राकेश दुबे/प्रतिदिन। प्रदेश के अधिसंख्य पालक और उनसे अधिक प्रदेश के बालक मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह की इस नसीहत कि “व्यापम” जैसे घोटाले अब और न हो,से घबरा गये हैं | इन घोटालों के आलावा व्यापम में ऐसे तत्व व्याप्त है, जो शिवराजसिंह के “जीरो टालरेंस” से एकदम उलट है |
व्यापम की परीक्षा और उसके परिणाम के बीच कई ऐसी कड़ियाँ है, जो अभी तक छिपी है और उन्हें उजागर करने में कई उन चेहेरों से नकाब उठ सकता है, जो अभी अपने सदाचारी ताबीज को दिखा कर व्यापम में व्याप्त हैं |
कोई भी जाँच एजेंसी इस बात की पड़ताल नहीं कर रही है, कि परीक्षा फ़ीस के नाम पर वसूली गई फ़ीस की राशि का क्या हुआ ? क्या उसका व्यय युक्तियुक्त तरीके से हुआ है ? जिन सेवानिवृतों को लाखों रुपयों का मेहनताना रोज़ मिला उन्होंने अपनी आँखें क्यों मींच रखी थी ? कितने लोग व्यापम की एक शाखा में बरसों से हैं ? व्यापम से निकलकर किसने निजी मेडिकल और डेंटल कालेजों में एडमिशन का खेल खेला ? जिस अधिकारी पर कम्प्यूटर खरीदी में घपले के आरोप लगे उसे किस मंत्री ने संरक्षण दिया ? और पंकज त्रिवेदी किससे फोन पर बतियाते थे दिन में कई दफा ?
बात को दबाने का अंदाज़ है, अग्रिम नसीहत इससे भ्रष्टाचार “जीरो टालरेंस” नहीं कुछ और संकेत मिलता है, शिवराज जी |
