अध्यापकों को लगातार ठगने वाली बीजेपी सरकार ले रही झूठा श्रेय

मध्यप्रदेश सरकार के मुख्यमंत्री श्री शिवराज सिंह चौहान इन दिनों इतना आत्ममुग्ध हो गए हैं कि उन्हें ये तक नहीं पता कि उनके आला अफसर उनकी घोषणाओं का किस तरह फजीहत कर रहे हैं।

मुख्यमंत्री महोदय जरा यह जहमत क्यों नहीं उठाते कि जिन लोगों को कुछ देनें का उन्हें आत्मबोध है उन लोगों को वास्तव में क्या मिला। कहीं उनके अफसर ही हास्यास्पद आदेश जारी कर उनके रथ का पहिया रोकने की कवायद में तो नहीं जुटे हैं। हाल ही में अध्यापकों के लिए तथाकथित समान कार्य समान आदेश से तो उपरोक्त बातों की ही पुष्टि होती है।

भाजपा सरकार अत्यन्त गर्व से कहती है कि उसने कर्मी  कल्चर समाप्त किया है । लेकिन इससे क्या फर्क पड़ता है ? भाजपा सरकार जनता और अध्यापकों को जरूरत से ज्यादा ही कम अक्लमंद समझने लगी है।

मुद्दा कर्मी कल्चर समाप्त करने का ना होकर प्रदेश में अध्यापकों की दर्जन भर से ज्यादा प्रजातियों को एक नाम , एक काम और एक दाम देने का था जो इस सरकार ने पूर्व के चुनाव घोषणापत्र में शामिल होने के बावजूद इस कार्य को नहीं कर पाई?।

इसके उलट बेरोजगारों का माखौल उड़ाने , शोषित करने और अन्त में झूठे वादों के मकड़जाल में फाँदकर उनका राजनैतिक उपयोग करने के लिए एक नई प्रजाति को जन्म दिया जिसे 'अतिथि अध्यापक' कहा जाता है।

चूँकि भाजपा सरकार स्वयं को अध्यापकों या शिक्षाकर्मियों का भगवान समझती है , इसलिए अध्यापकों के इतिहास को सामने लाना जरूरी हो गया है । साथ ही बताना कि दरअसल न काँग्रेस की चलती है , न भाजपा की चलती है ।यहाँ अध्यापकों के मामले में सिर्फ आला अफसरों की चलती है। वे जो चाहते हैं वही देते हैं।

1998 में जब शिक्षक संवर्ग को पाँचवाँ वेतन मिल रहाथा तब शिक्षाकर्मियों को चौथे वेतनमान पर नियुक्त किया गया। इस हिसाब से भी जब 2006 में शिक्षक संवर्ग को छठा वेतन मिल गया तब ही कम से कम ईमानदारी से पाँचवाँ वेतन तो देना चाहिए था। मगर बीजेपी सरकार ने छठा वेतनमान के डेढ़ वर्ष बाद 1 अप्रैल 2007 से अध्यापक संवर्ग गठित कर पाँचवे वेतन में 1000 रुपए व 50 प्रतिशत डीए की चोरी कर वेतन निर्धारण किया।

तब बीजेपी सरकार ने छठा तो नहीं ही दिया , पाँचवा वेतन भी ईमानदारी से नहीं दिया ।अब जबकि सिर पर चुनाव हैं तथाकथित समान कार्य समान वेतन के नाम पर हास्यास्पद आदेश जारी कराती है । इस आदेश में शिक्षक संवर्ग को 2006 में मिल  चुका छठा वेतनमान अध्यापक संवर्ग को 2017 में मिल सकेगा जिसके लिए भी तत्कालीन सरकार अलग से आदेश जारी करेगी और अगर मिल भी जाता है तो भी  कोई बड़ी बात नहीं क्योंकि तब शिक्षक संवर्ग एक डेढ़ वर्ष पूर्व ही सातवाँ वेतन पा चुका होगा।

इस आदेश का चहुँ ओर विरोध हो रहा है । आदेश की होली जलायी जा रही है । इस आदेश में विसंगतियाँ नहीं , इस आदेश का हर शब्द अध्यापकों के लिए गाली है जो शिवराज सरकार की ओर से अध्यापकों को सप्रेम भेंट है ।

इस आदेश के बारे में जैसे-जैसे जानकारी अध्यापकों तक पहुँच रही है , अध्यापकों का आक्रोश बढ़ता जा रहा है । यद्यपि यह स्पष्ट हो चुका कि अध्यापक हमेशा ही वेतन में दस वर्ष पीछे रहे हैं , हैं और रहेंगे । ऐसी परिस्थितियों को देखकर कतई नहीं लगता कि इस आदेश में मुख्यमंत्री महोदय की कोई रुचि रही है । अफसरों को जो देना होता है , वही देते हैं । अगर अध्यापकों को एक वेतनमान पीछे रखने का शासन की मंशा ही है तो फिर मुख्यमंत्री श्री शिवराज सिंह चौहान ने छठा वेतनमान 2017 में देने का कोरा आदेश जारी कर कौन सा नया काम किया है । अगर भाजपा रही सही छवि बचाना चाहती है तो झूठा श्रेय लेने से दूर रहे ।

यह विचार मध्यप्रदेश के एक वरिष्ठ अध्यापक हैं जिन्होंने अपना नाम प्रकाशित ना करने का आग्रह किया है।

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