10 साल बाद 6वें वेतनमान की विसंगति पर बात करेंगे वित्तमंत्री | कर्मचारी समाचार

भोपाल। अब जबकि कर्मचारी 7वां वेतनमान लागू करने में हो रही देरी को लेकर गुस्साए हुए हैं मप्र शासन के वित्तमंत्री 6वें वेतनमान की विसंगतियों को लेकर बातचीत का सिलसिला शुरू करने वाले हैं। वो एक एक कर्मचारी संगठन को बुलाएंगे और इत्मिनान से बात करेंगे। 

सरकार के खिलाफ कर्मचारी संगठनों की बढ़ती आंदोलनकारी नीति और आने वाले चुनावों को देखते हुए सरकार ने यह रास्ता अपनाया है। अब यदि यह सफल हुआ तो कर्मचारियों को राहत मिल सकती है। पिछले 10 सालों में इस तरह की चर्चा नहीं हुई है। वैसे चर्चा में सामने आए तथ्यों को अमले में लाने समय लगेगा, क्योंकि हर वर्ग में कर्मचारियों की दर्जनों समस्या सालों से लंबित है जिनकी भरपाई करन में सरकार का खजाना भी खाली होगा।

पर समान लेकिन अलग-अलग वेतनमान
मंत्रालय में सहायक ग्रेड-1 के कर्मचारियों को वेतनमान 5500 से 9000 रुपए और ग्रेड-पे 3600 रुपए दिया जाता है। जबकि मंत्रालय को छोड़कर प्रदेश के अन्य विभागों में पदस्थ इसी ग्रेड (सहायक ग्रेड-1) के कर्मचारियों का वेतनमान 4500 से 7000 रुपए और ग्रेड-पे 2800 रुपए है। इसमें प्रदेश के 2000 कर्मचारी प्रभावित हैं जिन्हें हर महीने मूल वेतन में 5000 से लेकर 8000 रुपए का नुकसान हो रहा है। कर्मचारी कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष वीरेंद्र खोंगल ने बताया कि एक ही प्रदेश में सामान पद वाले कर्मचारियों के साथ सालों से यह अन्याय हो रह है।

50 हजार कर्मचारियों को 3000 प्रतिमाह से ज्यादा का नुक्सान
प्रदेश के ऐसे कर्मचारी जिनका वेतनमान 5000 से 8000 रुपए और ग्रेड-पे 3200 रुपए के हिसाब से वेतन मिलता है उन्हें हर महीने 3 हजार रुपए का नुकसान हो रहा है। ऐसा छठवे वेतनमान में विसंगति के कारण हो रहा है, जबकि केंद्र में यहीं वेतनमान ( 5000 से 8000रुपए ) पाने वाले कर्मचारियों को छठवे वेतनमान में ग्रेड-पे 3600 रुपए के हिसाब से वेतन भुगतान किया गया। इस संवर्ग के प्रदेश में 50 हजार से अधिक कर्मचारी है जिन्हें हर महीने 3 हजार रुपए का नुकसान हो रहा है।

वित्त मंत्री ने चर्चा के लिए दी सहमति
कर्मचारी नेता वीरेंद्र खोंगल, भुवनेश कुमार पटेल और रमेश राठौर ने बताया कि मान्यता प्राप्त संगठनों से वित्त मंत्री ने लंबित मांगों को लेकर चर्चा करने की सहमति दी है। पूर्व में अलग-अलग कर्मचारी संगठन ज्ञापन सौंपते आए है लेकिन पिछले 10 सालों में इस तरह की सामूहिक चर्चा नहीं हुई थी।
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