भोपाल। कांग्रेस प्रवक्ता केके मिश्रा ने सरकारी वकील पर कमजोर दलील का आरोप लगाते हुए कहा है कि हाईकोर्ट ने सिर्फ एफआईआर रद्द की है, लेकिन उन्हें बेगुनाह घोषित नहीं किया। वो जब तक राज्यपाल हैं केवल तब तक ही सुरक्षित हैं, पद से हटते ही फिर एफआईआर हो सकती है और गिरफ्तारी भी।
प्रदेश कांग्रेस के मुख्य प्रवक्ता के.के. मिश्रा ने म.प्र. उच्च न्यायालय की युगलपीठ द्वारा वनरक्षक भर्ती परीक्षा में प्रदेश के राज्यपाल रामनरेश यादव के विरूद्व उच्च न्यायालय के ही निर्देश पर भारतीय संविधान के अनुच्छेद 361 के अंतर्गत एसटीएफ द्वारा दर्ज एफआईआर को उनके संवैधानिक पद पर बने रहने तक रद्द किये जाने के निर्णय पर हैरानी जताते हुए कहा है कि इस अनुच्छेद के तहत स्पष्टतः उल्लेख है कि संवैधानिक पद पर मौजूद किसी भी व्यक्ति के खिलाफ एफआईआर दर्ज हो सकती है। अनुसंधान भी किया जा सकता है, किंतु उन पर गिरफ्तारी और अभियोजन की कार्यवाही नहीं हो सकती है। उसके बावजूद भी अनुच्छेद 362 (2) का उल्लेख कर राज्यपाल के विरूद्व दर्ज एफआईआर को रद्द कर देना अनुसंधान का विषय है? उन्होंने आरोप लगाया कि सरकारी वकील ने उचित दलील प्रस्तुत नहीं की और उसी के अभाव में यह निर्णय हो गया।
उन्होंने यह भी कहा है कि उच्च न्यायालय द्वारा पारित इस निर्णय की व्याख्या के अंतर्गत संवैधानिक पद से हटने के बाद राज्यपाल के विरूद्व एसटीएफ द्वारा जांच जारी रखी जा सकती है। लिहाजा, राज्यपाल उनके विरूद्व लगे आरोप से मुक्त नहीं हैं। यानि उन्हें निर्दोष घोषित नहीं किया गया है।
आज यहां जारी अपने बयान में मिश्रा ने कहा कि राजभवन की लाॅग बुक में राज्यपाल से व्यापम के परीक्षा नियंत्रक पंकज त्रिवेदी और वनरक्षक भर्ती परीक्षा में आरोप लगाने वाले वीरपालसिंह नामक व्यक्ति की राज्यपाल से कई मुलाकातें होने के प्रमाण हैं। यही नहीं चीफ जस्टिस एनालिस्ट नितिन महिन्द्रा से जब्त एक्सल शीट में भी राजभवन पर उंगलियां उठी हैं। राज्यपाल के ओएसटी धनराज यादव आज भी जेल में हैं। इन सभी प्रमाणों के बाद राज्यपाल के खिलाफ कार्यवाही नहीं होना कानून और संविधान की मंशाओं के खिलाफ है।