NGO घोटाला रोकने गाइडलाइन नहीं कानून बनाइए: सुप्रीम कोर्ट

नई दिल्ली। एनजीओ को सरकारी फंडिंग के मामले की सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने आज सरकार को कानून बनाने का सुझाव दिया है। कोर्ट ने केंद्र को NGO और स्वैच्छिक संस्थाओं को दिए जाने वाले वाले सरकारी फंड के नियंत्रण को लेकर ऐसा कहा। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि सरकारी पैसे का दुरुपयोग करने वाले NGO के लिए सरकारी गाइडलाइन काफी और प्रभावी नहीं है। इसलिए संगठनों के खिलाफ सिविल और क्रिमिनल कार्रवाई के लिए कानून की जरूरत है। ये मामला बड़ी रकम का है लेकिन अभी तक इसे नियंत्रण करने के लिए कोई कानून नहीं है। सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र से 8 हफ्ते में इस बारे में रिपोर्ट दाखिल करने को कहा है कि वो कानून बनाएंगे या नहीं।

इस आदेश से NGO के खिलाफ चल रही क्रिमिनल कार्रवाई पर कोई असर नहीं पड़ेगा.  इससे पहले केंद्र ने कोर्ट को बताया था कि 2002 से 2009 के बीच 4756 करोड़ रुपये दिए गए गए जबकि राज्यों की ओर से 1897 करोड़ रुपये दिए गए. औसतन हर साल 950 करोड रुपये संस्थाओं को दिए गए.

वहीं, कपार्ट ने सुप्रीम कोर्ट को बताया कि 718 NGO और स्वैच्छिक संस्थाओ के खिलाफ कारवाई करते हुए ब्लैकलिस्ट किया गया है. जिसमें से 15 को डीलिस्ट  किया गया है. 159 के खिलाफ  FIR दर्ज कर कानूनी कारवाई की जा रही है. केंद्र सरकार की ओर से कहा गया कि गाइडलाइन को लेकर 76 मंत्रालयों को सुझाव भेजा गया है. 

5 अप्रैल को सरकार ने हलफनामा दाखिल कर कहा था कि  सरकारी फंड का दुरुपयोग करने वाले एनजीओ (गैर सरकारी संगठन) को लेकर केंद्र कड़े नियम बनाने की तैयारी में है. केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में कहा कि केंद्र ने ड्राफ्ट गाइडलाइन सुप्रीम कोर्ट में दाखिल की है. जो एनजीओ झूठी सूचनाओं के आधार पर सरकार से फंड लेगा, उसे ब्लैकलिस्ट किया जाएगा. देश से सभी एनजीओ को फिर से नीति आयोग में आनलाइन पंजीकरण कराना होगा और एनजीओ को एक यूनिक आईडी दी जाएगी.

एनजीओ को आडिट एकाउंट, इनकम टैक्स रिटर्न के अलावा काम करने के क्षेत्र और मुख्य कार्यकर्ताओं की जानकारी देनी होगी. एनजीओ को उसके अंदरूनी कामकाज और नैतिक स्टेंडर्ड के मूल्यांकन के बाद ही मान्यता दी जाएगी. मान्यता देने के बाद एनजीओ को मिलने वाले फंड इस्तेमाल के मूल्यांकन के लिए तीन टियर छानबीन होगी. फंड का दुरुपयोग करने वाले एनजीओ और स्वैच्छिक संस्थाओं के खिलाफ आपराधिक कार्रवाई की जाएगी. हस्ताक्षरकर्ता सामूहिक रूप से फंड वापस करने के लिए जवाबदेह होंगे. अगर सरकार किसी एनजीओ के प्रोजेक्ट से संतुष्ट नहीं होती या उसे लगेगा कि गाइडलाइन का उल्लंघन हो रहा है तो तुरंत प्रभाव से फंड देने पर रोक लगाने का सरकार को अधिकार रहेगा.

दरअसल देश भर के गैर सरकारी संगठन यानी एनजीओ को सरकारी फंडिंग को लेकर सुप्रीम कोर्ट में अहम सुनवाई कर रहा है. पिछली सुनवाई में देश भर के करीब तीस लाख गैर सरकारी संगठन (एनजीओ) के हिसाब-किताब का कोई लेखाजोखा न होने और एनजीओ को नियमित करने का कोई तंत्र न होने पर  सुप्रीम कोर्ट ने गहरी नाराजगी जताते हुए केंद्र सरकार को आड़े हाथ लिया था.

कोर्ट ने 31 मार्च तक सभी एनजीओ का आडिट कर कोर्ट मे रिपोर्ट पेश करने का निर्देश दिया था. इसके साथ कहा है कि जो एनजीओ फंड के दुरुपयोग के दोषी पाए जाएं उनके खिलाफ आपराधिक और दीवानी कार्रवाई की जाए. कोर्ट ने सरकार से कहा है कि वह एनजीओ को नियमित करने उन्हें मान्यता देने और उनकी फंडिंग के बारे में दिशानिर्देश तय करे.

कोर्ट ने अपनी टिप्पणी में कहा था कि एनजीओ को दिया गया फंड जनता का पैसा है. जनता के पैसे का हिसाब किताब रखा जाना चाहिए जो इसका दुरुपयोग करें उन पर कार्रवाई होनी चाहिए.

सीबीआई की ओर से सुप्रीमकोर्ट में दाखिल की गई रिपोर्ट के मुताबिक देश भर मे करीब 32 लाख 97 हजार एनजीओ हैं जिसमें से सिर्फ 3 लाख 7000 ने ही अपने खर्च का लेखाजोखा सरकार को दिया है. बाकी के एनजीओ ने कोई बैलेंस शीट दाखिल नहीं की है.

कोर्ट ने मामले पर सुनवाई के दौरान कहा कि इस याचिका के दाखिल होने के छह साल बाद भी सरकार ने एनजीओ के नियमन के लिए कोई तंत्र विकसित नहीं किया. केन्द्र और उसके विभागों ने करोड़ों रुपये उन्हें फंड दिए लेकिन वे इससे अवगत नहीं हैं कि आडिट न होने का क्या प्रभाव है. कोर्ट ने स्थिति पर नाराजगी जताते हुए कपार्ट के महानिदेशक को कोर्ट में बुलाया था. जो कि दोपहर दो बजे कोर्ट में पेश हुए.

कोर्ट ने कहा कि हिसाब किताब न देने पर सिर्फ एनजीओ को ब्लैक लिस्ट किया जाता है. ये काफी नहीं है फंड का दुरुपयोग करने वालों के खिलाफ सिविल और क्रिमिनल कार्रवाई होनी चाहिए.

कोर्ट ने कहा कि केंद्र सरकार और उसके विभागों के बीच एनजीओ की आडिटिंग (लेखाजोखा) को लेकर और वित्त मंत्रालय द्वारा जारी जनरल फाइनेंशियल रूल 2005 को लागू करने के बारे में भ्रम है. कोर्ट ने ग्र्रामीण विकास मंत्रालय और कपार्ट तथा अन्य जिम्मेदार एजेंसियों को आदेश दिया है कि वे 31 मार्च तक नियमों के मुताबिक सभी एनजीओ का आडिट पूरा कर के सुप्रीम कोर्ट में रिपोर्ट दाखिल की जाए.

कोर्ट ने कहा कि जो एनजीओ बैलेंस शीट देकर अपना लेखाजोखा न दें उनके खिलाफ वसूली के लिए सिविल और दीवानी कार्रवाई हो. पीठ ने इस बारे में सरकार को हलफनामा दाखिल करने का आदेश दिया है साथ ही कहा है कि हलफनामा दाखिल करने वाला अधिकारी आइएएस अधिकारी होना चाहिए जो कि संयुक्त सचिव स्तर से नीचे का नहीं होगा साथ ही हलफनामा विभाग के सचिव से मंजूर होना चाहिए. कोर्ट ने सरकार से कहा है कि वह एनजीओ को नियमित करने उनकी मान्यता व उन्हें फंड जारी करने से लेकर हिसाब किताब लेने तक के दिशानिर्देश तय करे.

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