कर्ज़ का मर्ज़ और सरकार का फर्ज़

राकेश दुबे@प्रतिदिन। देश में कर्ज़ और कर्ज़ माफ़ी के लिए बहस हो रही है। गरीब किसान के साथ कुछ और क्षेत्र भी हैं, जिनके पास मोटा कर्ज़ है और माफ़ी के लिए बड़ी जुगत भी। इन सारे मामले को समझने के लिए कर्ज़ लेने वालों की किस्मों अदायगी के अवसर और माफ़ी के आधार पर विचार जरूरी है। इन सब बातों पर समग्र रूप से विचार के बगैर कोई भी नतीजा नही आ सकता है। पहला क्षेत्र, बड़ी कम्पनियां है, जिनके पास 2 लाख करोड़ रूपये फंसे है। बमुश्किल अब नाम सामने आये हैं। दूसरा क्षेत्र दूर संचार का है, 31 दिसंबर, 2016 तक दूरसंचार कंपनियों पर करीब 48.5 खरब रुपये का कर्ज हो चुका था। एक मोटे अनुमान के मुताबिक दूरसंचार कंपनियों पर अब तक लगभग 146 अरब डॉलर का कर्ज हो चुका है। तीसरा कृषि ऋण जिसका अनुमान लगभग 26 खरब रूपये है।

पहली किस्म की समस्या के मूल में एनपीए है और इस समस्या का समाधान सबसे आसान है। बैंकरप्सी यानी दिवालियेपन की कार्रवाई तक जाने से पहले मूल सम्पत्ति के स्वामित्व के अधिकार का बैंक के पक्ष में संरक्षण। यदि इसका ठीक ढंग से संचालन हो, तो ये सक्षम और फायदेमंद उपाय है। उचित कायदे-कानून के साथ यदि कुछ सख्त फैसले लिए जाएं और कर्ज कम करने की हिम्मत दिखाई जाए, तो एनपीए समस्या का समाधान निकल सकता है।

दूरसंचार कंपनियों के कर्ज तो एनपीए से अधिक बड़ी समस्या है। यह कर्ज इसलिए बढ़ रहा है, क्योंकि सरकार ने तकनीक और उपभोक्ता-हितों के परिप्रेक्ष्य में कुछ अच्छा करने की सोची है। इस नजरिये में भी कुछ गलत नहीं है, पर सच यह है कि वर्षों से इसका लाभ सिर्फ तीन कंपनियों को ही मिला है। इन कंपनियों पर कर्ज इसलिए भी बढ़ा है, क्योंकि अधिकतर कंपनियों ने विकास का ऋण-आधारित मॉडल अपनाया है। नतीजतन, कंपनियां राहत पैकेज का रोना रो रही हैं। सरकार को इन कंपनियों को और अधिक शेयर लाने को भी प्रोत्साहित करना चाहिए, कुछ स्पेक्ट्रम भुगतान के मामले में उदारता दिखानी चाहिए, विलय-प्रक्रिया को आसान बनाना चाहिए।

कृषि कर्ज इन सबमें सबसे जटिल समस्या है। इसे जरूर माफ किया जा सकता है। असल में, तमाम मिले-जुले दावों के बावजूद, किसी भी सरकार ने खेती को फायदे का कारोबार बनाने के लिए जरूरी कृषि सुधार और खेती-किसानी से जुड़े बुनियादी ढांचे के निर्माण में संजीदगी नहीं दिखाई है। इस क्षेत्र में बदलाव की दरकार है, और कुछ हद तक राजनीति के लिहाज से असुविधाजनक भी। इतना ही नहीं, इसके नतीजे भी जल्द नहीं दिखेंगे। कर्जमाफी तो सबसे आसान रास्ता है, लेकिन यह स्थाई समाधान तो नही है। स्थाई हल कृषि के वर्तमान तौर- तरीके पर पूर्ण वैज्ञानिक तरीके से विचार और सहानुभूति पूर्वक कर्ज़ का निपटारा क्योकि शर्म के कारण भावुक किसान जान दे देता है।
श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।        
संपर्क  9425022703        
rakeshdubeyrsa@gmail.com
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