भोपाल। नेताप्रतिपक्ष सत्यदेव कटारे द्वारा मांगे गए बंगले और सरकारी की बेरुखी के बाद सरकारी बंगलों के आवंटन पर मीडिया में पड़ताल शुरू हो गई है। सवाल यह उठ रहा है कि राजधानी में सरकारी बंगलों के आवंटन की नीति क्या है। किस दिए जाएं, कितने दिए जाएं और क्यों दिए जाएं इसके लिए नियम क्या हैं।
हिन्दी अखबार दैनिक भास्कर ने इस मामले में एक पड़ताल की और पाया कि सांसदों को बंगले आवंटित करने के मामले में मप्र सरकार कुछ ज्यादा ही मेहरबान है। राजस्थान, छत्तीसगढ़, गुजरात जैसे पड़ोसी राज्यों के अलावा अन्य कई राज्यों में भी सांसदों को सरकारी आवास नहीं मिले हैं, लेकिन मप्र में आधा दर्जन से ज्यादा सांसद ऐसे हैं जिन्हें दिल्ली में भी सरकारी बंगले आवंटित हैं और भोपाल में भी।
दरअसल, सांसदों को यह बंगले मुख्यमंत्री के विशेषाधिकार के तहत मिलते हैं। लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष सुषमा स्वराज और केंद्रीय मंत्री कमलनाथ को केंद्र सरकार ने दिल्ली और राज्य सरकार ने भोपाल में बड़े बंगले आवंटित किए हैं। जिन सांसदों ने भोपाल में बंगले नहीं लिए, उन्होंने अपने लोकसभा क्षेत्र में आवंटित करा लिए हैं।
महाराष्ट्र, राजस्थान, छत्तीसगढ़, गुजरात, पंजाब और हरियाणा में सांसदों को सरकारी मकान आवंटित नहीं किए जाते हैं, लेकिन मप्र में यह सरकारी सुविधा लेने में सत्तारूढ़ दल के सांसदों के साथ-साथ कांग्रेस सांसद भी पीछे नहीं हैं।
कांग्रेस के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष कांतिलाल भूरिया, नवनियुक्त अध्यक्ष अरुण यादव, सज्जन सिंह वर्मा के साथ भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष नरेंद्र सिंह तोमर, प्रभात झा को भी यहां सरकारी बंगला मिला हुआ है। इसी तरह भाजपा सांसद राकेश सिंह को जबलपुर में, दशरथ सिंह लोधी को दमोह में और वीरेंद्र खटीक को टीकमगढ़ में बंगला अलॉट है।
मुख्यमंत्रियों को भी दो बंगले
मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्रियों में एक और परंपरा बढ़ती जा रही है। भोपाल के श्यामला हिल्स क्षेत्र में सीएम हाउस होने के बावजूद मुख्यमंत्रियों को एक और बंगला आवंटित किया गया है। पूर्व मुख्यमंत्री उमा भारती, बाबूलाल गौर और अब मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान भी इसी परंपरा को निभा रहे हैं।
यही नहीं पूर्व मुख्यमंत्रियों को भी सरकारी आवास देने की परंपरा यहीं है। इसी के चलते पूर्व मुख्यमंत्री सुन्दरलाल पटवा और दिग्विजय सिंह के पास भी भोपाल में सरकारी आवास है। यही नहीं स्वर्गीय श्यामाचरण शुक्ल और मोतीलाल वोरा को भोपाल में सरकारी बंगला मिला हुआ हुआ है।
प्रदेश में सांसदों को बंगले देने का औचित्य नहीं
जब सांसदों को दिल्ली में आवास उपलब्ध कराए गए हैं तो उन्हें भोपाल में देने का कोई औचित्य नहीं है। वैसे भी सांसद का प्रदेश की राजधानी में कोई विशेष काम नहीं होता है। ऐसे में उन्हें आवास आवंटित नही किया जाना चाहिए। इससे कई पात्र लोगों को आवास उपलब्ध नहीं हो पाता है।
केएस शर्मा, पूर्व मुख्य सचिव, मप्र
जो मांगते हैं, उन्हें दिया जाता है मकान
ऐसा नहीं है कि सभी सांसदों को राज्य सरकार ने बंगले आवंटित किए हैं। जिन सांसदों ने राजधानी में बंगले आवंटित करने की मांग की है, उन्हें दिए गए हैं। यह परंपरागत व्यवस्था है। इसे समाप्त नहीं किया जा सकता।
बाबूलाल गौर, गृहमंत्री, मप्र