माननीय राहुल गांधी जी, मेरा उद्देश्य किसी व्यक्ति या समूह की आलोचना नहीं, बल्कि संगठन की सच्चाई को ईमानदारी से आपके समक्ष रखना है। मैं विरोध नहीं कर रहा, निदान सुझा रहा हूँ। मध्यप्रदेश कांग्रेस के पुनरुत्थान के लिए आत्ममंथन और सुधार आवश्यक हैं।
एक वर्ष की कार्यप्रणाली पर कठोर प्रश्न
26 अक्टूबर 2024 को गठित वर्तमान प्रदेश कांग्रेस कमेटी (पीसीसी) को उस समय “देश की सर्वश्रेष्ठ कार्यकारिणी” बताया गया था, परंतु एक वर्ष पश्चात स्थिति गंभीर चिंतन का विषय बन चुकी है। पीसीसी की कोई नियमित मासिक बैठकें नहीं हुईं, न ही संविधानानुसार त्रैमासिक समीक्षा सत्र आयोजित हुए। अधिकांश पदाधिकारी अपने कर्तव्यों और दायित्वों से अनभिज्ञ हैं। अनेक पदाधिकारी को एक वर्ष से संगठनात्मक जवाबदेही ही तय नहीं की हैं। लगभग 70 प्रतिशत पदाधिकारियों बिना काम समय व्यतीत कर रहें हैं।
177 पदाधिकारियों की कार्यकारिणी में लगभग 70% सदस्य यह तक नहीं जानते कि उन्हें किस क्षेत्र, विभाग या जिम्मेदारी के लिए नियुक्त किया गया है।
जिला व ब्लॉक स्तर की निष्क्रियता:-
जिला एवं ब्लॉक स्तर की कार्यकारिणियाँ केवल नाममात्र की हैं। अधिकांश जिलाध्यक्षों ने न तो छह माह की रिपोर्ट सौंपी, न ही कार्यकर्ताओं की बैठकें बुलाईं। बीएलए और बूथ कमेटियों के गठन की सूचनाएँ केवल कागज़ों में सीमित रहीं। ज़मीनी हकीकत में उनका कोई अस्तित्व नहीं दिखता।
“जहाँ संगठन को धरातल पर मज़बूत होना चाहिए था, वहाँ दिखावा और औपचारिकता ने जगह ले ली है।”
फ्रंटल ऑर्गनाइजेशन की स्थिति
युवा कांग्रेस, एनएसयूआई, महिला कांग्रेस, सेवा दल और सोशल मीडिया विभाग की कार्यप्रणाली को “निष्क्रिय एवं दिशाहीन” हो गए हैं।
एनएसयूआई और यूथ कांग्रेस की राज्य इकाइयों में युवाओं की भागीदारी घट रही है,
जबकि भाजपा के युवा मोर्चा की गतिविधियाँ हर कॉलेज और ब्लॉक में दिख रही हैं।
भविष्य का नेतृत्व तैयार करने वाले संगठन ही आज सबसे कमजोर कड़ी बन गए हैं।
मीडिया, संवाद और जनसंघर्ष की कमी
पिछले एक वर्ष में पीसीसी ने भाजपा सरकार के भ्रष्टाचार, किसान समस्याओं, बेरोज़गारी और शिक्षा संकट पर कोई बड़ा जनांदोलन नहीं किया।
कांग्रेस की आवाज़ जनता तक नहीं पहुँच रही है, जबकि सत्तापक्ष का झूठ हर माध्यम पर छाया हुआ है।
राज्य प्रभारी और उच्चस्तरीय समन्वय
कांग्रेस के वरिष्ठ नेता श्री हरीश चौधरी (राज्य प्रभारी) और श्री संजय दत्त (संगठन प्रभारी) के प्रयासों में “निष्ठा तो रही, पर संवाद का अभाव” दिखाई देता है। कई जिलों के कार्यकर्ता महीनों से संवाद के लिए प्रयासरत रहे, पर उनकी बात दिल्ली तक नहीं पहुँची।
संगठन में ऊपर और नीचे के बीच संवाद की खाई बढ़ी है, जिससे ऊर्जा और उत्साह क्षीण हो गया है।
भविष्य की दिशा और सुझावः
- पीसीसी की संरचना का पुनर्मूल्यांकन कर केवल सक्रिय और जमीनी कार्यकर्ताओं को स्थान दिया जाए।
- प्रत्येक पदाधिकारी की छह माह की रिपोर्ट अनिवार्य की जाए।
- जिला और ब्लॉक स्तर पर मासिक बैठकें एवं नियमित रिपोर्टिंग प्रणाली स्थापित हो।
- सोशल मीडिया और जनसंपर्क विभाग को पेशेवर ढंग से पुनर्गठित किया जाए।
- फ्रंटल ऑर्गनाइजेशन को पुनर्जीवित कर युवा नेतृत्व को अवसर दिया जाए।
- भाजपा के समानांतर “जनसंघर्ष अभियान” शुरू कर जनता से सीधा संवाद हो।
- अंततः पार्टी को एक “साफ-सुथरी छवि, संवेदनशील और कर्मनिष्ठ” नेता को मुख्यमंत्री पद का चेहरा घोषित करना चाहिए ताकि जनता को स्पष्ट नेतृत्व दिख सके।
“हम सब कांग्रेस कार्यकर्ता राहुल गांधी जी के नेतृत्व में कांग्रेस की पुनः वापसी के लिए प्रतिबद्ध हैं। परंतु यह तभी संभव है जब हम अपनी कमजोरियों को स्वीकार करें, झूठी तसल्ली से बाहर आएँ, और संगठन को जनता के बीच फिर से जीवंत करें।”
आगामी 2028 विधानसभा चुनाव के पूर्व नगरीय निकाय एंव पंचायत चुनाव जीतना बेहद जरूरी हैं। इन दोनों चुनावों में जीत ही विधानसभा चुनाव 2028 में मध्यप्रदेश में कांग्रेस की सरकार बनाने में निर्णायक होंगे और संगठन की मज़बूती ही कांग्रेस की विजय का मार्ग प्रशस्त करेगी।
✒ राकेश सिंह यादव, पूर्व महासचिव, मध्यप्रदेश कांग्रेस कमेटी
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