भोपाल। निगम-मंडलों को भंग करने का फैसला केवल मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान का नहीं था, बल्कि इसके लिए दिल्ली से लाइन मिली थी। भाजपा के राष्ट्रीय नेतृत्व ने लोकसभा चुनाव के मद्देनजर संतुष्ट और असंतुष्टों को साधने के लिए मप्र के निगम मंडलों को भंग करने के निर्देश दिए थे।
इससे पूर्व एक सप्ताह पहले पड़ोसी भाजपा शासित राज्य छत्तीसगढ़ में भी इन सार्वजनिक उपक्रमों की राजनीतिक नियुक्तियां निरस्त कर दी गई थी। मप्र में करीब 90 निगम-मंडल, प्राधिकरण परिषद, बोर्ड, सहकारी संस्थाएं और आयोग है। शासन ने दो दिन पहले ही आयोग, सहकारी संस्थाआें और इंदौर विकास प्राधिकरण को छोड़कर सभी निगम-मंडल, परिषद और बोर्ड की राजनीतिक नियुक्तियां निरस्त कर दी है।
पिछली शिवराज सरकार के कार्यकाल में करीब तीन दर्जन उपक्रमों में राजनीतिक नियुक्तियां की गई थी। शिवराज सरकार ने नियुक्तियों को निरस्त करने का यह कदम पहली बार उठाया। इनमें पांच उपक्रमों के पदाधिकारी विधानसभा चुनाव जीतने के बाद विधायक निर्वाचित हुए हैं। पार्टी सूत्रों के अनुसार, अब पार्टी के सामने लोकसभा चुनाव एक चुनौती है। इसी चुनौती के चलते सभी संतुष्टों और असंतुष्टों का साधने के लिए सत्तारूढ़ भाजपा ने यह कदम उठाया है।
सूत्रों के मुताबिक,सार्वजनिक उपक्रमों में अध्यक्ष और उपाध्यक्ष के दावेदारों से लोकसभा चुनाव की तैयारियों में जुटने के लिए कहा गया है। पार्टी भी मानकर चल रही है कि इन दावेदारों के परफार्मेंस के आधार पर उनकी राजनीतिक नियुक्तियां होगी। मालूम हो कि पार्टी ने विधानसभा चुनाव के दौरान टिकट मांगने वाले असंतुष्ट और नाराज लोगों को चुनाव बाद लाल बत्तियों का भरोसा दिया गया था।