भोपाल। इधर सरकार नसबंदी को प्रोत्साहित करने के लिए करोड़ों लुटा रही है वहीं लगातार कम हो रही है यह प्रजाति, लिहाजा सरकार ने इनकी नसबंदी पर पाबंदी लगा दी है। यानी ये जितने बच्चे चाहें पैदा कर सकते हैं। इसके बावजूद इनके अस्तित्व पर संकट बना हुआ है। वैज्ञानिक और डाक्टर भी लगातार इन जाति पर रिसर्च कर रहे हैं, ताकि इनका वजूद मिटने से बचाया जा सके।
कमतर जनसंख्या व विलुप्त होती जा रही प्रजाति बैगा को संरक्षण देते हुए शासन ने देश के विभिन्न स्थानों पर रहने वाले बैगा प्रजाति के महिला व पुरुषों की नसबंदी पर प्रतिबंध लगाया है।
सदियों से मनाते आ रहे हैं वीकेंड
हमेशा से ये प्रजाति अपने अनोखे रहन-सहन और प्रथाओं को लेकर चर्चा में रहती है, इस प्रजाति का जीवन बड़ा ही रोचक रहा है। वीकेंड को पश्चिमी सभ्यता मानने वालों को यह जानकर आश्चर्य होगा कि मध्यप्रदेश में बसने वाली देश की सबसे पिछड़ी बैगा जनजाति के लोग सदियों के वीकेंड मनाते आ रहे हैं इतना ही नहीं ये लोग विंडो शॉपिंग का भी शौक रखते हैं। मध्यप्रदेश के कुछ जिलों में रहने वाले बैगाओं में तो सदियों से यह परंपरा है कि पांच दिन के परिश्रम के बाद वे हर हाल में दो दिन मौज मस्ती में बिताते हैं।
सप्ताहांत में बैगा स्त्री-पुरुष सजधज कर आस-पास के हाट बाजार में जाते हैं और जरूरी सामान की खरीदारी के अलावा चाय और पान का लुत्फ उठाते हैं। घर लौटते वक्त वे शराब और गोश्त लेकर आते हैं और रात में सभी लोग खा-पीकर नाचते गाते हैं।
बैगा आदिवासी मध्यप्रदेश के मुख्यतया मंडला, शहडोल, अनूपपुर और बालाघाट में पाए जाते हैं। इस दृष्टि से बैगा मध्यप्रदेश के मूल आदिवासी भी कहे जा सकते हैं।
बाल काटने का रिवाज नहीं
बैगा कृष्ण-वर्णीय और रुक्ष शरीर वाले होते हैं। इस जाति के लोगों में सिर के बालों को काटने का रिवाज नहीं होता है। कभी-कभी कपाल के ऊपर के बाल जरूर काट लिए जाते हैं। इतना ही नहीं ये जनजाति वर्ष में गिने-चुने अवसरों पर ही स्नान करती हैं।
आकर्षक होती है बैगा युवतियां
बैगा युवतियां आकर्षक होती हैं, उनके चेहरे और आंखों की बनावट सुंदर कही जा सकती हैं। इन्हें अन्य आदिवासी स्त्रियों से अलग पहचाना जा सकता हैं। इनके नयन-नक्श कटीले होते हैं।
