6 साल से नहीं मिला वेतन, सरसों का साग खाकर गुजारे दो साल

ग्वालियर। भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई लड़ने वाले जिला सहकारी केन्द्रीय बैंक के लिपिक सतीष शर्मा ने ना सिर्फ खुद झुकने को मना किया, बल्कि बैंक की गड़बड़ियों को उजागर किया। 1984-85 से संघर्ष करते-करते 1998 में सबसे पहले घोटाला उजागर किया। 20 करोड़ की बैंक को चपत लगाने वालों की शिकायत की पर कार्यवाही नहीं हुई।

जिले की सहकारी संस्थाओं के माध्यम से ऋण वितरण में लगभग 100 करोड़ का फर्जीवाड़ा उजागर किया, इस पर बैंक प्रबंधन ने पागल साबित करने की कोशिश की, लगातार ट्रांसफर किये, वेतन नहीं दिया, इसके बाद मानसिक परीक्षण कराने का पत्र जारी कर दिया। 13 सितम्बर 2002 को चांटा मारने का आरोप लगाकर बर्खास्त कर दिया, लेकिन हार नहीं मानी। सरसों का साग खाकर तंगी में दो साल गुजारे कई बार 2-3 दिन भूखे रहना पड़ा, पत्नी राजकुमारी ने पूरा संबल दिया। सहानुभूति सबने दिखाई, लेकिन सामने आकर साथ देने की हिम्मत किसी ने नहीं दिखाई।

उन्होंने हार नहीं मानी और साइकिल पर तुरही लगाकर गली-गली में बैंक की गड़बड़ियों को उजागर किया, पर्चे बांटे, कई दुश्मन हो गये, समझौता करने का दबाव बनाया ना मानने पर झगड़े भी हुये, ईओडब्ल्यू ने बाद में अपने यहां अटैच कर लिया और न्यायालय में गवाह भी बनाया, लेकिन अभी तक गड़बड़िया रूकी नहीं, करोड़ों रूपये की हेराफेरी करने वाले अभी भी आजाद घूम रहे हैं।

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