लोगों को भी यह समझाना होगा कि विपक्ष में रहते खुद कंपनियों पर जवाबदेही तय करने के लिए बाध्य करने वाली भाजपा सत्ता में आते ही कैसे बदल गई। हालांकि सरकार इसके बदले इलिट परमाणु क्लब आईएईए, एनएसजी, ऑस्ट्रेलिया ग्रुप और वासनेर की सदस्यता मिलने और इस कारण ड्रोन तकनीक हासिल होने का तर्क दे कर अपनी पीठ थपथपा सकती है।

इसके अलावा सरकार समझौते से पहले अमेरिका की परमाणु सामग्री पर निगरानी न रखने की शर्त से पीछे हटने की भी बात कर सकती है। मगर लाख टके का सवाल है कि परमाणु उत्तरदायित्व कानून में खुद दबाव डाल कर कड़े प्रावधान कराने के सवाल से सरकार कैसे जूझेगी। इसके अलावा उसे विपक्ष का यह सवाल भी परेशान करेगा कि आखिर आपूर्तिकर्ता कंपनी या ऑपरेटर की जगह सरकार या परोक्षरूप से करदाता क्यों दुर्घटना की स्थिति में भारी क्षतिपूर्ति के लिए बाध्य हो।

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