जनविद्रोह ना होता तो भोपाल भी कश्मीर जैसा विवादित हो जाता | HISTORY OF BHOPAL

भोपाल। देश भले ही 1947 में आजाद हो गया हो परंतु भोपाल भारत का हिस्सा नहीं था। वो लगातार 2 साल तक भारत संघ से अलग रहा। भोपाल के नवाब हमीदुल्लाह भोपाल को पाकिस्तान में मिलाना चाहते थे। भौगोलिक दृष्टि से यह उचित नहीं था फिर भी उन्होंने सारी तैयारियां कर लीं थीं। पाकिस्तान में भोपाल हाउस बना दिया गया था। इस दौरान उन्होंने भारत का विरोध भी शुरू कर दिया था। यदि भोपाल की जनता अपने नवाब से विद्रोह ना करती तो भोपाल राज्य भारत के नक्शे पर उसी तरह विवादित हो जाता जैसे कि कश्मीर हो गया है। सरदार बल्लभभाई पटेल के प्रयासों से 1 जून 1949 को भोपाल रियासत का भारत संघ में विलय हो पाया। अत: भोपाल की आजादी का दिन 1 जून माना जाता है। 

जिन्ना और अंग्रेजों के दोस्त थे नवाब हमीदुल्लाह
1947 यानी जब भारत को आजादी मिली उस समय भोपाल के नवाब हमीदुल्लाह थे, जो न सिर्फ नेहरू और जिन्ना के बल्कि अंग्रेजों के भी काफी अच्छे दोस्त थे। जब भारत को आजाद करने का फैसला किया गया उस समय यह निर्णय भी लिया गया कि पूरे देश में से राजकीय शासन हटा लिया जाएगा, यानी भोपाल के नवाब भी बस नाम के नवाब रह जाते और भोपाल आजाद भारत का हिस्सा बन जाता। अंग्रेजों के खास नवाब हमीदुल्लाह इसके बिल्कुल भी पक्ष में नहीं थे, इसलिए वो भोपाल को आजाद ही रखना चाहते थे ताकि वो इस पर आसानी से शासन कर सकें। 

जिन्ना ने दिया था प्रस्ताव
इसी बीच पाकिस्तान बनने का फैसला हुआ और जिन्ना ने भारत के सभी मुस्लिम शासकों सहित भोपाल के नवाब को भी पाकिस्तान का हिस्सा बनने का प्रस्ताव दिया। जिन्ना के करीबी होने के कारण नवाब को पाकिस्तान में सेक्रेटरी जनरल का पद सौंपने की भी बात की गई। ऐसे में हमीदुल्लाह ने अपनी बेटी आबिदा को भोपाल का शासक बनाकर रियासत संभालने को कहा लेकिन उन्होंने इससे इंकार कर दिया। आखिरकार नवाब भोपाल में ही रहे और इसे आजाद बनाए रखने के लिए आजाद भारत की सरकार के खिलाफ हो गए।

आजाद होने पर भी भोपाल में भारत का राष्ट्रीय ध्वज नहीं फहराया गया। अगले दो साल तक ऐसी ही स्थिति बनी रही। नवाब भारत की आजादी के या सरकार के किसी भी जश्न में कभी शामिल नहीं हुए। मार्च 1948 में नवाब हमीदुल्लाह ने भोपाल के स्वतंत्र रहने की घोषणा कर दी। मई 1948 में नवाब ने भोपाल सरकार का एक मंत्रिमंडल घोषित कर दिया। प्रधानमंत्री चतुरनारायण मालवीय बनाए गए। तब तक भोपाल रियासत में विलीनीकरण के लिए विद्रोह शुरू हो चुका था।

इसके बाद पटेल के भेजे कड़े संदेश के बीच आजाद भारत के पहले गृहमंत्री सरदार वल्लभ भाई पटेल ने सख्त रवैया अपनाकर नवाब के पास संदेश भेजा कि भोपाल स्वतंत्र नहीं रह सकता। भोपाल को मध्यभारत का हिस्सा बनना ही होगा। 29 जनवरी 1949 को नवाब ने मंत्रिमंडल को बर्खास्त करते हुए सत्ता के सारे अधिकार अपने हाथ में ले लिए। इसके बाद भोपाल के अंदर ही विलीनीकरण के लिए विरोध-प्रदर्शन का दौर शुरू हो गया। तीन महीने जमकर आंदोलन हुए।

हर ओर से हारकर किए हस्ताक्षर
जब नवाब हमीदुल्ला हर तरह से हार गए तो उन्होंने 30 अप्रैल 1949 को विलीनीकरण के पत्र पर हस्ताक्षर कर दिए, जिसके बाद आखिरकार 1 जून 1949 को भोपाल रियासत भारत का हिस्सा बन गई। केंद्र सरकार के नियुक्त चीफ कमिश्नर एनबी बैनर्जी ने भोपाल का कार्यभार संभाल लिया और नवाब को 11 लाख सालाना का प्रिवीपर्स तय कर सत्ता के सभी अधिकार उनसे ले लिए गए।

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