ऋण मुक्तेश्वर महादेव: सभी तरह के कर्जों से मुक्ति का सबसे सरल मार्ग

शुद्ध पवित्र चैतन्य जीव जब जो कि परमात्मा का अंश है जब इस धरती पर जन्म लेता है तो माया बद्ध हो अपने स्वरूप से भ्रमित हो जाता है खुद को कर्ता समझकर धन और ऋण के चक्कर मॆ पड़ता है। जब धन के चक्कर मॆ ऊपर जाता है तो मान सम्मान संपत्ति पाता है। खुद को श्रेष्ठ समझता है लेकिन जब माया अपना दूसरा रूप दिखाती है तब जातक ऋण के चक्कर मॆ फँस कर परेशान और भगोडा हो जाता है। धनी बनने पर जो लोग शक्कर मॆ चींटी कि तरह चिपकते है वही आदमी जब ऋण रूपी नमक हो जाता है तब हर आदमी उससे हाथ छुडाता है। वास्तव मॆ पृथ्वी धन और ऋण दो ध्रुवों के मध्य घूम रही है। माया बद्ध हर जीव इस चक्कर मॆ है। जातक दीवार मॆ फेंकी गई गेंद कि तरह कभी धन और कभी ऋण के चक्कर मॆ उलझता है जितनी तेजी से धनी बनता है उतना ही तेजी से ऋणी भी बनता है परमात्मा से विमुख जीव गेंद कि तरह कभी धनी होकर ऊपर जाता है  कभी नीचे जाता है।

समुद्र मंथन कि कथा
सनातन धर्म कि हर कथा तत्व दर्शन है समुद्र मंथन यानी जीव के भवसागर रूपी मंथन मॆ को बिष निकला उसे शिव ने कंठ मॆ धारण किया अमृत देवों को तथा लक्ष्मी भगवान विष्णु ने वरण किया।राक्षस अर्थात नकारात्मक विचार दरिद्रता और ज़हर भगवान शिव के अधिकार मॆ है तथा देवत्व सकारात्मक विचार अमृत भगवान विष्णु के अधिकार मॆ।जब पाप नकारात्मक विचार जीव को पाप के दलदल मॆ ले जाते है तब भगवान शिव का नाम ही आपको पाप रूपी बिष को पवित्रता मॆ बदलता है तथा जातक मानसिक शांति पाता है किसी भी प्रकार का ऋण चाहे वह आर्थिक हो शारीरिक हो या आत्मिक हो आपको पतन कि और ले जाता है इससे आपका उद्धार भगवान शिव ही कर सकते है।

ऋण का कारक राहु
कालपुरुष का ऋण या बंधन राहु महाराज ही है जो बिष रूप है और भगवान शिव के कंठ मॆ है भगवान शिव कि कृपा से जीव सभी प्रकार के ॠणों से मुक्त होता है।शिवभक्ति के जल से आपका पाप रूपी ऋण ख़त्म होता है क्योंकि राहु महाराज भगवान शिव से ही शांत होते है।

ऋण मुक्तेश्वर महादेव
मां नर्मदा कालजयी, शिवपुत्री नदी है। नर्मदानदी के रूप मॆ भगवान शिव का तपरूपी पसीना बह रहा है। इसके दर्शन तथा स्नान से जातक सभी संकटों से मुक्त होता है। ओमकारेश्वर जो कि खंडवा जिला तथा मांधाता विधानसभा मॆ आता है यहां भगवान शिव मम्लेश्वर ओंकारेश्वर लिंग के रूप मॆ सदैव स्थित है। शास्त्रों मॆ जहां भी संगम है उस स्थान का विशेष महत्व है। ओंकारेश्वर मॆ मां नर्मदा तथा कावेरी का संगम हुआ। इस तट के पास स्थित है ऋण मुक्तेश्वर महादेव का सिद्ध लिंग जो कि ओंकारेश्वर पर्वत परिक्रमा मार्ग पर आता है। जो व्यक्ति मम्लेश्वर लिंग के दर्शन कर ओंकार पर्वत कि परिक्रमा करते हुए संगम मॆ स्नान कर इस पवित्र लिंग का शुद्ध पवित्र भाव से विश्वास पूर्ण ढ़ंग से पूजन करता है। भगवान ऋण मुक्तेश्वर उसे सभी प्रकार के ॠणों से मुक्त करते है।

ऋणमुक्तेष्वर पूजन विधान
मांधाता ओंकारपर्वत क्षेत्र पांडवों के अज्ञातवास का स्थल रहा है भगवान कृष्ण से जब उन्होने अपने कष्ट का कारण पूछा तो भगवान ने उन्हे पितृऋण के कारण इस अज्ञातवास को बताया साथ ही उन्होने संगमतट पर ऋण मुक्तेश्वर शिव कि पूजा का विधान बताया।

चने की दाल से पूजन
कोई भी ऋण स्वर्ण से चुकाया जा सकता है। पांडवों ने यहां सोना दानकर स्वयं के ऋण को मुक्त किया था। सोने के अभाव मॆ जो भी व्यक्ति चने की दाल जो की गुरु ग्रह की वस्तु है गुरु ग्रह से  सम्बन्धित (सोना, हल्दी, केसर, चनादाल) अपने गुरु का नाम स्मरण कर गणेश गौरी नवग्रह मंडल का पूजन कर अपने नाम कुलगोत्र का स्मरण कर पूजन करने से जातक के सभी प्रकार के भारी से भारी ॠणों का नाश होता है। भगवान शिव का यह धाम इस कलयुग के ऋणग्रस्त जीवों के लिये सभी तरह से कल्याणकारी है। जय भोलेनाथ जय ऋण मुक्तेस्वर।हमे यह समस्त जानकारी वहा के स्थानीय निवासी श्री देवेंद्र चौकसे के द्वारा उपलब्ध करायी गई।
प.चंद्रशेखर नेमा"हिमांशु"
9893280184,7000460931
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