चुनाव प्रचार बेअसर, बिजी है वोटर

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भोपाल। प्रत्याशियों ने प्रचार तेज कर दिया है परंतु सांसद के भविष्य का फैसला करने वाले मतदाता फिलहाल चुप्पी साधे हुए हैं। हल्की फुल्की चुनावी चर्चाओं के अलावा यहां कुछ पब्लिक रेस्पांस दिखाई नहीं दे रहा है।

भाजपा ने अपने प्रदेश कार्यालय मंत्री आलोक संजर और कांग्रेस ने अपने पूर्व विधायक पीसी शर्मा को टिकट देकर एक-दूसरे के खिलाफ चुनावी मैदान में उतार कर मुकाबला रोचक कर दिया है। दोनों ही स्थानीय लो प्रोफाइल और जमीनी कार्यकर्ता हैं। दोनों ही उम्मीदवार रोजाना अलग- अलग विधानसभा क्षेत्रों में पूजन अर्चना कर चुनावी प्रचार की शुरुआत करते हैं। भोपाल की सकरी गलियों में यह पैदल घूमकर अपने समर्थन में वोट मांगते हैं वहीं, चौड़ी सड़कों पर रोड शो कर मतदाताआें को रिझाने का प्रयास करते हैं। 

इस दौरान कार्यकर्ताओं में उत्साह दिखाई देता है। पर मतदाताओं ने फिलवक्त खामोशी ओढ़ रखी है। बाबुओं का शहर के मतदाता दμतरों में बैठकर चुनावी गतिविधियों पर चटखारे लेते दिखते हैं। भोपाल शहर को छोड़ दिया जाए तो ग्रामीण क्षेत्रों में किसानों और मतदाताओं में उत्साह नहीं दिख रहा है। ये किसान चुनाव प्रचार की बजाय मंडियों, प्राथमिक सहकारी समितियों और खरीदी केंद्रों पर समर्थन मूल्य अपना गेहूं बेचने के लिए मशक्कत करते दिख रहे हैं। क्योंकि खरीदी केंद्रों में एफएक्यू से नीचे की क्वालिटी वाला गेहूं मंडियों से लौटाया जा रहा है।

क्या है समीकरण

भोपाल लोकसभा सीट की हार-जीत का फैसले में जातिगत समीकरण की अहम भूमिका रहती है। इस बार भी ब्राम्हण, कायस्थ और मुस्लिम मतदाताआें की निर्णायक भूमिका रहेगी। शर्मा ब्राम्हण और संजर कायस्थ हैं। दोनों को अपने समाज से उम्मीदे हैं।

अब तक अपने नाम के साथ संजर की उपाधि लगाने वाले आलोक ने अब श्रीवास्तव लिखना शुरू कर दिया है। करीब सोलह लाख वोटर माने जाने वाले इन तीन वर्गों के अलावा अन्य जातीय वर्ग भी आते हैं। वैसे इस सीट पर भाजपा के वरिष्ठ नेता कैलाश जोशी दो बार, उमा भारती एक बार और सुशील चंद वर्मा चार बार सांसद रहे हैं। वहीं गैस कांड यानी 1984 के बाद से कांग्रेस इस सीट पर कब्जा करने के लिए हाथ पैर मार रही है। पर इन 28 सालों में भोपाल भाजपा का गढ़ बन चुका है। कांग्रेस इस गढ का फतेह कर पाती है या नहीं, इस बारे में कुछ भी कहना जल्दबाजी होगी।

मोदी-शिव के भरोसे संजर

आलोक संजर छात्र जीवन से ही राजनीति में सक्रिय है। उनके राजनीतिक गुरु पूर्व मुख्यमंत्री कैलाश जोशी हैं। हमीदिया कॉलेज से ही आलोक एवीबीपीसे जुड़ गए थे, वह हमीदिया कॉलेज छात्र संघ के उपाध्यक्ष भी रह चुके हैं। हमीदिया कॉलेज से ही वकालत की पढ़ाई भी पूरी की। 1991 में आलोक जिला युवा मोर्चा के महामंत्री रहे। 1999 से लगातार दो बार भाजपा से नगर निगम चुनाव जीतकर वार्ड 26 और 51 के पार्षद रहे। आलोक जिला भाजपा के अध्यक्ष भी रह चुके हैं।

जुझारू तेवर, घर-घर पीसी

छात्र राजनीति से जुड़े नेता पीसी शर्मा ने एमएसीटी से इंजीनियरिंग की है। इंजीनियरिंग के बाद चार दोस्तों ने मिलकर उद्योग धंधा शुरू किया। इसके बाद वे सक्रिय राजनीति में आ गए। 1984 में पहली बार पार्षद बने।94 में बीडीए चेयरमैन दो साल के लिए बने। बाद में उनका दो साल का कार्यकाल और बढ़ा दिया गया। 1998 में दक्षिण पश्चिम सीट से पहली बार विधायक बने। पीसी शर्मा को भोपाल जिले की जिम्मेदारी दी गई।


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