राकेश दुबे@प्रतिदिन। रशीद मसूद , लालू यादव और जगदीश शर्मा की संसदीय सदस्यता समाप्त कर दी गई, भारतीय राजनीति का यह एक पहलू है| बड़ी मुश्किल और मशक्कत के बाद भारतीय संसद में यह कदम उठा|
दो बड़े राजनीतिक दल जो इस देश में गठ्बन्धन बनाकर चुनावी राजनीति को विकल्पहीनता के घटाटोप में धकेल देना चाहते थे, उन्हें देश के सर्वोच्च न्यायालय ने एक फैसले के माध्यम से राह दिखाई थी| अब प्रश्न यह है की आगामी विधानसभा और लोकसभा चुनाव में ये दल दागियों से कितना परहेज बरतते हैं ?
भारत में यूँ तो राजनीति में शुद्धता की दुहाई हमेशा दी जाती रही है, लेकिन गाल बजाने से ज्यादा कोई कार्रवाई कभी नहीं हुई| उल्टे दागी संसद के दोनों सदनों को अभ्यारण मानकर इस सुरक्षा कवच को प्राप्त करने के सारे उपाय करने लगे और बड़े राजनीतिक दलों ने उनकी इस उद्देश्य में सहायता भी की| परिणाम स्वरूप प्रत्येक दल में ऐसे लोगों की संख्या बढने लगी और न्यायालय की सदाशयता का लाभ उठाकर सुनवाई को लम्बे समय तक टालना एक फैशन हो गया|
पिछला दशक यदि घोटालों के कीर्तिमान के लिए जाना जायेगा तो उस पर निर्वाचित सदनों में दागियों को प्रश्रय देने और सबसे बड़ी अदालत द्वारा देशहित में दिए गये फैसले को तोड़ने-मरोड़ने का भी गंभीर आरोप है| इस दशक के अंतिम वर्ष में सर्वोच्च न्यायलय के इस फैसले के साथ ही एक फैसला केन्द्रीय सूचना आयोग का भी आया था| जिसे राजनीतिक दलों ने हवा में उडा दिया| पारदर्शिता दल के स्तर पर भी जरूरी है| दल भले दागियों को टिकट दे “नोटा” का अधिकार तो नागरिकों को मिला है| दल गलत उम्मीदवार चुन सकते हैं आप सही चुने|