प्रदेश में अवैध मेडिक़ल स्टोरों का फर्जीवाड़ा

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आत्माराम यादव/ होशंगाबाद। मध्यप्रदेश स्टेट फार्मेन्सी कौन्सिल के गठन के 65 वर्ष पश्चात वर्ष 2005 तक छत्तीसगढ़ को शामिल किये 5 हजार 802 फार्मासिस्ट पंजीकृत थे और उतने ही मेडीकल स्टोर इन दोनों प्रदेशों में थे, लेकिन भोपाल स्थित फार्मेन्सी कौन्सिल कार्यालय में आकस्मिक लगी आग से सारा रिकार्ड जल जाने के बाद अवैध एवं फर्जी मेडिकल स्टोरों की बाढ़ आ गयी।

7 जुलाई 2006 को फार्मेन्सी परिषद के चुनाव के बाद प्रदेश में 6 वर्षो में अवैध चल रहे इन मेडिकल स्टोरों में 20 हजार 98 मेडिक़ल स्टोरों को जीवनदान मिल गया जबकि 67 फार्मासिस्टों के नवीनीकरण को दस्तावेज के अभाव में रोक दिया गया है।

फार्मेन्सी एक्ट 1948 के अस्तित्व में आने तथा 21 सितम्बर 1978 को राजपत्र में मध्यप्रदेश फार्मेन्सी औषध निर्माण शाला परिषद नियम के क्रियान्वयान में आने के बाद से वर्ष 2005 तक मध्यप्रदेश के जिलों में पंजीकृत फार्मासिस्टों पर नजर डाले तो अलीराजपुर में 1, अनूपपुर 2, अशोकनगर 5, बालाघाट 134, छिन्दवाड़ा 146, बड़वानी 22, बैतूल 68, भिण्ड 86, भोपाल 616,बुरहानपुर 33, छतरपुर 61,दमोह 83,दतिया 20,देवास 90, धार102,डिण्डौरी3,गुना 74,ज्वालियर 260,हरदा 11,होशंगाबाद 112,इन्दौर 513, जबलपुर 447,झाबुआ 42, कटनी 52,खण्डवा-121, खरगौन 129, मण्डला  43, मन्दसौर 175,शुजालपुर 3,मुरैना 122,नरसिंहपुर 90, नीमच 25,पन्ना 17, रायसेन 72, राजगढ़ 74, रतलाम 156, रीवा 75, सागर 125, सतना 107, सीहोर 64, सिवनी 86, शहडोल 75, शाजापुर 78, शिवपुरी 41, सीधी 32, टीकमगढ़ 48,उज्जैन 232,उमरिया 1, विदिशा 97, सरगुजा 20,निमाड 20 सहित छत्तीसगढ़ राज्य के जिलों में रायपुर 218,बिलासपुर 292,दुर्गा 187,राजनांदगॉव 65, भिलाई 16,कन्नोद 3,सरगुजा 20,डोंगरगढ़ 5,बडोदा 1, बस्तर 18 एवं रायगढ़ में 58 पंजीकृत कुल 5802 फार्मास्टि थे जो पूरे प्रदेश में  ड्र्रग निरीक्षकों की मिलीाभगत से हजारों की सॅख्या में थे जो अवैध रूप से मेडिकल स्टोर्स का कारोबार धड़़ल्ले से करते रहे है। जिन अवैध मेडिकल स्टोरो के विरूद्घ कार्यवाही न किया जाना संदेह एवं भ्रष्टाचार की ओर संकेत देता है।

पूरे प्रदेश में कुकुरमुत्तों की तरह संचालित मेडीकल स्टोरों पर लगान लगाने में नाकामयाब सरकार ने फार्मेन्सी कौन्सिल दफ्तर में लगी आग के बाद जलकर नष्ट हुये रिकार्ड को संधारित करने की बजाय तत्कालीन संचालक द्वारा-10-15 हजार रूपये में फर्जी फार्मासिस्ट प्रमाणपत्र बेचे जाने पर रोक नहीं लगायी। अलबत्ता मामला पुलिस के पास पहुॅचा और इन फर्जी प्रमाणपत्रों को बनाने वाले फार्मेन्सी कौसिंल के संचालक को गिरफ्तार कर लिया गया किन्तु तत्कालीन संचालक शैलेन्द्र वर्मा एवं रजिस्ट्रार के.एस. राजपूत के फर्जी हस्ताक्षर से बनने वाले प्रमाणपत्रों पर रोक नहीं लगाई जा सकी। सरकार ने इस दरम्यान हजारों की सॅख्या में खुले मेडीकल स्टोरों पर प्रतिबन्ध लगाने एवं उनके दस्तावेज जॉच करने की बजाय 7 जुलाई 2006 को फार्मेन्सी कौसिंल के चुनाव कराये ताकि कौसिल इसपर निर्णय ले सके। निर्वाचित होकर आई इस नयी फार्मेन्सी कौसिंल के अध्यक्ष बसंत गुप्ता, उपाध्यक्ष सुभाष गुलाठी,  अशोक कुमार जैन, ओमप्रकाश जैन,गौतमचन्द ढिंगा,देवकुमार बडजात्या, सचिन शैलेत, घनश्याम काकमी,राजकुमार बसंल , हेमन्त अग्रवाल एवं एवं रजिस्ट्रार अभय बेडक़र ने पुराने सभी 5802 के अलावा 20 हजार 98 नये फार्मासिस्टों को पंजीयन किया है। इस सम्बन्ध में जब मध्यप्रदेश फार्मेन्सी कौन्सिल परिषद भोपाल के रजिस्ट्रार डाक्टर अभय बेडकर के कार्यालय में उनके दूरभाष क्रमांक-2764481 पर अनेक बार सम्पर्क करना चाहा किन्तु किसी ने फोन रिसीव नहीं किया।

यह आश्चार्य ही कि आजादी के 65 वर्षो में जहॉ प्रदेश में 5802 मेडीकल स्टोरों को मान्यता थी वहीं नयी कौसिंल के अस्तित्व में आते ही 20 हजार 98 नये मेडीकल स्टोरों को पंजीयन की अनुमति देना अपने आप में चौकाने वाला अनियतितताओं से भरा भर्राशाही का घोतक है। अगर प्रदेश के एक जिले होशंगाबाद को ही ले तो वहॉ 112 मेडीकल स्टोरों का पंजीयन बताया गया है जबकि पूरे जिले के ऑकड़े देखे तो 5 से अधिक मेडीकल स्टोर होंगे, यही आलम प्रदेश के अन्य जिलों में है जहॉ हजारों की सॅख्या में तहसील-ब्लाक एवं पंचायत स्तर पर मेडीकल स्टोर संचालित है किन्तु फूड़ एण्ड ड्र्रग्स कन्ट्र्रोल महकमे कार्य का बोझ और अनेक जिलों का दायित्व होने के कारण कार्यवाही करने से बचता है जबकि इस बावत उनका हिस्सा नियमित रूप से मेडीकल स्टोरों से एकत्र होकर पहुॅचता है।

किराये पर चल रहे है फार्मासिस्ट पंजीयन ?

समूचे प्रदेश में जिस तेजी से मेडीकल स्टोरों की बाढ़ आयी है उससे सैकड़ो  लोगों ने फर्जी पंजीयन कराकर उसे किराये पर दे रखा है। यदि डिग्री का ही ऑकलन किया जाये तो प्रदेश के सभी जिलों में ऐसे लोग मेडि़क़ल चला रहे है जो अपढ़ अयोग्य है और डिग्री के नाम पर उनके पास कुछ नहीं है। यदि कुछ है तो उनके पास कुछ योग्य प्रशिक्षित कर्मचारी है जो दवाओं को पढ़क़र ग्राहकों को देते है । इन र्कर्मचारियों के दम पर ये लोग ग्राहकों से मनमानी कीमत वसूलते है। बीमार उपभोक्ता का दुर्भाग्य तब होता हैै जब दुकान पर ये प्रशिक्षित कर्मचारी नहीं हो तब अपढ़ दुकानमालिक अंदाज से दवायें देकर अपनी जबावदारी पूरी करता है जिससे हमेशा बीमारों के लिये खतरा बना हुआ है। 
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