दिल्ली: अब तो प्रणब दा ही कुछ करेंगे

राकेश दुबे@प्रतिदिन। दिल्ली के उप-राज्यपाल नजीब जंग और मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के बीच टकराव में दोनों पक्षों की ओर से अपने-अपने दावे हैं, विशेषज्ञों की भी इस मुद्दे पर अलग-अलग राय है। दिल्ली सरकार और विधानसभा इस मायने में असाधारण है कि दिल्ली पूर्ण राज्य नहीं है। 

यहां प्रशासनिक अधिकार उप-राज्यपाल और चुनी हुई सरकार के बीच बंटे हुए हैं। 1991 के जिस कानून के तहत दिल्ली सरकार का गठन हुआ है, उसमें उस मुद्दे को लेकर अस्पष्टता है। जैसे अफसरों की तैनाती के अधिकारों को लेकर कोई स्पष्ट दिशा-निर्देश नहीं है। किसी भी कानून या नियमावली में हर संभावित परिस्थिति को लेकर कोई स्पष्ट निर्देश होना संभव भी नहीं होता। ऐसे में, असमंजस या टकराव की स्थिति आती है, तो इससे निपटने के दो तरीके हैं। पहला, राष्ट्रपति इसके लिए स्पष्ट निर्देश दें। दूसरा, संबंधित लोग जनहित व कानून की भावना के मद्देनजर आपस में मिलकर कोई फैसला करें। कोई भी लोकतंत्र या संस्था लिखित कानूनों के अलावा परंपराओं से भी चलती है। यह दूसरा रास्ता दोनों ही पक्षों के टकराव के रवैये से बंद हो गया है, इसलिए अब राष्ट्रपति ही सही फैसला करके भविष्य के लिए नजीर तय कर सकते हैं।

वैसे दिल्ली में सत्तारूढ़ ‘आप’ और उसके मुखिया अरविंद केजरीवाल ने भी इस मामले में जिस मर्यादा का पालन करना था, वह नहीं किया। दस दिन के लिए कार्यकारी मुख्य सचिव की नियुक्ति से कोई ऐसी बड़ी मुसीबत नहीं आने वाली थी, जिसके लिए उन्होंने इतना बड़ा हंगामा कर दिया। कार्यकारी अधिकारी यूं भी नीतिगत फैसले नहीं करते, वे सिर्फ रोजमर्रा का काम-काज निपटाते हैं। शायद, अरविंद केजरीवाल इस बहाने नजीब जंग और अपने अधिकारों के संघर्ष का स्पष्ट फैसला चाहते हों, इसलिए उन्होंने इसे मुद्दा बनाया हो। लेकिन जिस तरह उन्होंने पूर्वोत्तर की एक महिला अधिकारी पर दोषारोपण किया और जनसभा में उन्हें बिजली कंपनियों से सांठगांठ वाली अफसर बताया, वह ठीक नहीं है। उनके इस कदम से दिल्ली का प्रशासन प्रभावित होगा। उन्हें चुनी हुई सरकार की वरीयता का मुद्दा उठाना था, तो इसे वह बेहतर ढंग से उठा सकते थे। एक सही मुद्दा गलत ढंग से उठाने पर नुकसान ही होता है। इसी वजह से दिल्ली में अफसरों और सरकार के बीच कड़वाहट पैदा हुई है, अफरातफरी और वैमनस्य का माहौल बना है। विधायिका और कार्यपालिका के बीच सामंजस्य से ही प्रशासन ठीक से चलता है, दोनों पक्षों में से कोई भी निहित स्वार्थ के तहत अविश्वास और टकराव पैदा करे, तो इसका नतीजा प्रशासन और आखिरकार आम जनता भुगतती है।

श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।
संपर्क  9425022703
rakeshdubeyrsa@gmail.com

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