कहीं निकल न जाएँ जनता के प्राण रे !

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राकेश दुबे@प्रतिदिन। स्वास्थ्य सेवाओं को बेहतर बनाने, सभी तक इनकी पहुंच सुनिश्चित कराने और सस्ती दर पर जीवनरक्षक दवाएं उपलब्ध कराने की मांग लंबे समय से उठती रही है। सस्ती दवाएं उपलब्ध कराने के मकसद से सौ से ऊपर दवाओं को जीवनरक्षक की श्रेणी में सूचीबद्ध किया गया है।

कई राज्य सरकारों ने इन दवाओं की बिक्री के लिए जगहें भी चिह्नित कर रखी हैं। एनपीपीए यानी नेशनल फार्मास्यूटिकल्स प्राइसिंग अथॉरिटी ने दवा निर्माता कंपनियों को एक सौ आठ जीवनरक्षक दवाओं की कीमतें कम रखने का दिशा-निर्देश दिया था। मगर मोदी सरकार के रुख के चलते एनपीपीए को अपना दिशा-निर्देश वापस लेना पड़ा।

तब से इन दवाओं की कीमतों में कई गुना वृद्धि हुई है। आरोप लग रहे हैं कि दवा कंपनियों के दबाव में सरकार ने एनपीपीए के निर्देश वापस करवाए। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के अमेरिका यात्रा से लौटने के बाद ही एनपीपीए ने अपने दिशा-निर्देश वापस ले लिए।

देश में सबसे अधिक लोग टीबी, मधुमेह, हृदय रोग, कैंसर, एचआइवी-एड्स जैसे रोगों से पीड़ित हैं। इन बीमारियों के इलाज में इस्तेमाल होने वाली दवाएं खासी महंगी हैं। इनका खर्च न उठा पाने के कारण बहुत सारे लोग दम तोड़ देते हैं।

केंद्र ने सभी राज्यों के स्वास्थ्य सचिवों की बैठक बुला कर सबके लिए स्वास्थ्य सुविधाएं उपलब्ध कराने के मकसद से राष्ट्रीय स्तर पर स्वास्थ्य बीमा सुविधा, सभी स्वास्थ्य केंद्रों और अस्पतालों में विभिन्न दवाएं और जांच उपलब्ध कराने का प्रस्ताव रखा था। फिर यह कैसे हुआ कि उन्हीं के कार्यकाल में जीवनरक्षक और आवश्यक दवाओं की कीमतें नियंत्रित करने वाले एनपीपीए के निर्देशों पर पानी फिर गया? सरकार न तो दवाओं की कीमतों को बेलगाम मुनाफाखोरी से बचाने के लिए गंभीर है न चिकित्सा क्षेत्र में व्याप्त भ्रष्टाचार दूर करने को लेकर।

तमाम अध्ययन बताते हैं कि दवा कंपनियां किस तरह भ्रष्ट तरीके से बाजार में अपनी दवाओं की पहुंच बनाती हैं। दवाओं की कीमतें उन पर आने वाली लागत से कई सौ गुना तक अधिक होती हैं। जबकि बहुत सारे परिवारों को इलाज के लिए अपनी जमीन-जायदाद बेचने या कर्ज लेने के लिए मजबूर होना पड़ता है। फिर भी सरकार को अगर दवा कंपनियों पर निगरानी रखने वाले तंत्र को मजबूत बनाने के बजाय उसके पर कतरना ज्यादा जरूरी लगे तो समझा जा सकता है कि वह मरीजों के प्रति कितनी संवेदनशील है। क्या इसी तरह सार्वभौम चिकित्सा अधिकार सुनिश्चित किया जाएगा?

लेखक श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।
संपर्क  9425022703
rakeshdubeyrsa@gmail.com


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