संविधान आपका मफलर नहीं है, मि० केजरीवाल

राकेश दुबे@प्रतिदिन। या तो आ आ पा के नेता बौरा रहे हैं, या जानबुझकर ऐसी परिस्थिति उपस्थित कर रहे हैं, जिससे दिल्ली सरकार का  अवसान ऐसे तरीके से हो जिसका पूरा राजनीतिक लाभ उन्हें मिले|

राजनीतिक लाभ लेने के मुद्दे पर अन्नाहजारे की मनाही कर बावजूद इस पार्टी का गठन हुआ, लेकिन किसी ने यह नहीं सोचा था कि यह सरकार संविधान और उससे बनी परम्पराओं को भी ताक में रख देगी| देश का  संविधान अनेक  संशोधनों के बावजूद विभिन्न राजनीतिक मतभेदों के बावजूद अनेक विचार, वाद और विवाद के बावजूद काम  तो कर ही रहा है| दिल्ली की वर्तमान सरकार संविधान के साथ दोहरे खेल, खेल रही है|

संविधान के अधिकारों का तो वह उपयोग करना चाहती है, परन्तु सरकार के संवैधनिक दायित्वों की अनदेखी कर| आम आदमी पार्टी जनलोकपाल को उपराज्यपाल, गृह मंत्रालय  से होते हुए राष्ट्रपति को भेजने की बजाय स्टेडियम में पारित करवाने के पक्ष में है। दूसरी तरफ शीला दीक्षित पर कार्रवाई करने के लिए उसी संविधान के अंतर्गत राष्ट्रपति को पत्र लिखती है और धरना प्रदर्शन करती है| साथ ही गफलत का आलम यह है की जिस स्टेडियम में वह यह कार्यक्रम करना चाहती है, वह उस दिन उपलब्ध नहीं है और तो और दिल्ली के उपराज्यपाल ने भी अभी तक इस सत्र की अनुमति नहीं दी है| जाहिर है अनुमति संविधान कर तहत ही मांगी गई है और न मिलने पर फिर आन्दोलन|

कांग्रेस की माने तो दिल्ली सरकार के मंत्रिमंडल द्वारा जिस जनलोकपाल विधेयक के मसौदे को मंजूरी दी गई है वो पूरी तरह न केवल नियमों के विरुध्द है, बल्कि अंसवैधानिक भी है। कांग्रेस विधयक पक्ष का कहना है कि सरकार की नीयत राजधानी में मजबूत जनलोकपाल लाने नहीं है इसीलिए वह गैरकानूनी तरीका अपना रही है और चाहती है कि कांग्रेस समर्थन वापिस ले ले ताकि वे अपनी जिम्मेदारियों से बच जाएं।

वैसे दिल्ली सरकार जो कभी संविधान से कभी दायें- कभी बाएं चलने की कोशिश कर रही है, उसे समझना चाहिए की देश का संविधान मि० केजरीवाल का मफलर नहीं है, जब चाहे बांध लिया और जब चाहे उतार दिया| 



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