भोपाल: भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के राष्ट्रीय और राज्य स्तर पर चल रहे प्रचार अभियान भले ही पार्टी के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार नरेंद्र मोदी को शामिल किए जाने से ही पूरे होते हों, मगर मध्य प्रदेश में ऐसा नहीं है। पार्टी और राज्य सरकार के प्रचार अभियान में मोदी की तस्वीर गायब रहने की बात आम है।
मध्य प्रदेश सरकार ‘नदी जोड़ो अभियान’ उत्सव के तहत नर्मदा नदी के क्षिप्रा में मिलने को बड़ी उपलब्धि बनाने में जुटी है। ‘नर्मदा-क्षिप्रा सिंहस्थ लिंक परियोजना’ के लोकापर्ण का जोरशोर से प्रचार किया जा रहा है। इस आयोजन के प्रचार प्रसार के लिए जो विज्ञापन अखबारों में जारी किए हैं, उनमें पार्टी के बड़े नेताओं की तस्वीर तो है, मगर मोदी को यहां जगह नहीं मिली है।
राज्य के जनसंपर्क विभाग द्वारा जारी किए गए पूरे पेज के विज्ञापनों में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की आदमकद तस्वीर है, तो ऊपरी हिस्से में पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के और चौहान के समानांतर कार्यक्रम में हिस्सा ले रहे पूर्व उप प्रधानमंत्री लालकृष्ण आडवाणी, लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष सुषमा स्वराज, भाजपा के पूर्व अध्यक्ष नितिन गडकरी, महासचिव अनंत कुमार, योग गुरु बाबा रामदेव और राज्य के कई नेताओं की तस्वीरें हैं।
राज्य की भाजपा इकाई और सरकारी विज्ञापनों में मोदी की तस्वीर न होने का यह पहला मामला नहीं है। इससे पहले विधानसभा चुनाव के दौरान पार्टी के कई पोस्टर और विज्ञापनों में भी मोदी की तस्वीरें गायब थीं। भाजपा के तीसरी बार सत्ता में आने के बाद यह पहला मौका है, जब सरकारी विज्ञापन में पार्टी दिग्गजों की तस्वीरें नजर आ रही हैं, मगर पार्टी का चेहरा बन चुके मोदी की तस्वीर नदारद है।
राजनीति के जानकारों का मानना है कि मोदी और चौहान के आपसी रिश्ते कुछ ठीक नहीं हैं और चौहान की गिनती भी आडवाणी समर्थकों में होती है। आडवाणी तो चौहान के उन प्रशंसकों में से हैं, जो कई मामलों में उन्हें मोदी से बेहतर तक बताने में नहीं चूकते। यही कारण है कि राज्य में संगठन और सरकारी स्तर पर होने वाले प्रचार अभियान में मोदी को तरजीह देने को ज्यादा अहमियत नहीं दी जाती है।
जानकारों की मानें, तो चौहान खुद को मोदी की ही तरह तीसरी बार जीतने वाला मुख्यमंत्री मानते हैं, जो उनके राज्य गुजरात के बराबर का राज्य है। इतना ही नहीं ऐसे कम ही अवसर हैं, जब उन्होंने सीधे तौर पर यह स्वीकारा हो कि मोदी उनके नेता हैं। इसकी भी वजह यह है कि चौहान अपनी धर्मनिरपेक्ष छवि के कारण संगठन में खुद को मोदी का विकल्प मानते हैं।
वरिष्ठ पत्रकार शिव अनुराग पटैरिया का कहना है कि मुख्यमंत्री चौहान के क्रियाकलाप और भावभंगिमा इस बात का संकेत देते हैं कि वे अपने को मोदी के समतुल्य मानते हैं न कि उनका अनुयायी। पार्टी ने भले ही मोदी को अपना नेता मान लिया हो, मगर चौहान के लिए ऐसा नहीं है। इस बात को वे मौके बे मौके जाहिर करते भी रहते हैं।
वहीं, भाजपा के प्रदेश मीडिया प्रकोष्ठ के प्रभारी डॉ. हितेश वाजपेयी का कहना है कि ‘नर्मदा-क्षिप्रा लिंक सिंहस्थ परियोजना’ का लोकापर्ण सरकारी कार्यक्रम है और इसको लेकर जारी विज्ञापनों में आमंत्रित अतिथियों की तस्वीरें ही दी गई हैं। मोदी कार्यक्रम में नहीं आ रहे हैं, लिहाजा उनकी तस्वीर नहीं है। राज्य सरकार के विज्ञापनों में मोदी की तस्वीर का न होना इस बात का संकेत है कि पार्टी के भीतर भी मोदी के लिए चुनौतियां कम नहीं हैं, क्योंकि चौहान की गिनती मोदी के विकल्प के तौर पर भी होती रही है।