ANTI RAGGING MOBILE APP कहां से DOWNLOAD करें

नई दिल्ली। इंडिया भले ही डिजिटल हो गया लेकिन सरकारी सिस्टम में कम्यूनिकेशन गेप आज भी उतना ही बड़ा है जितना 1947 में हुआ करता था। हाल ही में विश्वविद्यालय अनुदान आयोग ने 'एंटी रैगिंग मोबाइल एप' का निर्माण किया। बीते रोज मानव संसाधन विकास मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने इसे लांच किया परंतु यह एप ना तो गूगल प्ले स्टोर पर उपलब्ध है और ना ही यूजीसी की बेवसाइट पर। मजेदार तो यह है कि एंटी रैगिंग हेल्पलाइन 18001805522 को तो पता ही नहीं है कि ऐसा कोई एप लांच हो गया है। अब सवाल यह है कि रैगिंग के खिलाफ तैयार किया गया यह एप स्टूडेंट्स कहां से डाउनलोड करें। 

यूजीसी के एंटी रैगिंग मोबाइल एप को लांच करते हुए एचआडी मिनिस्टर प्रकाश जावड़ेकर ने कहा कि इस मोबाइल एप्लीकेशन से छात्रों को रैगिंग की समस्या से निपटने में मदद मिलेगी. एप की शुरुआत करते हुए उन्होंने कहा कि बहुत से कॉलेज में रैगिंग को लेकर मामले सामने आते रहे हैं जिन्हें हम समय-समय पर निपटाते भी रहे हैं. लेकिन ऐसी शिकायतों को पूरी तरह से खत्म करने की जरूरत है.

प्रकाश जावड़ेकर का कहना है कि रैगिंग नए छात्रों को दी जाने वाली मानसिक और शारीरिक यातना है. जिसको कभी मंजूर नहीं किया जाता है. इसकी कोई अनुमति नहीं दी जा सकती, इसलिए यह एप इस तरह के अनुभव से गुजरने वाले युवाओं के लिए एक कारगर माध्यम के रूप में कार्य करेगा. ऐसे छात्रों का एक सहारा बनेगा. यह एप एंड्रॉयड सिस्टम पर काम करेगा, जहां ऐसे पीड़ित छात्रों को अपनी शिकायत दर्ज करवाने के साथ ही उसका निपटारा भी तुरंत ही मिलेगा.

इससे पहले ब्रेकिंग की शिकायत दर्ज कराने के लिए वेबसाइट का सहारा लेना पड़ता था. मगर इस एप से ऐसे मामलों में कमी आएगी. प्रकाश जावड़ेकर ने इस मौके पर कहा कि जो भी छात्र रैगिंग के मामले में शामिल होंगे, उनके खिलाफ कड़ी कार्रवाई की जाएगी. ऐसे लोगों को बख्शा नहीं जाएगा और उन्हें संस्थान में पढ़ाई जारी रखने का अनुमति नहीं होगी. साथ ही कानून के मुताबिक भी उनके खिलाफ कड़ी कार्रवाई करके उन्हें सजा दी जाएगी. प्रकाश जावड़ेकर ने सीनियर छात्रों से रैगिंग की बजाए अपने जूनियर छात्रों का मार्गदर्शन करने की अपील भी की है.

इस मामले में जब भोपाल समाचार ने यूजीसी से संपर्क किया तो कोई भी जिम्मेदार अधिकारी इस बारे में अधिक जानकारी नहीं दे पाया। यहां तक कि एंटी रैगिंग हेल्पलाइन 18001805522 को पता ही नहीं है कि ऐसा कोई एप बना और लांच भी हो गया। सवाल यह है कि क्या यह केवल एक खानापूर्ति भर है। यूजीसी ने इस एप को कुछ इस तरह छुपाया कि शिकायतकर्ता उसे तलाश ही ना पाए। 

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