सरकारी अफसरों ने बेच डाली करोड़ों की बेशकीमती सरकारी जमीन

भोपाल। करोड़ों की सरकारी जमीन को राजस्व अफसरों की मिलीभगत से राजस्व रिकॉर्ड में हेराफेरी करके रजिस्ट्री करवाने के बाद नामांतरण करवा दिया गया। यह मामला सीहोर जिले का है, जिसमें अपर तहसीलदार, नायब तहसीलदार, पटवारी और उप पंजीयक को सरकारी जमीन को निजी ठहराकर बिकवाने में संलिप्त होने के चलते दोषी पाया गया है।

ऐसे में बेशकीमती 60 एकड़ जमीन को फिर से सरकारी घोषित करने के साथ ही शासकीय संपत्ति को खुर्द-बुर्द करने के आरोप में एफआईआर करवाने की तैयारी में प्रशासन जुट गया है। गौरतबल है कि सीहोर में लगभग 60 एकड़ सरकारी जमीन को निजी नाम पर दर्ज करके कई बार बेचा गया है।

इससे पूर्व में जमीन के सरकारी होने का तथ्य दब गया और जमीन को निजी बताकर खसरा में दर्ज कर दिया गया। खास बात यह है कि इस जमीन के नक्शे व खसरों पर डाली गई बंटाने भी बिना किसी सक्षम अधिकारी के आदेश के उठा दी गई हैं। इन जमीनों की धड़ल्ले से रजिस्ट्रियां व नामांतरण भी अधिकारियों द्वारा किए गए।

पटवारी से लेकर तहसीलदार तक...
इस जमीन घोटाले से जुड़े तमाम दस्तावेज सीहोर निवासी और जनपद सदस्य राजू विश्वकर्मा ने आरटीआई में निकाले और संभागायुक्त से शिकायत की। इसके बाद जांच का जिम्मा एसडीएम हृदयेश श्रीवास्तव

को सौंपा गया। जिस पर जांच में पाया कि ग्राम रत्नाखेड़ी की 60 एकड़ जमीन खुर्दबुर्द करने के लिए अपर तहसीलदार राजेंद्र पवार,नायब तहसीलदार सरोज अग्निवंशी, नरेंद्र बाबू यादव (वर्तमान होशंगाबाद), पटवारी संतोष प्रजापति, शिवचरण मेवाड़ा (वर्तमान में मृत) और उप पंजीयकों राजेश शाही (वर्तमान डिप्टी कलेक्टर, होशंगाबाद), श्रीमती जयश्री हरलानी, एमएस राठौर एवं उत्तमचंद बंसल (वर्तमान में सेवानिवृत्त) जिम्मेदार हैं।

कलेक्टर दर्ज करवाएंगे एफआईआर
जांच रिपोर्ट 18 फरवरी,13 को ही संभागायुक्त कार्यालय पहुंच चुकी थी। इसके बाद क्वेरी शुरू हो गई और फिर से जांच रिपोर्ट को सीहोर कलेक्टर को भेज दिया गया। इसके बाद फिर से गहन विवेचना के बाद कलेक्टर ने संभागायुक्त को 23 दिसंबर,13 को लिखे पत्र में साफ किया है कि जमीन घोटाले में शामिल अधिकारियों कर्मचारियों के खिलाफ एफआईआर करवाई जा रही है। इसके साथ ही विभागीय कार्रवाई के लिए विभागीय प्रमुख सचिव को भी लिखा गया है।

फर्जी विक्रय से लेकर नामांतरण तक
संभागायुक्त भोपाल को एसडीएम सीहोर हृदयेश श्रीवास्तव द्वारा भेजी गई जांच रिपोर्ट में साफ है कि रत्नाखेड़ी गांव के खसरा नंबर 191 व 192 रकबा क्रमश: 8.292 व 11.104 हेक्टेयर चरोखर निस्तार के नाम से राजस्व रिकॉर्ड में दर्ज थी। वर्ष 2001-02 में बिना किसी सक्षम अधिकारी के आदेश के इस जमीन के खसरे व नक्शे में बंटान डाल दी गई। खसरा नंबर 195 और 196 नए बनाकर इसमें तीन-तीन एकड़ जमीन क्रमश: आसिफ खां और शफीक खां के नाम चढ़ा दी गई। इसके बाद वर्ष 2009-10 में यह दोनों जमीनें भोपाल निवासी संदीप सिंह को बेच दी गर्इं। तत्कालीन नायब तहसीलदार ने इसका नामांतरण भी कर दिया। 

इसी तरह खसरा नंबर 671, 672 में बिना किसी आदेश के पटवारी ने निजी लोगों के नाम दर्ज कर दी और बाद में यह जमीनें बेच दी गर्इं। इस दौरान खसरा नंबर 673 675, 676 भी सामने आए हैं। जांच रिपोर्ट में 174 की 4.326 हेक्टेयर भूमि को निजी लोगों के नाम दर्ज कर दिया गया। इसमें बटन कोरकू का नाम काटकर कुडमी कर दिया गया। खसरा नंबर 731 की जमीन राजस्व रिकॉर्ड में जंगल की जमीन घोषित है, लेकिन वर्ष 1992-93 में अधीक्षक भू-अभिलेख ने अनाधिकृत रूप से 5 लोगों को पट्टे जारी कर दिए। इसके बाद इसमें से 3.87 एकड़ जमीन बेच दी गई और तहसीलदार ने उसका नामांतरण भी किया। जांच रिपोर्ट में कहा गया है कि इन शासकीय जमीनों का विक्रय बिना किसी सक्षम अधिकारी के आदेश के किया गया है।


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