देश की तरूणाई के इकलौते आदर्श: स्वामी विवेकानंद

चंदा बारगल/ धूप-छांव/ हमारा देश सुपरपावर बनने की ओर अग्रसर है। दिल्ली गेंगरेप की घटना से भले ही ऐसा लगता हो कि सर्वत्र अराजकता है या घपले घोटालों का जमाना है पर साथ ही साथ यह भी हकीकत है देश तयशुदा गति से आगे बढ़ रहा है और उसके लिए यदि कोई प्रभावी परिबल है तो यह है देश का युवा। यूथ पॉवर आफ इंडिया। युवाओं के इस पावर ही देश चमका है। 

भारत पर समूची दुनिया की नजर है। भारत के यंगस्टर्स पूरी दुनिया में श्रेष्ठ हैं, यह उन्होंने साबित कर दिया है। सुपरपावर अमेरिका के राष्ट्रपति बराक ओबामा को भी अपने देश के युवाओं को चेताना पड़ा है कि तुम कुछ करो, नहीं तो तुम्हारे अवसर भारतीय नौजवान ​छीन लेंगे। भारत को सुपर पावर बनना है देश को सर्वशक्तिमान बनाएगी हमारी युवा शक्ति। भारत की जब बात चलती है तो कहा जाता है कि भारत युवाओं का देश है। 18 से 40 वर्ष के युवाओं का हमारे देश में बहुमत है। हमारे युवा कमिटेड हैं, फोकस्ड हैं और वे चाहे वो कर सकते हैं। 

देश शनिवार को स्वामी विवेकानंद की 150 वीं जयंती मना रहा है। स्वामी विवेकानंद बहुत कम जिए पर अपनी संक्षिप्त जिंदगी में वे जो कर कह गए वह भारत ही नहीं, वह दुनिया के युवाओं को अपना लक्ष्य हासिल करने के लिए पर्याप्त है। आज डेढ़ दशक बाद भी स्वामी विवेकानंद के विचार एकदम परफेक्ट और मौजूं है और जैसे—जैसे समय बीत रहा है, वैसे—वैसे उनके विचार और अधिक उपयोगी बनते जा रहे हैं। 

भारत के युवा आज हरेक क्षेत्र में हैं। इसके बावजूद सवाल यह है कि आज के युवा का आदर्श कौन? ऐसे कौनसे नाम हैं जो उनके लिए प्रेरणादायक हो सकते हैं? तपाक से कोई जवाब नहीं मिलता। हाल तक एक नाम था, वह नाम था सचिन तेंदुलकर का। सचिन ने क्रिकेट को गरिमा ही नहीं दी, अपनी वाणी और व्यवहार से नई उंचाइयां भी दीं। हमारे पास सानिया है तो सायना भी है। मेरीकॉम है तो अभिनव बिंद्रा भी है। और भी कई नाम हो सकते हैं। राजनीति में राहुल गांधी, ज्योतिरादित्य सिंधिया, सचिन पायलट भी हो सकते हैं। फिल्म स्टार्स की बात करें तो आमिर खान और एंग्री यंगमेन के रूप में प्रसिद्ध हुए अमिताभ बच्चन भी हैं। युवाओं के आइडल वक्त के साथ बदलते रहते हैं। ऐसे में स्वामी विवेकानंद का नाम उभरना स्वाभाविक भी है। 

युवाओं से कोई बात कहना हो तो स्वामीजी के इसी वाक्य से शुरुआत करना पडेगी कि उठो, जागो और उद्देश्य तक जुटे रहो। धर्म, सेवा, समाज, सफलता और संस्कार से लेकर संसार और संन्यास तक की व्याख्याएं ही स्वामी विवेकानंद ने नहीं दी है बल्कि चार दशक से भी कम की जिंदगी में यह बताया है.इसे संयोग कहें या दुर्भाग्य, यह पक्के तौर तौर पर तय नहीं कह सकते पर ऐसी ही एक बात है कि 9/11 अर्थात 11 सितंबर को अमेरिका के वर्ल्ड ट्रेड सेंटर पर आतंकवादी हमला हुआ था और स्वामी विवेकानंद ने अमेरिका के शिकागो में आयोजित विश्व धर्म परिषद में जब ऐतिहासिक भाषण दिया, वह दिन भी 9/11 यानी 11 सितंबर 1893 था। हिंदू धर्म क्या है? अस बात के साथ ही स्वामी विवेकानंद ने धर्म किसे जाता है, यह भी बताया था। उन्होंने अपने भाषण में इसे ही सच्चा धर्म बताया था। 

अमेरिका के आतंकवादी हमले के बाद ही यह बात आती है कि इतने वर्षों बाद भ्ी दुनिया अभी भी शायद धर्म की सही व्याख्या को समझ नहीं पाई है। आज भी यदि दुनिया धर्म की, विवेकानंद की विचारधारा का अनुसरण करे तो दुनिया की तमाम मुश्किलों का निराकरण हो जाएगा। 

एक ही कालावधि में हयात में होते हुए महात्मा गांधी और स्वामी विवेकानंद कहीं रूबरू मिल नहीं सके थे। एक का लक्ष्य आजादी था और दूसरे का मकसद अध्यात्म। इसके बावजूद दोनों कुछ बिंदुओं पर एक थे और उनमें एक मुख्य बिंदू यह था ध्येय की प्राप्ति। 

प्रत्यक्ष कोई भागीदारी न होते हुए भी स्वामी विवेकानंद आजादी के युवा लड़ाकों के लिए प्रेरणादायक बने थे। फ्रेंच विद्वान रोमा रोला ने स्वामी विवेकानंद की जीवनचरित्र लिखा है और उसमें से ही महत्व की बात निकलती है एकाग्रता और धीरज। विवेकानंद ने कहा था कि वीरतापूर्वक आगे बढ़ो। एक दिन या एक वर्ष में सफलता की आशा मत रखो। 

उन्होंने कहा था कि  यदि तुम्हें सफलता प्राप्त करनी हो तो तुम्हारे पास प्रचंड हौसला और इच्छाशक्ति होना चाहिए। जिसकी खुद पर श्रद्धा नहीं, वह नास्तिक है। आज के युवाओं के लिए यही बात अधिक सामयिक, उम्दा और सार्थक है और यही बातें स्वामी विवेकानंद को आल टाइम यूथ आईडल बनाती है। 

स्वामी विवेकानंद के जीवन से जो कुछ सीखने जैसा है, उसमें सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि जब तक समाधान न हो, तब तक कोई बात स्वीकार मत कीजिए। बौद्धिक स्तर पर और व्यावहारिक परख के बिना कोई बात न मानो, न स्वीकारो। सत्य को उसके तमाम पहलुओं से परखने की कोशिश करो। यह बात आज के युवाओं पर युवाओं पर पूर्णरूपेण फिट बैठती है। 

नरेंद्रनाथ दत्त संन्यासी बनने के बाद ही स्वामी विवेकानंद बने। विवेकानंद के पिता विश्वनाथ दत्त कोलकाता हायकोर्ट में एटार्नी थे। हालांकि, उनके विचारों पर माता भुवनेश्वरी देवी का असर था। माता से उन्हें यह सीख मिली थी कि अपनी संपूर्ण जिंदगी में पवित्र रहो। अपने आत्म सम्मान की रक्षा करो और दूसरे के सम्मान पर कभी अतिक्रमण न करो। परम शांत बनो पर जहां जरुरी हो वहां हृदय को कठोर बना लो। इस संक्षिप्त बात में समूची जिंदगी को जीने का संपूर्ण पाठ आ जाता है। जिंदगी को शांत, सुखी और स्वस्थ बनाने के लिए यह छोटा सा दर्शन ही काफी है पर कहा जाता है ना कि जो सरल होता है, वह कई बार समझ में नहीं आता। स्वामी विवेकानंद ने शिकागो में धर्म पर भाषण देने के पहले भारत भ्रमण किया था। देश के कण-कण और कोने-कोने के बारे में उन्होंने अनुभव किया था और उसके बाद हिंदू धर्म के बारे में बोले थे। संपूर्ण जानकारी के बिना पूरा ज्ञान संभव नहीं, यह उन्होंने अपने व्यवहार, विचार, बर्ताव से सिद्ध कर दिया था। ऐसा नहीं है कि उसमें संकोच या संदेह नहीं था, शिकागो के प्रवचन के पहले उनके मन में असमंजस था। इसके बाद वे जो बोले, वे दिल से निकले शब्द थे। वैसे देखें तो प्रवचन सीधा—सरल था। शब्दों का कोई आडंबर नहीं था या ज्ञान का कोई भार नहीं था, इसलिए उनका प्रवचन हरेक को छू गया था।

आज के युवाओं के लिए यही संदेश है कि जीवन में सरलता और सहजता रखें तो उद्देश्य अपने-आप पूरा हो जाएगा। सबसे पहले तो तुम अपना कर्तव्य निभाओ। स्वामी विवेकानंद को भी उनके गुरू रामकृष्ण परमहंस के पास से यही ज्ञान मिला था। नरेंद्रनाथ ने गुरू को दीक्षा के लिए कहा तब रामकृष्ण ने कहा कि पहले अपना  सांसारिक धर्म पूरा करो। उस वक्त नरेंद्रनाथ के पिताजी का अवसान हो गया था और परिवार को उनकी सख्त जरूरत थी। विवेकानंद लौटे और सारी जिम्मेदारी पूरी करने के बाद दीक्षा ग्रहण कर संन्यासी बने थे। हरेक व्यक्ति को उसके परिवार की जिम्मदारी सबसे पहले पूरी करना चाहिए। इसका, इससे बड़ा उदाहरण क्या हो सकता है। 

देश में यदि कोई कुछ परिवर्तन ला सकता है तो मात्र और मात्र देश की तरूणाई ही ला सकती है। आज देश के युवाओं में लावा खदबदा रहा है। दिल्ली गेंगरेप की घटना के बाद देश का युवाधन सड़कों पर उतर आया था। यह आंदोलन स्वयंभू था। कोई लीडर नहीं था। युवाओं को लगा कि नहीं यह मेरा कर्तव्य है, मेरी जिम्मेदारी है। यह मेरा रोष है, मुझे देश की चिंता है और जिस प्रकार सब कुछ चल रहा है वह मुझे मंजूर नहीं है और युवाओं के इस अभूतपूर्व आक्रोश ने ही सरकार को जागने पर मजबूर कर दिया था।

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