भोपाल। भले ही हाईकोर्ट ने प्राइवेट स्कूल फीस गाइडलाइन पर पुनर्विचार के आदेश दे दिए हों परंतु शिक्षा विभाग में जिस तरह की हरकतें हो रहीं हैं, स्पष्ट समझ आ रहा है कि सीएम हाउस नहीं चाहता कि इस दिशा में कोई ठोस काम किया जाए। सरकार चाहती है कि गाइडलाइन लचीली और स्कूल संचालकों के हित में हो।
विभाग निजी स्कूलों की फीस को लेकर कोई कार्रवाई नहीं करना चाहता था, लेकिन हाईकोर्ट के निर्देश हुए, तो गाइडलाइन बनाकर 30 अप्रैल को जारी कर दी गई। गाइडलाइन की भाषा और उसमें दिए गए प्रावधान से अभिभावक संतुष्ट नहीं हुए। अभिभावकों का आरोप था कि गाइडलाइन में विभाग ने छात्र और अभिभावकों से ज्यादा स्कूलों का ख्याल रखा है। इसी को हाईकोर्ट में चुनौती दी गई और ग्वालियर हाईकोर्ट ने 6 माह और जबलपुर हाईकोर्ट ने 8 हफ्ते में पुनर्विचार करने के निर्देश दिए।
शिक्षामाफिया के साथ है सरकार
शिक्षाविद् प्रो. रमेश दवे का कहना है कि प्रदेश में नेता और उद्योगपतियों के स्कूल हैं। इसलिए सरकार कुछ नहीं करना चाहती। उन्होंने कहा कि सरकार चाहे, तो क्या नहीं कर सकती। छात्रों के हित में कार्य करने की उसकी मंशा ही नहीं है। अब तो अभिभावकों को खुद ही कुछ करना पड़ेगा। यदि वे बढ़ी हुई फीस न देने पर आमादा हो जाएं और जरूरत पड़े, तो अपने बच्चों को स्कूल से निकालने तक तैयार रहें, तभी कुछ हो सकता है। नहीं तो कोर्ट के डिसीजन को मॉनीटर कौन करता है।