मप्र के 5295 स्कूलों में एक भी शिक्षक नहीं, 17000 में सिर्फ एक

भोपाल। स्‍कूल शिक्षा की तस्वीर मध्‍यप्रदेश में बेहतर नजर नहीं आती। यू-डाईस की वर्ष 2013-14 की रिपोर्ट को देखा जाए तो साफ पता चलता है कि एक ओर जहां शासकीय स्‍कूलों में मूलभूत सुविधाओं का अभाव है, वहीं दूसरी ओर इस दिशा में शिक्षा का अधिकार अधिनियम (आरटीई) लागू होने के पांच सालों बाद भी हालात अच्‍छे नहीं हैं।

यूनिसेफ की मध्‍यप्रदेश इकाई ने मप्र में प्रारंभिक शिक्षा की स्थिति से रू-ब-रू करवाने और उसे बेहतर करने के प्रयासों को लेकर एक कार्यशाला का आयोजन पचमढ़ी में किया।

अब सीखने के अधिकार की बात हो: ट्रेवर क्लार्क
कार्यशाला की ‍शुरुआत करते हुए मध्‍यप्रदेश यूनिसेफ के प्रमुख ट्रेवर क्लार्क ने कहा कि सोशल मीडिया अब ट्रेडिशनल मीडिया की तरह लिया जा रहा है और इस मीडिया का उपयोग शिक्षा के प्रचार-प्रसार के लिए बेहतरीन तरीके से किया जा सकता है।

क्‍लार्क ने कहा कि अब बात सिर्फ शिक्षा के अधिकार की नहीं बल्कि सीखने के अधिकार की होनी चाहिए। उन्होंने कहा कि मीडिया हमेशा यूनिसेफ का सशक्‍त सहयोगी रहा है। क्‍लार्क ने कहा कि शिक्षा का अधिकार अधिनियम ( आरटीई ) वर्ष 2010 बनने के बाद इस दिशा में काम हुआ है, लेकिन अभी भी इस दिशा में काफी काम होना बाकी है। उन्‍होंने कहा कि वेबसाइट एवं सोशल मीडिया के बढ़ते चलन का स्‍कूल शिक्षा क्षेत्र में बदलाव आया है। वाट्सएप भी इसका अच्‍छा माध्‍यम बना है। क्‍लार्क ने इन माध्‍यमों से स्‍कूल शिक्षा क्षेत्र में जोर दिया।

एमपी के 5,295 स्कूलों में नहीं है शिक्षक
मप्र सूनिसेफ के शिक्षा विशेषज्ञ एफ. ए. जामी ने एमपी में शिक्षा के स्तर और जरूरी आधारभूत संरचना पर कुछ आंकड़े सामने रखे। जामी ने यू-डाईस की रिपोर्ट के माध्यम से बताया कि मप्र में 5,295 स्‍कूलों में एक भी शिक्षक नहीं हैं। इनमें सरकारी स्‍कूलों की संख्‍या 4,662 हैं। यही नहीं 17,972 शासकीय स्‍कूलों में मात्र एक शिक्षक हैं।

उन्‍होंने यह भी बताया कि रीवा के स्‍कूलों में कम बच्‍चे आते हैं जबकि सिंगरौली के स्कूलों में शिक्षकों की संख्‍या काफी कम है। प्रदेश में 6 हजार 847 ऐसे स्‍कूल हैं, जहां छात्र-छात्राओं की संख्‍या 20 से भी कम है।

जामी ने बताया कि वर्ष 2013 में प्रदेश के 2012 स्‍कूलों में विद्यार्थियों की संख्‍या 10 से भी कम थी। वर्ष 2013-14 में 4 लाख 75 हजार बच्‍चों ने स्‍कूल आना छोड़ दिया। इनमें प्राथमिक स्‍कूलों के 4 लाख 20 हजार बच्‍चे शामिल हैं।

बदलते समय के साथ बदला यूनिसेफ
कम्युनिकेशन स्पेशलिस्ट, यूनिसेफ, इंडिया की मारिया फर्नांडीज़ ने बच्चों को उनके शिक्षा का अधिकार दिलाने के लिए सो‍शल मीडिया एवं वेबसाइट की उपयोगिता बताते हुए कहा कि यूनिसेफ ने अपनी कम्‍युनिकेशन स्‍ट्रेटजी बदली है।

उन्‍होंने कहा कि इंटरनेट के माध्‍यम से वेबसाइट एवं सोशल मीडिया ने सामाजिक क्रांति ला दी है। इसी कारण अब यूनिसेफ ने भी वेबसाइट एवं सोशल मीडिया के प्‍लेटफार्म का इस्‍तेमाल करने का निर्णय लिया है। उन्‍होंने कहा कि हम 15 से 34 वर्ष के लोगों को टारगेट करना चाहते हैं।

वेब और सोशल मीडिया बनेगा बड़ा टूल
वरिष्‍ठ पत्रकार गिरीश उपाध्याय ने सोशल मीडिया लैंडस्केप इन एमपी एंड हाऊ दे कैन कंट्रीब्यूट इन चिल्ड्रन्स एजुकेशन पर अपने महत्‍ती विचार रखे। यूनिसेफ, मध्यप्रदेश के कम्युनिकेशन स्‍पेलिस्‍ट अनिल गुलाटी ने भी सोशल मीडिया एवं वेबसाइट के बढ़ते प्रभाव पर अपनी राय रखी। कार्यशाला में भाग ले रहे पत्रकारों एवं वेबसाइट संचालन कर रहे अनेक लोगों ने शिक्षा के क्षेत्र में सोशल मीडिया एवं वेबसाइट के माध्‍यम से अपनी भूमिका निर्वहन पर विचार रखे।
यूनिसेफ ने सोशल मीडिया एवं वेबसाइटों के बढ़ते प्रभाव को आत्‍मसात करते हुए इसके माध्‍यम से इस दिशा में काम करने का फैसला किया गया है।
यूनिसेफ द्वारा आयोजित सोशल मीडिया एवं वेबसाइट तथा स्‍कूल शिक्षा विषय पर आयोजित कार्यशाला में चर्चा के दौरान यह निर्णय भी लिया है कि शीघ्र ही एक ऐसा फोरम बनाया जाएगा, जिसमें इन माध्‍यमों से स्‍कूल शिक्षा की खामियों के साथ ही इस दिशा में किये जा रहे प्रयासों का प्रचार-प्रसार किया जाएगा।

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