राजेश शुक्ला/अनूपपुर। माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता विश्वविद्यालय प्रबंधन की चुस्त व्यवस्थाओं का नमूना देखिए। न्यायालय ने 3 साल पहले एक मार्कशीट का वेरिफिकेशन भेजा था, यूनिवर्सिटी ने 3 साल बाद जवाब दिया कि मार्कशीट तो फर्जी है। यूनिवर्सिटी की इस लापरवाही के कारण एक शातिर इंसान 3 साल तक न्यायालय में नौकरी करता रहा।
वर्ष 2010 में जिला सत्र न्यायालय में सहायक वर्ग 3 के पद हेतु परीक्षा व साक्षात्कार लिये गये थे जिसमें फिरोज कुमार कन्नौजिया पिता प्यारे लाल कन्नौजिया का चयन हुआ था। चयन के पश्चात् दस्तावेजो के प्रमाणीकरण के लिये संबंधित विश्व विद्यालय को भेजा गया। जहां तीन वर्ष के बाद प्रमाणीकरण में बीसीए की अंकसूची को माखन लाल चतुर्वेदी विश्व विद्यालय ने अपने यहां से जारी होना नहीं बतलाया।
मामले का पर्दाफाश होने के बाद न्यायालय की शिकायत पर धारा 420, 467, 468, 471 के तहत मामला पंजीबद्ध कराया और आरोपी बाबू को गिरफ्तार कर लिया गया, लेकिन यदि यूनिवर्सिटी इस मामले में तत्काल जानकारी भेज देती तो एक इंसान फर्जी अंकसूची के आधार पर 3 साल तक नौकरी नहीं कर पाता।