भोपाल। संपत्तिकर हड़पने में सिर्फ एक वार्ड या दो वार्ड प्रभारी ही शामिल नहीं हैं, बल्कि दर्जनों वार्ड में संपत्तिकर के साथ ही अन्य करों एवं शुल्क वसूली के बाद करोडों की गड़बड़ी की गई। आश्चर्य है कि, साल-दर-साल आॅडिट भी होता गया और किसी पर भी आंच तक नहीं आई।
यही हाल राजस्व वसूली के लिए सीधे तौर पर जिम्मेदार जोन अधिकारियों और राजस्व अधिकारियों का भी हैं, जो कि संपत्तियों के बढने के बाद भी कर वसूली नहीं बढ़ने पर रहस्यमय मौन साधे रहे। हद तो यह है कि, भ्रष्टाचार के आरोपों में हटाए जाने वाले वार्ड प्रभारियों के खिलाफ कार्रवाई करने के बजाय दूसरे वार्डों में पदस्थ कर दिया गया।
नगर निगम के वार्ड कार्यालयों में राजस्व वसूली एवं संग्रहण में गड़बड़ी की शिकायतें सालों पुरानी हैं, लेकिन हर बार वार्ड प्रभारी को सस्पेंड करने या दूसरे वार्ड में पदस्थ करने के अलावा कभी एफआईआर दर्ज नहीं करवाई गई। संपत्तिकर का मूल्यांकन करने और जमा करने में वार्ड प्रभारी, जोन अधिकारी और आॅडीटर की सीधी भूमिका रहती है, बिना इनके एक रुपया भी निगम खाते में जमा नहीं हो सकता। प्रक्रिया यह है कि, वार्ड प्रभारी दिनभर की वसूली जोन अधिकारी को देगा और आडीटर से चेक करवाने के बाद निगम खाते में राशि जमा हो जाएगी। ऐसे में बिना तीनों की मिलीभगत के संपत्तिकर घोटाला हो ही नहीं सकता। इस मामले की जांच की जा रही है।
घोटाला 28 से बढ़कर 42 लाख पहुंचा
वार्ड-41 में संपत्तिकर एवं अन्य करों की वसूली में घोटाले का 28 लाख का शुरुआती आंकड़ा था, जोकि बढ़कर 42 लाख तक पहुंच गया है। हालांकि, इस बारे में अभी निगम प्रशासन अधिकृत पुष्टि नहीं कर रहा है। नगर निगम आयुक्त विशेष गढपाले ने वार्ड 41 में हुई करों की वसूली में हेराफेरी की जांच 7 दिन में करने का जिम्मा राजस्व अधिकारी प्रदीप वर्मा और उपायुक्त श्रीराम तिवारी को दिया गया है। जांच का सिलसिला सोमवार से शुरू होगा, लेकिन इसी बीच घोटाले की अनुमानित राशि 28 लाख से बढ़कर 42 लाख तक पहुंच गई है। सूत्रों के अनुसार, शुरुआती दौर में दो वार्ड प्रभारी घेरे में हैं, एक दीपक भालेराव और दूसरा अवध नारायण मकोरिया। इनके अलावा एक चपरासी श्याम सिंह और बीते चार में पदस्थ रहने वाले जोन अधिकारी, पीएचई के सहायक यंत्री और राजस्व विभाग के अधिकारी एवं कर्मचारी भी हैं।