लक्ष्मी नारायण मंदिर: 200 करोड़ की जमीन गायब

जितेंद्र यादव/इंदौर। 1950 में जो जमीन लक्ष्मी नारायण मंदिर के नाम दर्ज थी, 1980 आते-आते उसमें से 3.59 हेक्टेयर जमीन सरकारी रिकॉर्ड से गायब हो गई। सरकारी मंदिर की करीब 200 करोड़ स्र्पए मूल्य की यह जमीन कहां, कैसे और कब गायब हो गई, सरकार को इसकी खबर ही नहीं लगी। यही नहीं मंदिर की जमीन का एक हिस्सा पुजारी के परिवार ने बिल्डरों को बेच दिया और सरकार कुछ नहीं कर पाई। पखवाड़े भर पहले इस घोटाले की शिकायत कमिश्नर और कलेक्टर दोनों को की गई है।

साल दर साल ऐसे गायब हो गई जमीन
होलकर स्टेट ने शहर के खजराना इलाके में लक्ष्मी नारायण मंदिर के नाम पर 6.03 हेक्टेयर जमीन दी थी। जमीन मंदिर व उसके रखरखाव और पुजारी के जीवन-यापन के लिए दी गई थी।

सरकारी रिकॉर्ड में खसरा नंबर 1405 की 3.42 हेक्टेयर और खसरा नंबर 1407 की 2.61 हेक्टेयर की यह भूमि लक्ष्मीनारायण मंदिर के नाम दर्ज थी । इसमें पुजारी के रूप में कन्हैयालाल सिद्धेश्वर त्रिवेदी का नाम लिखा हुआ था। 1950 तक के रिकार्ड में यह नाम दर्ज मिलता है।

वर्ष 1965-66 में दोनों खसरों की जमीन पर लक्ष्मीनारायण मंदिर के अलावा मैनेजर के रूप में कन्हैयालाल के बेटे लक्ष्मीनारायण का नाम चढ़ा दिया गया। वर्ष 1970-71 तक यही नाम चलता रहा।

वर्ष 1979-80 के खसरे से जमीन का बड़ा हिस्सा गायब हो गया। खसरा नंबर 1405 और 1407 की जो भूमि 6.03 हेक्टेयर थी, वह सिकुड़कर 2.44 हेक्टेयर हो गई।

राजस्व रिकॉर्ड में जमीन का हिसाब ऐसे ही आगे बढ़ता गया और वर्ष 1994-95 में जमीन में लक्ष्मीनारायण मंदिर के साथ ही व्यवस्थापक के रूप में कलेक्टर का नाम जोड़ दिया गया और पुजारी का नाम हटा दिया गया।

जो बची वह बिल्डरों के हाथों में
मंदिर की सरकारी जमीन गायब करने का एक खेल तो राजस्व रिकॉर्ड में हुआ और दूसरा पुजारी के परिवार के साथ मिलकर कुछ बिल्डरों ने कर डाला।

पुजारी कन्हैयालाल के निधन के बाद उन्हीं के परिवार के श्यामसुंदर पिता गोकुलदास त्रिवेदी ने 2.44 हेक्टेयर जमीन का नामांतरण कराने के लिए अलग-अलग न्यायालयों में केस दायर किया।

वर्ष 2006 में राजस्व मंडल ने जमीन पर पुजारी परिवार का कब्जा बताकर उनके पक्ष में फैसला दे दिया। बताया जाता है कि तहसीलदारों द्वारा राजस्व रिकॉर्ड में हेरफेर किया गया।

एक ओर जमीन को लेकर केस चल रहा था तो दूसरी ओर बिल्डरों के दबाव में त्रिवेदी ने खसरा नंबर 1405 और 1407 की कुल 2.44 हेक्टेयर जमीन 2005 में मंजूदेवी पति राजकुमार खंडेलवाल को बेच दी।

जमीन हाथ में आने के बाद वर्ष 2007 में मंजू खंडेलवाल ने इस जमीन की पावर ऑफ अटार्नी बिल्डर शरद डोसी के रिश्तेदार अभय जैन को लिख दी।

बाद में यह जमीन जैन और डोसी की भागीदारी फर्म शिव इंटरप्राइजेस के नाम हो गई।

जमीन के लिए देर से जागे अफसरों ने शासन की ओर से श्यामसुंदर त्रिवेदी के खिलाफ हाईकोर्ट में याचिका लगाई गई, लेकिन वहां से भी त्रिवेदी के पक्ष में फैसला आ गया। इसके बाद सारे अफसर चुप हो गए।

इस पूरे मामले में तत्कालीन राजस्व अधिकारियों की मिलीभगत सामने आती है, जिन्होंने मंदिर की शासकीय जमीन में पुजारी का नाम भी रखा। अदालती लड़ाई में इसी का उन्हें फायदा मिला।

कलेक्टर को लिखा है
लक्ष्मी नारायण मंदिर की जमीन के बारे में शिकायत मिली है। जमीन कैसे बिकी, अब क्या वस्तुस्थिति है, इन सारी बातों को लेकर कलेक्टर को लिखा गया है। शिकायतकर्ता ने कुछ दस्तावेज दिए हैं, लेकिन मामले की जांच के बाद ही कुछ कहा जा सकेगा।
संजय दुबे, कमिश्‍नर

सुप्रीम कोर्ट में करेंगे अपील
लक्ष्मी नारायण मंदिर की जमीन बिकने के मामले में गड़बड़ी तो हुई है। तत्कालीन अधिकारियों ने इसकी अपील नहीं की। अब हम सुप्रीम कोर्ट में इसकी अपील की तैयारी कर रहे हैं।
आकाश त्रिपाठी, कलेक्टर

#buttons=(Accept !) #days=(20)

Our website uses cookies to enhance your experience. Check Now
Accept !