भोपाल। सामान्यत: लोगों को डॉक्टर में अब भगवान नहीं शैतान नजर आता है, लेकिन डॉक्टरों की कौम में इंसानियत अभी भी जिंदा है। जूनियर डॉक्टर एसोसिएशन ने एक मासूम बच्चे का इलाज अपने खर्चे पर प्राईवेट हॉस्पिटल में कराया।
अमित के पिता गुलाब दास ने बताया कि 4 अप्रैल को बेटे की रीढ़ की हड्डी का ऑपरेशन हमीदिया अस्पताल में कराया था। इसके पांच दिन बाद रीढ़ की हड्डी में संक्रमण होने से उसकी हालत सुधरने के बजाय बिगड़ गई। 9 अप्रैल को देर रात जूनियर डॉक्टरों ने उसकी जान बचाने के लिए एमपी नगर के मिरेकल अस्पताल में उसे भर्ती कराया।
13 दिन के इलाज के बाद बुधवार को अमित को डिस्चार्ज करने के लिए प्रबंधन ने गुलाब दास को 60 हजार रुपए का बिल दे दिया। गुलाब दास की आर्थिक स्थिति को ध्यान में रखते हुए जूनियर डॉक्टर एसोसिएशन ने अमित के इलाज के खर्च का भुगतान करने के लिए 44 हजार रुपए चंदा करके जुटाए। इसकी जानकारी मिलने पर हॉस्पिटल डायरेक्टर डॉ. राकेश मिश्रा ने शेष बची राशि ((16 हजार रुपए)) बिल में कम करते हुए अमित को छुट्टी दे दी। डॉ. मिश्रा ने उसे एक महीने बाद मेडिकल जांच के लिए फिर बुलाया है।
दोनों पैर सुन्न रहने की थी बीमारी
न्यूरोसर्जन डॉ. एके चौरसिया के अनुसार वह टीडर्ड काड सिंड्रोम से पीडि़त था। सुन्न रहने से उसे पैरों में लगी चोटों का अहसास नहीं होता था। उन्होंने बताया कि यह बीमारी 5 हजार बच्चों में से किसी एक बच्चे को होती है।
यह मामला जहां एक ओर डॉक्टरों के भीतर मौजूद संवेदनशीलता का प्रमाण है वहीं सरकारी व्यवस्थाओं पर एक बार फिर सवाल खड़े करता है। जिस गरीब को मु्फ्त इलाज का दावा किया जाता है, उसका इलाज सरकारी अस्पतालों में नहीं किया जा सका। यदि यह मदद ना मिलती तो नतीजा क्या होता।