विसंगतियों का पुलिंदा हैं शिक्षाविभाग का युक्तियुक्तकरण, सरकार हस्तक्षेप करें

शिक्षा विभागनीमच। वर्ष 2009 से देशभर में शिक्षा का अधिकार कानून लागू होने के बावजूद इसके पालन में राज्यों की लचर नीति के दुष्प्रभाव सामने आ रहे हैं। मप्र में पुरा शालेय शिक्षा विभाग युक्तियुक्तकरण के दुश्चक्र में फँस गया हैं। मप्र तृतीय वर्ग शासकीय कर्मचारी संघ के प्रांतीय उपाध्यक्ष कन्हैयालाल लक्षकार ने जानकारी देते हुए बताया कि कक्षा पहली से आठवीं तक अध्यापन हेतु कालांतर में सहायक शिक्षकों/अध्यापकों की नियुक्तियां की गई थी जो सभी विषयों का अध्यापन दक्षतापूर्वक करते आ रहे थे जिसमें पाँचवी/आठवीं बोर्ड होती थी। परीक्षा परिणाम का भी क्रेज था। 

आरटीई लागू होने के बाद विषयवार शिक्षक/अध्यापक माध्यमिक शालाओं में रहना चाहिए थे। प्रदेश में ऐसे प्रयास जारी हैं लेकिन ये केवल नई भर्ती पर ही लागू हो सकते हैं और होना भी चाहिए। पुराने दक्ष सहायक शिक्षकों/अध्यापकों को छेड़े बगैर यह व्यवस्था लागू की जानी चाहिए, लेकिन प्रदेशभर में इसे एक साथ लागू करना चक्रव्यूह भेदने के समान हैं।

सवालों के घेरे में सरकार बताएँ कि जब वर्षो से विषयमान से भर्ती ही नहीं की गई तो विषयवार शिक्षक/अध्यापक कहाँ से उपलब्ध होंगे ? नीति नियंताओं को यह बात माननीय शिक्षा मंत्री कुंवर विजयशाह जी के संज्ञान में लाना चाहिए ताकि पूरे विभाग में हड़क्कम एवं अफरातफरी की स्थिति समाप्त हो। 

युक्तियुक्तकरण दर्ज छात्र संख्या के मान से सामान्य तौर से किया जाना चाहिए ताकि निर्विवाद ढंग से इसका पटाक्षेप हो सके एवं विभाग की छवि भी धूमिल न हो । इसमें सीधा हस्तक्षेप माननीय मुख्यमंत्री महोदय श्री शिवराजसिंह जी चौहान  एवं स्कूल शिक्षा मंत्री माननीय कुंवर विजयशाह को करना समय की पुकार हैं।

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