राकेश दुबे@प्रतिदिन। देश के महामहिम राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी द्वारा संसद में आयोजित एक कार्यक्रम के दौरान जो नसीहत दी है, उसे सिर्फ आआपा के लिए मानना निश्चित ही गलतफहमी है| नसीहत आआपा की बहाने सभी को दी गई है|
“राष्ट्रपति ने कहा कि कानून बनाने के लिए राजनीतिक पार्टियों को संसद की शुचिता का ध्यान रखना चाहिए। उन्होंने कहा कि कानून की वैधानिकता को उचित ठहराने का हक सिर्फ कोर्ट को है।“
प्रत्येक शब्द गौर करने लायक है| संसद में रोज़ हो रहे अखाडेबाजी की ओर इशारा संसद की शुचिता शब्द में निहित है| संसद और विधानसभा में रोज़ एक दूसरे के दोष निकालने की परम्परा पर भी उन्होंने कटाक्ष किया है| क्या संसद या किसी अन्य सदन की शुचिता कायम करना सिर्फ सत्ता या प्रतिपक्ष का ही काम है, शायद नहीं| राजनीतिक दलों का शायद ज्यादा है, क्योंकि वे ही नानाविध टिकट का वितरण करते है और शुचिता यही से शुरू होती है, फिर किसे और क्यों भेज रहे है? उसकी योग्यता और अयोग्यता क्या है? यह दल के विचार क्षेत्र में आता है| यह शुचिता ही सदन का चरित्र निर्माण करती है|
उन्होंने कहा है कि 'संविधान का पालन करना हर पार्टी का नैतिक दायित्व है। कोई भी कानून संविधान के दायरे में ही बनना चाहिए।' यहाँ से सबक आ आ पा के लिए है| दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने कहा है कि अगर जनलोकपाल बिल पास नहीं हुआ तो वह इस्तीफा दे देंगे। उन्होंने कहा कि वह सत्ता में कुछ करने के लिए आए हैं और स्वराज के लिए वह सौ बार मुख्यमंत्री की कुर्सी कुर्बान करना पसंद करेंगे। उनके इस कदम को उप राज्यपाल नजीब जंग पसंद नहीं कर रहे हैं और समर्थकों के साथ प्रतिपक्ष भी इसे राजनीतिक प्रहसन ख रहा है | इस तरह के छोटे बड़े प्रहसन देश के हर सदन में हो रहे हैं, राष्ट्रपति के साथ आप की भी चिंता का विषय होना चाहिए , यह सब|
लेखक श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।
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rakeshdubeyrsa@gmail.com
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