होशंगाबाद(आत्माराम यादव)। देश में बहुराष्ट्रीय कम्पनियों के पैर पसारने से उसका असर प्रदेश के होशंगाबाद जिले के सिवनीमालवा में भी देखने को मिल रहा है जहॉ स्वदेशी कुटीर और उद्योग माली हालत में है तथा करोड़ों की लागत से बना सोयावीन कारखाने जो हजारों परिवारों का पालन पोषण करता था पिछले एक दशक से बंद है।
अरबों रूपये की मशीने जंग खा रही है. यही कारण है कि राज्य सरकार की लापरवाही एवं सुध नही लेने से डोलरिया में स्टील प्लांट के लिये जमीन तय होने तथा केन्द्र की मंजूरी के बाद भी यह नया कारखाना जिले के लोगों के लिये शेखचिल्ली का खवाहगाह बनकर रह गया है। जिले में नये उद्योगों की संभावनायें नष्ट हो गयी है,अलबत्ता मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान अपने विधानसभा क्षैत्र बुदनी में इन उद्योगों को अब भी आमत्रित कर विकास की दौड में लगे है।
जिले की सिवनीमालवा तहसील में सैकड़ों एकड जमीन पर बना सोया प्लाट में करोड़ों रूपये की मशीने 10 साल से अधिक समय से जंग खा रही है । इस जिले के हजारों परिवारों की गुजर बसर इस कारखाने से होती थी तथा किसानों को भी सोयाबीन हेतु प्रोत्साहन मिलता था लेकिन यह सोया प्लांट पिछले एक दशक से बंद पड़ा है और मशीने जंग खा रही है।
बिजली -पानी की समस्या जैसी अनेक प्राथमिक दिक्कतें झेलते हुये पिपरिया, सिवनीमलवा, इटारसी व होशंगाबाद में सरकारी और निजी क्षैत्र के अनेक उपक्रम बंद हो चुके है, बावजूद इसके डोलरिया में १६० करोड़ रूपये का स्टील प्रोसेसिंग प्लाट की आधारशिला रखी जाने बाद भी उस दिशा में कोई काम न होने से बेरोजगारों को सब्जबाग दिखाने वाले सपने धुंधले होने लगे है।
पांच वर्ष पूर्व तत्कालीन केन्द्रीय मंत्री रामविलास पासवान व प्रदेश के मुखयमंत्री शिवराजसिंह चौहान एवं कॉग्रेस प्रदेशाध्यक्ष सुरेश पचौरी की उपस्थिति में डोलरिया क्षैत्र में स्टील प्रोसेसिंग प्लाट का सपना दिखाया गया था और उसे लोग मील का पत्थर मान रहे थे किन्तु इस हेतु जमीन अधिग्रहण सहित प्लांट के विषय में जिले के किसी भी प्रशासनिक अधिकारी के पास कोई जबाव नहीं है और विधानसभा का नेतृत्व करने वाले नेतागण भी अपनी जुबान खोलने से बच रहे है।
नगर में 35 से अधिक उद्योग लगाये गये किन्तु आज 4 -5 को छोड शेष सभी बंद पड़े है। इसी प्रकार इटारसी में 150 उद्योगों में से 75 के लगभग बंद पड़े है शेष उद्योग कई लोगों को रोजगार दिये हुये है। दो दशक पूर्व होशंगाबाद के नागरिकों को सुगर मिल का सपना दिखाये जाने के बाद अनेक किसानों को उसका सदस्य बनाने की प्रक्रिया चली जिसमें लाखों रूपये चंदा आया किन्तु न तो शुगर मिल बन सकी और न ही किसानों से इकत्र किये अंश राशि का ही पता लग सका है।
अधिकांश उद्योंगों के बंद होने के पीछे बिजली की कमी व पानी की दिक्कतें रही है जिससे यह क्षैत्र पिछड रहा है। यह अलग बात है की कांग्रेश के शासनकाल मं जिस बाबई कृषि फॉर्म को निजी हाथों मैं दिए जाने का विरोध कर रही बीजेपी की सरकार खुद ही उस 3000 एकड़ के फॉर्म को निजी हाथों मैं देने की तैयारी कर रही है और कांग्रेश सरकार खामोश हैं।