कर्मचारी EPF का INTEREST और BALANCE ऐसे पता करें | EPF CALCULATOR

नई दिल्ली। ईपीएफ पर ब्याज की गणना कर्मचारी और साथ ही नियोक्ता की ओर से किए गए योगदान पर की जाती है। ईपीएफ फंड में कर्मचारी की ओर से दिया जाने वाला योगदान उसके मूल वेतन और महंगाई भत्ते (डीए) के 12 फीसद के बराबर होता है। जब डीए समेत मूल वेतन 15,000 या उससे कम होता है तो कर्मचारी के कुल योगदान में बेसिक-पे का 12 फीसद और डीए शामिल होता है जिसमें से नियोक्ता के योगदान में मूल वेतन का 3.67 फीसद हिस्सा और डीए शामिल होता है। 

अगर आय 15,000 से अधिक है तो योगदान को मापने के तीन तरीकों का इस्तेमाल किया जाता है। इनमें से किसी एक तरीके का इस्तेमाल नियोक्ता की ओर से किया जाता है। इसमें से सबसे प्रमुख पहला वाला तरीका माना जाता है, जिसके बारे में हम अपनी खबर के माध्यम से आपको जानकारी देने की कोशिश करेंगे। ईपीएफ कैलकुलेटर में, हम कर्मचारी और नियोक्ता के योगदान की गणना के लिए पहली विधि का इस्तेमाल करते हैं। अगर आपको इस प्रक्रिया को समझना है तो जानिए कैसे की जाती है इसकी गणना: 

कर्मचारी का बेसिक पे+डीए: 25000
EPF में कर्मचारी की ओर से किया गया योगदान: 25000 का 12%= 3000 रुपए
EPF में नियोक्ता की ओर से किया गया योगदान: 25000 का 3.67%= 917.50 रुपए (A)
नियोक्ता की ओर से कर्मचारी पेंशन योजना (EPS) में योगदान: 15000 का 8.33%=2082.50 रुपए (I)
15000 रुपये की थ्रेसहोल्ड इनकम पर कर्मचारी पेंशन योजना (EPS) में नियोक्ता की ओर से किया गया योगदान: 15000 का 8.33%=1250 रुपए (II)
(I) और (II) वाली थ्रेसहोल्ड की ऊपरी सीमा पर कर्मचारी पेंशन योजना (EPS) में नियोक्ता की ओर से किया गया अतिरिक्त योगदान: 2082.50 - 1250 = 832.50 रुपए (B)

(B) में अतिरिक्त राशि को EPF में नियोक्ता की ओर से किए गए योगदान (A) में जोड़ दिया जाता है: 917.50 + 832.50 = 1750 रुपए

इस हिसाब से ईपीएफ में नियोक्ता की ओर से किया गया योगदान 1750 रुपए होगा।

ऐसे होती है ब्याज की गणना:
एक बार नियोक्ता और कर्मचारी की ओर से किए गए योगदान की गणना के बाद इस योगदान पर मिलने वाले ब्याज की गणना की जाती है। ब्याज की गणना प्रत्येक माह के ओपनिंग बैलेंस पर की जाती है, जैसा कि अगर पहले महीने के लिए ओपनिंग बैलेंस शून्य है, पहले महीने पर अर्जित ब्याज भी शून्य होगा।

वहीं दूसरे महीने के लिए, ब्याज की गणना 1 महीने के क्लोजिंग बैलेंस पर की जाती है, जो कि दूसरे महीने से ओपनिंग बैलेंस के समान होती है। पहले महीने के क्लोजिंग बैलेंस की गणना कर्मचारी और नियोक्ता के पहले महीने के योगदान के आधार पर की जाती है।

ठीक इसी प्रकार तीसरे महीने के ब्याज की गणना दूसरे महीने के क्लोजिंग बैलेंस के आधार पर की जाती है। वहीं दूसरे महीने के क्लोजिंग बैलेंस की गणना पहले महीने के क्लोजिंग बैलेंस और दूसरे महीने के लिए कर्मचारी और नियोक्ता दोनों की ओर से किए गए कुल योगदान के आधार पर की जाती है।

वर्ष के अंत में कर्मचारी के साथ-साथ नियोक्ता की ओर से किए गए योगदान की राशि में 12 महीनों में अर्जित ब्याज की राशि में जोड़ा जाता है। ऐसा कर जो परिणाम सामने आता है वो वर्ष के समापन पर क्लोसिंग ईपीएफ बैलेंस होता है। यह राशि दूसरे साल के लिए ओपनिंग बैलेंस बन जाती है। दूसरे साल से पहले महीने के ब्याज की गणना दूसरे साल के ओपनिंग बैलेंस के आधार पर की जाती है।

साल के अंत तक ईपीएफ में जमा कुल राशि= 12 महीने के अंत तक जमा कुल राशि (नियोक्ता और कर्मचारी दोनों का हिस्सा)+ हर महीने प्राप्त हुई ब्याज आय का कुल हिस्सा= 57,000+2351= 59351 रुपए।

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