भोपाल। पिछले कई दिनों से सहकारिता लोनकांड में फंसे आईएएस रमेश थेटे अंतत: सेट हो ही गए। उन्हें आवास एवं पर्यावरण मंत्रालय दिया गया है। इससे पहले उन्हें लोक सेवा प्रबंधन का उपसचिव बनाया गया था, लेकिन यहां मामला जम नहीं पाया।
सनद रहे कि रमेश थेटे 8 जनवरी 2001 से फरवरी 2002 तक संचालक रोजगार एवं प्रशिक्षण संचालनालय जबलपुर में पदस्थ रहे। उसी दौरान राज्य सहकारी बैंक से उनकी पत्नी मंदा ने स्मार्ट ऑडियो कम्युनिकेशन के नाम पर 25 लाख रुपए का लोन लिया।
इसके लिए मंदा ने एक मकान को गिरवी भी रखा था। आरोप था कि जिस मकान को बंधक बनाया गया था, उसका वास्तविक मूल्यांकन मात्र 8 लाख रुपए था, जबकि बैंक के तत्कालीन कन्सल्टिंग इंजीनियर बीके सेठ (अब स्वर्गीय) ने तत्कालीन शाखा प्रबंधक देशपाण्डे से सांठगांठ करके बंधक बनाए गये मकान की कीमत 25 लाख 26 हजार रुपए आंकी थी।
इस मामले के उजागर होने के बाद आरोप लगाए गए कि आईएएस रमेश थेटे ने अपने पद का दुरुपयोग करते हुए अपनी पत्नि के नाम से लोन लिया जिसे चुकाया नहीं गया। यह शुरूआत से ही षडयंत्रपूर्वक बुना गया जाल था जो जांच में साबित भी हुआ।
लोकायुक्त की विशेष अदालत ने आईएएस अफसर रमेश थेटे की पत्नी मंदा थेटे और राज्य सहकारी बैंक के तत्कालीन शाखा प्रबंधक केशव देशपाण्डे को एक-एक साल की सजा सुनाई लेकिन सबूतों के अभाव में रमेश थेटे बरी हो गए।
बरी होने के बाद एक बार फिर उनकी पोस्टिंग को लेकर कशमकश शुरू हुई और उन्हें लोकसेवा प्रबंधन विभाग का उपसचिव बनाया गया, परंतु यहां मामला जमा नहीं और अब पुराने आदेश को बदलते हुए आवास एवं पर्यावरण विभाग में उपसचिव पदस्थ कर दिया गया है।