उपदेश अवस्थी@लावारिस शहर। 17 साल में लगभग 700 बार नेताओं की चौखटों से यूज एंड थ्रो होते आ रहे अध्यापकों को मध्यप्रदेश के मामा एक बार फिर मामू बना गए। जिस समान वेतन के नाम पर उमा भारती ने अध्यापकों का पैर पूजन किया था उसी समान वेतन के नाम पर ना केवल 10 साल बाद 2013 बल्कि 2018 में भी बल्क वोटिंग की जुगाड़ कर गए शिवराज सिंह।
अध्यापकों को चार साल में चार किश्तों में समान वेतन देने की घोषणा की गई है। अध्यापकों के सामने यह एक ऐसी गाजर बांध दी गई है जिसे अगले चुनाव तक अध्यापक खा नहीं पाएंगे। अध्यापकों को अगले पांच साल तक चुपचाप सरकार के सामने दुम हिलाने का इससे बेहतर कोई फार्मूला नहीं हो सकता था। अब ना केवल 2013 में बल्क वोटिंग की सेटिंग हो गई बल्कि पूरे पांच साल की शांति के इंतजाम भी हो गए। घोषणा की गई है, कोई गजट नोटिफिकेशन तो है नहीं जो पलट ना सकें, कोई भरोसा नहीं शिवराज पूरे पांच साल यहां बिताएंगे भी या नहीं।
क्या पता मोदी का पीछा करते करते उपप्रधानमंत्री के ख्वाबों में खो जाएं और दिल्ली निकल जाएं। अध्यापक फिर हो जाएंगे लावारिस। सवाल बहुत सारे हैं और जवाब सिर्फ एक। बीजेपी ने चाल बहुत अच्छी चली है। अध्यापक संगठनों के नेताओं में फूट है परंतु अध्यापकों की मांग भी है। इसे कुछ इस तरह पूरा किया गया कि पूरी होती हुई दिखाई भी दे और पूरा करना भी ना पड़े। ठीक वैसे ही जैसे मासूम बच्चों को कटोरे में चांद दिखा दिया जाता है।
अब देखना यह है कि अध्यापक संवर्ग और इसके नेता क्या कुछ कदम उठाते हैं, उठाते भी हैं या ....।
