राकेश दुबे@प्रतिदिन। इस लोकसभा चुनाव के जितने भी पूर्वानुमान आ रहे हैं, वे वामदलों की गिनती कहीं भी नहीं कर रहे है | वामपंथ की चमक कम होती जा रही है | कुछ राज्यों में तो वामदलों के उम्मीदवार ही नहीं है और जहाँ हैं वहां उनकी गिनती क्षेत्रीय दलों के बाद होती है | हार-जीत का अनुमान पहले भाजपा और कांग्रेस फिर उनके गठबंधन के लिए लगाया जाता है | वामदल देश में तीसरी ताकत के रूप में पहचान कायम नहीं कर सके हैं |
यूँ तो देश में वामपंथ के नाम पर अनेक संगठन है | जिनमे सबसे पहले जिसकी गिनती होती है | वह है, मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी | इस चुनाव में उसकी सक्रियता पिछले चुनावों के मुकाबले में कम दिख रही है | इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता की वामपंथ ने कभी समग्र भारत के विषय में विचार ही कुछ इस तरह से किया कि वे अपने सिद्धांतों के अनुसार भारत को बदल देंगे | वामपंथ ने भारत की तासीर के अनुसार न तो सिद्धांत गढ़े और न अपने सिद्धांतों को भारत की तासीर के अनुरूप बनाया | अब जैसे गुजरात में प्रगतिशील मोर्चा जैसा संगठन बनाया पर वह पूरी तरह अप्रसांगिक साबित हुआ |
जब जब वाम दलों को भारत को समझने का अवसर मिला उन्होंने जो दृष्टिकोण अपनाया वह जनोन्मुखी होने के स्थान पर कहीं और चला गया और अब वाम विचार धारा आम भारतीय से कुछ और दूर होती जा रही है | आज़ादी के बाद, आपात काल के दौरान और अन्य कई विषयों पर वाम पंथ की अस्पष्टता उसकी चमक खो रही है | १६ मई को आनेवाले नतीजों से इसकी पुष्टि होगी यह संकेत साफ दिख रहे हैं ||
लेखक श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।
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rakeshdubeyrsa@gmail.com
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